बिहार विधानसभा के ऐतिहासिक नतीजे आने में कुछ घंटे ही बाकी रह गए हैं. इस बीच एग्जिट पोल ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि बिहार में लालू के लाल तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार बनने जा रही है. हालांकि नतीजे क्या होंगे इसके लिए कल कम से कम दोपहर 12:00 बजे तक सबको इंतजार करना होगा, लेकिन एग्जिट पोल के आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि बिहार विधानसभा में महागठबंधन को कम से कम बहुमत या ज्यादा से ज्यादा अपार बहुमत मिलने जा रहा है.
पाठकों को याद होगा कि 2015 के विधानसभा चुनाव में इसी तरह एग्जिट पोल में NDA को अपार बहुमत मिलता दिखायी दे रहा था, लेकिन नतीजे इसके विपरीत आए. उस समय वतन समाचार के एग्जिट पोल पूरी तरह से सटीक साबित हुये और नतीजे वतन समाचार के एग्जिट पोल के अनुसार ही आए और बिहार में महागठबंधन को बढ़त मिली. कल क्या होगा इसके लिए लोगों को बेसब्री से इंतजार है.
पहले हम अपने पाठकों को यह बता दें कि मीडिया जिस तरह से एमवाई (MY) गठबंधन का प्रचार कर रहा है वह सीधे-सीधे महागठबंधन के लिए आने वाले दिनों में घातक साबित हो सकता है, क्योंकि वतन समाचार को जमीन पर जो हकीकत नजर आए वह बिल्कुल एमवाई (MY) से ऊपर उठकर के थी, साथ ही उन लोगों का दिल टूट सकता है जिन्होंने गठबंधन को वोट किया था. एक तरफ जहां बिहार के यादव और मुसलमान एक बड़ी तादाद (70 to 80 %) में महागठबंधन के समर्थन में थे वहीं पिछड़ी जातियों का एक बड़ा धड़ा भी महागठबंधन के समर्थन में था. इसके साथ साथ बड़ी जातियां पहली बार दो फाड़ में बटती नजर आईं.
बड़ी जात के लोगों में से एक तो वह लोग थे जो 40 साल से ऊपर के थे. वह पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में थे और इसमें भी दो फाड़ में लोग बटे हुए थे. 1 लोग वह थे जो बीजेपी को वोट कर रहे थे, दूसरी तरफ जिन सीटों पर नीतीश कुमार ने अपने कैंडिडेट खड़े कर रखे थे वहां अगड़ी जातियों का वोट सीधे-सीधे चिराग पासवान को जा रहा था. ऐसे में अगर चिराग पासवान को सीटें मिलती हैं और नितीश पूरी तरह साफ़ हो जाते हैं तो लोगों को अचंभित नहीं होना चाहिए, क्योंकि अहम बात यह है कि कुर्मी समुदाय के भी कुछ वोट महागठबंधन को जाते नज़र आये.
ग्राउंड पर नीतीश कुमार के बजाय BJP का वोट सीधे-सीधे चिराग पासवान को ट्रांसफर हो रहा था. अगड़ी जातियों का एक बड़ा धड़ा जो 40 साल से ऊपर का था वह नीतीश की जगह सीधे-सीधे चिराग पासवान को वोट कर रहा था, और बड़ी बात यह है कि कुछ युवा भी चिराग में अपना भविष्य देख रहे थे, लेकिन 40 साल से नीचे और 30 साल के ऊपर के जो वोटर थे वह असमंजस में थे, वह फैसला नहीं कर पा रहे थे कि नीतीश को दें या चिराग पासवान को वोट करें, लेकिन जो 30 साल से नीचे के थे या कॉलेजों और स्कूलों में पढ़ रहे थे या जो अपर कास्ट के बच्चे नौकरी के इंतजार में बैठे थे उनको तेजस्वी यादव में एक उम्मीद की किरण नजर आ रही थी और उनको इस बात की अपेक्षा थी कि अगर तेजस्वी को राज्य की बागडोर मिलती है तो वह उनके लिए कुछ अच्छा करेंगे और उनको रोजगार से जुड़ेंगे और बरसों से पिछड़े बिहार को अगली सफ में लाने की कोशिश करेंगे.
ऐसे में अगड़ी जातियां पहली बार जो बीजेपी का कोर वोटर कांग्रेस से हटने के बाद मानी जाती थीं इस चुनाव में वह कई हिस्सों में बटी हुयी थीं. इसमें कुछ ऐसे भी वोटर थे जो कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. ऐसे में उन्होंने कांग्रेस को वोट किया भी. इस तरह देखा जाए अगर कांग्रेस को 70 सीटों में से एमवाई गठबंधन के साथ-साथ अगड़ी जातियों और कुछ दलित वोटों के साथ 30 से 45 सीटों के बीच में एक बड़ी कामियाबी मिले तो किसी को इससे अचंभित नहीं होना चाहिए.
वहीं दूसरी ओर लालू यादव के लाल को अगर अपने दम पर 80 से 110 सीटें मिलतीं हैं तो उसमें भी किसी को अचंभित नहीं होना चाहिए. हालांकि एक खतरे का संकेत महागठबंधन के लिए यह जरूर है जो उस की सीटों को अपार बहुमत से कुछ कम कर सकता है, क्योंकि यादव समुदाय के 20 से 30% लोग कांग्रेस की जगह बीजेपी के पक्ष में नज़र आये वहीं अपर कास्ट के वोटर भी कुछ RJD के खिलाफ थे, क्योंकि तेजस्वी यादव और उनके भाई तेजप्रताप यादव के बयानों की वजह से वह RJD से दुखी थे.
ऐसे में माना यह जा रहा है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को इस हिसाब से 130 से 160 सीटें मिलने का अनुमान है, हालांकि यह आंकड़ा 180 तक भी जा सकता है, क्योंकि लेफ्ट जो आंदोलनकारी संगठन है और मजदूरों के बीच अपनी अच्छी पकड़ के लिए जाना जाता है उसके आने से भी महागठबंधन को बड़ा फायदा मिलता नजर आ रहा है और लेफ्ट को भी 10 से 15 सीटें मिलने का अनुमान है.
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