एक कवि का करुण क्रंदन https://t.co/byovRZMdUE
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) April 19, 2021
एक कविता आप कुछ सवाल
इधर शव जल रहे थे
उधर भाषण चल रहे थे
महामारी पर चंद सवाल
आका को खल रहे थे
नया किला जीतने के
अरमान मचल रहे थे
ऑक्सीजन नहीं था
प्राण निकल रहे थे
टीका महोत्सव के
सुझाव चल रहे थे
श्मशान गुलज़ार थे
घर दहल रहे थे
साहब बेफिक्र थे
आंकड़े बदल रहे थे
क्या वे इंसान थे?
या राक्षस चल रहे थे?
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