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टूटा सबका विश्वास, छोड़ा सबका साथ: कांग्रेस का मोदी सरकार पर हमला

रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज एक महत्वपूर्ण विषय लेकर हम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से आपके बीच में उपस्थित हैं। अर्थव्यवस्था पर हमारे सम्मानित पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने आज एक और वीडियो जारी किया है। एक वीडियो हम दो दिन पहले जारी कर चुके हैं। इस प्रकार से हम 4 वीडियो, एक के बाद एक राहुल गांधी जी के जारी किये जाएंगे और दिखाएंगे कि किस प्रकार से जीएसटी हो, नोटबंदी जो आज के वीडियो में है, आर्थिक त्रास्दी हो, तालाबंदी हो, इन सबने किस प्रकार से देश की अर्थव्यवस्था को तबाह किया है, क्योंकि रोजी-रोटी, रोजगार, धंधा, व्यवसाय इसकी बात कोई नहीं करता, मन की बात सब करते हैं, परंतु देश की बात कब होगी, इसलिए राहुल जी ने देश की अर्थव्यवस्था की बात का ये नया अध्याय शुरु किया है और उसी कड़ी में आज इस प्रेस वार्ता का आयोजन भी किया गया है।

By: वतन समाचार डेस्क
फाइल फोटो
  • टूटा सबका विश्वास, छोड़ा सबका साथ: कांग्रेस का मोदी सरकार पर हमला

 

रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज एक महत्वपूर्ण विषय लेकर हम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी से आपके बीच में उपस्थित हैं। अर्थव्यवस्था पर हमारे सम्मानित पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी जी ने आज एक और वीडियो जारी किया है। एक वीडियो हम दो दिन पहले जारी कर चुके हैं। इस प्रकार से हम 4 वीडियो, एक के बाद एक राहुल गांधी जी के जारी किये जाएंगे और दिखाएंगे कि किस प्रकार से जीएसटी हो, नोटबंदी जो आज के वीडियो में है, आर्थिक त्रास्दी हो, तालाबंदी हो, इन सबने किस प्रकार से देश की अर्थव्यवस्था को तबाह किया है, क्योंकि रोजी-रोटी, रोजगार, धंधा, व्यवसाय इसकी बात कोई नहीं करता, मन की बात सब करते हैं, परंतु देश की बात कब होगी, इसलिए राहुल जी ने देश की अर्थव्यवस्था की बात का ये नया अध्याय शुरु किया है और उसी कड़ी में आज इस प्रेस वार्ता का आयोजन भी किया गया है।

 

73 वर्षों में पहली बार ‘अर्थव्यवस्था और आम आदमी’, दोनों की कमर तोड़ डाली गई है, ‘आर्थिक तबाही व वित्तीय आपातकाल’ में देश को धकेला जा रहा है - धड़ाम गिरती GDP इसका जीता-जागता सबूत है, ‘नोटबंदी-जीएसटी और देशबंदी’ मास्टर स्ट्रोक नहीं, ‘डिज़ास्टर स्ट्रोक’ साबित हुए हैं। आज देश में चारों ओर आर्थिक तबाही का घनघोर अंधेरा है। रोजी, रोटी, रोजगार खत्म हो गए हैं तथा धंधे, व्यवसाय व उद्योग ठप्प पड़े हैं। अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है तथा जीडीपी पाताल में चली गई है। देश को आर्थिक आपातकाल की ओर धकेला जा रहा है। 6 साल से ‘एक्ट ऑफ फ्रॉड’ से अर्थव्यवस्था को डुबोने वाली मोदी सरकार अब इसका जिम्मा ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानि भगवान पर मढ़कर अपना पीछा छुड़वाना चाहती है। साफ ही तो है, जो भगवान को भी धोखा दे रहे हैं, वो इंसान और अर्थव्यवस्था को कहां बख्शेंगे!

