भाजपा कर रही है संविधान और संसदीय मानदंडों, शिष्टाचार और प्रोटोकॉल का अपमान: आनंद शर्मा
नई दिल्लीः आनंद शर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत संविधान दिवस मना रहा है, इस पर हम सभी देशवासियों को शुभकामनाएं देते हैं। संसद में एक सरकारी कार्यक्रम हो रहा है। कांग्रेस पार्टी ने और हमारे सहयोगी दलों ने, अन्य मुख्य विपक्षी दलों ने इसमें शमूरियत नहीं की है, इसमें शामिल नहीं हुए हैं। उसके कारण जानना आवश्यक है- बीजेपी की सरकार निरंतर संवैधानिक संस्थाओं पर चोट पहुंचा रही है। संवैधानिक नियमों का उल्लंघन हो रहा है। संवैधानिक प्रजातांत्रिक प्रणाली पर निरंतर आघात है, चोट पहुंचती है। संसदीय प्रजातंत्र के अंदर प्रतिपक्ष की भूमिका रहती है। देश के संविधान में ये बात स्पष्ट है कि सत्ताधारी दल के साथ प्रतिपक्ष अनिवार्य है।
दो बरस पहले भी यही विषय उठा था। एक सरकारी कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें विपक्ष की कोई भूमिका नहीं थी। हमारी ऐसी अपेक्षा थी कि उस दिन जो हुआ और विपक्ष ने अपना रोष प्रकट किया, प्रोटेस्ट किया, उससे सरकार भविष्य में सचेत हो जाएगी और ऐसे अवसर पर विपक्ष को सम्मान देगी।
जहाँ हम संविधान का सम्मान करते हुए, महामहिम राष्ट्रपति जी का सम्मान करते हुए ये बात स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगर विपक्ष, चाहे नेता प्रतिपक्ष, विपक्षी दलों के नेताओं की संविधान दिवस के कार्यक्रम के आयोजन में और देश के प्रजातंत्र संविधान को जब हम सेलिब्रेट करें, उसका जश्न मनाएं, उसमें शामिल ना किया जाना, केवल एक औपचारिक निमंत्रण, वो भी बैठने का समारोह के अंदर, वो स्वीकार्य नहीं है। माननीय प्रधानमंत्री और बीजेपी के नेतृत्व द्वारा विपक्ष की आलोचना इस विषय पर सही नहीं है, उसका कोई औचित्य नहीं है।
सरकार को ये स्पष्ट करना चाहिए कि किस तरह से देश का शासन और प्रशासन चल रहा है। कोई अवसर ये सरकार नहीं छोड़ती है, जब संविधान और संविधान की परंपराओं को दबाकर निर्णय ना लिए जाएं। संसद का हर सत्र आरंभ होने से पहले महत्वपूर्ण कानून, अध्यादेशों के माध्यम से बनते हैं, ऑर्डिनेंस के माध्यम से बनते हैं। जब तक एक राष्ट्रीय आपात की स्थिति ना हो, एक ऐसी परिस्थितियां ना हों, जब सरकार के लिए संसद के सत्र से कुछ दिन पहले नए कानून का अध्यादेश लाना अनिवार्य न हो, तब तक वो नहीं किया जाना चाहिए और इसीलिए इस देश के अंदर कई समस्याएं और विकट परिस्थितियां पैदा हुई हैं।
इस सरकार ने जिस तरह से कानून बनाए, उससे समाज के अंदर उत्तेजना और टकराव की परिस्थितियां बनी। चाहे किसानों से संबंधित थे तीन कानून कृषि कानून, हमने सरकार को समझाया था कि जल्दबाजी मत करें। कानून बनाने की एक प्रक्रिया होती है, संसद की समितियां हैं, स्टैंडिंग कमेटी हैं, उनको जब कोई भी बिल भेजा जाता है, उसकी जांच परख होती है और जो उससे वर्ग प्रभावित होता है या हमारे नागरिक, उनके विचार लिए जाते हैं, एक आम सहमति बनाकर देश के कानून बनते हैं। इस सरकार ने उस प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया। यही कारण था कि एक साल लंबा आंदोलन भारत के किसानों का चला, 700 किसान उसमें शहीद हुए और अब सरकार उसको वापस लेने पर मजबूर हुई। अगर विपक्ष की बात सुनी होती, तो ये हालात देश के सामने ना आते, इतना बड़ा संकट और कष्ट, जो देश ने देखा, वो बिल्कुल भी जरुरी नहीं था।
हम सरकार से कोई मांग तो नहीं करते, पर ये कहना चाहते हैं कि अभी भी समय है, अपनी कार्यशैली बदलें, इस मानसिकता को बदलें। सदन से पहले ही सरकार कोई ना कोई ऐसा कदम हमेशा उठाती है, जिससे तनाव बने और जिससे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय विषयों पर जो आवश्यक है, वो सहमति ना बन पाए।
एक प्रश्न के उत्तर में शर्मा ने कहा कि देखिए, वो तो इतिहास को ही बदलना चाहते हैं। तमाम वो लोग, जिन्होंने हिंदुस्तान की आजादी के लिए संघर्ष किया, पीढ़ी दर पीढ़ी जो लोग जेल में गए और जिन लोगों ने सर्वोच्च बलिदान दिया, ये लोग उनको स्मरण नहीं करते। उसका कारण है–आजादी के संग्राम में जिसका नेतृत्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने किया था। वो तमाम बड़े नेता, जिनके मैंने अभी किसी दूसरे परिपेक्ष में नाम लिए– जवाहरलाल नेहरु, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना आजाद, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लाला लाजपत राय, सूची बहुत लंबी है, ये सब लोग कांग्रेस के थे, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। अब वो उन्हीं में से ढूंढ रहे हैं। उसका कारण, मुख्य कारण ये है, जिसको वो स्वयं जानते हैं कि उनका कोई योगदान, जिनके वो वंशज है, उनके पूर्वजों का भी कोई योगदान हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में नहीं था, बल्कि ये उन लोगों से मिले थे, अंग्रेजी शासन से मिले थे, जिन्होंने हर तरह का, सत्ता का, पुलिस का दुरुपयोग करके आजादी के संग्राम को कुचलने का काम किया था।
जहाँ तक भारत की राजनीति की बात है, हमारे देश की विविधता, वो विविधता भाषाओं की है, शैली की है, रहन-सहन की है, धर्मों की है, ये बहुधर्मी, बहुभाषी देश है। यहाँ राष्ट्रीय दल भी हैं, यहाँ क्षेत्रीय दल भी हैं। हर दल भारत के संविधान के भीतर काम करते हैं। हर दल का अपना एक संविधान होता है। हर राजनीतिक दल स्वयं अपने निर्णय लेते हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास भी बड़ा परिवार है, जो लोग बैठकर उनके संगठन के अंदर संगठन मंत्री और दूसरे मंत्री बनकर बैठकर निर्णय करते हैं। अब वो तो उनके दल का काम करने का तरीका है, उसको वो प्रजातांत्रिक मानते हैं, उनका दृष्टिकोण है। मेरा प्रधानमंत्री से यही कहना है कि जो हमने कुछ बातें उठाई हैं, उस पर थोड़ा चिंतन करें, दूसरे दलों को नसीहत ना दें। बेहतर होगा कि भारत का चुनाव आयोग सही रुप में काम करता रहे और हर राजनीतिक दल की जवाबदेही देश के संविधान, कानून और चुनाव आयोग के प्रति रहती है।
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