 

इससे पहले कि मैं कुछ गंभीर मुद्दों पर आऊं, सरकार का अहंकार किस प्रकार से सर चढ़कर बोल रहा है, हम आपको दो-दो सैंकिड की 10 स्लाइड दिखाना चाहेंगे और फिर मैं अपनी बात जारी रखूंगा।

 

This is the art of making excuses, अगर ये कहें कि कार की बिक्री कम क्यों हो गई, तो कहेंगे कि लोग अब टैक्सी में चलने लगे हैं।  अगर कहें प्याज की कीमतें क्यों बढ़ गई, तो कहेंगे कि हम तो प्याज ही नहीं खाते। अगर कहें कि जीएसटी इतनी पेचीदा क्यों है, तो कह देंगे कि कानून ही ऐसा है। तो ये कानून बनाया किसने? अगर कहेंगे कि भारत की अर्थव्यवस्था क्यों गिर रही है तो कहेंगे कि इसके लिए भगवान जिम्मेवार है। अगर कहेंगे कि नौकरियां क्यों जा रही हैं, तो कहेंगे कि नौकरियां जाना देश की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है। अगर कहेंगे कि अर्थव्यवस्था पर कोरोना का क्या कोई असर होगा, तो कहेंगे कि कोई असर ही नहीं पड़ता। ये देश की वित्त मंत्री कह रही हैं।

 

अगर कहें कि कोरोना पर विजय कैसे पाएं, तो कहेंगे कि 21 दिन मे ताली एवं थाली बजाइए और मोमबत्ती जलाइए। कोरोना का क्या इलाज है, कोई कहेंगे कि गो करोना- गो कोरोना, ये भारत सरकार के मंत्री हैं। कोई भाभी जी पापड़ बेचकर और खिलाकर कोरोना भगा रहा है, तो कोई शंख बजाकर। चीन को कैसे हराएं और अर्थतंत्र को कैसे बचाएं, इसका एक ही सिंगल प्वाइंट सोल्यूशन है, मोदी जी मोर के साथ फोटो खिंचवाएं। ये इस सरकार की अब हालत है। कोरोना के बारे में देश के स्वास्थ्य मंत्री क्या कहते हैं, वो कहते हैं भारत में कोरोना महामारी है ही नहीं।

 

हम 5 मुद्दे आपके समक्ष आज रखने वाले हैं।

 

1. GDP इसका अब नया मतलब हो गया है - ‘G-गिरती, D-डूबती, P- पिछड़ती’ अर्थव्यवस्था- 73 साल में पहली बार जीडीपी पहली तिमाही में घटकर माईनस 24 प्रतिशत होने का मतलब है कि आम देशवासियों की औसत आय धड़ाम से गिरेगी। जीडीपी के ध्वस्त होने के असर का साधारण व्यक्ति पर आंकलन करते हुए एक्सपर्ट्स बताते हैं कि 2019-20 में प्रति व्यक्ति सालाना आय ₹1,35,050 आंकी गई। साल 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी माईनस 24 प्रतिशत गिरी। दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में हाल इससे भी बुरा है। यानि पूरे साल में अगर जीडीपी माईनस 11 प्रतिशत तक भी गिरी, तो आम देशवासी की आय में बढ़ोत्तरी होने की जगह सालाना ₹14,900 कम हो जाएगी। एक तरफ महंगाई की मार, दूसरी ओर सरकारी टैक्सों की भरमार और तीसरी ओर मंदी की मार - तीनों मिलकर आम आदमी की कमर तोड़ डालेंगे। सच्चाई यही है।

 

2. टूटा सबका विश्वास, छोड़ा सबका साथ- लोगों का विश्वास सरकार से पूरी तरह उठ चुका है। This Government is not only facing a confidence deficit, but a complete collapse of confidence. लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों से पूछिए, तो वो बताएंगे कि बैंक न तो कर्ज देते हैं और न ही वित्तमंत्री की बात में कोई वज़न। उधर बैंकों को सरकार की बात पर विश्वास नहीं और सरकार को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया पर विश्वास नहीं। प्रांतों को केंद्रीय सरकार की बात पर विश्वास नहीं और जनता को सरकार पर विश्वास नहीं। चारों तरफ केवल अविश्वास का माहौल है। मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ का ‘जुमला आर्थिक पैकेज’ भी डूबती अर्थव्यवस्था, आर्थिक तबाही व गिरती जीडीपी को रोकने में फेल साबित हुआ। टूटे विश्वास व छूटते साथ का इससे बड़ा सबूत क्या होगा?

 

3. भयानक आर्थिक मंदी का सच क्या है, क्योंकि आँकड़े कभी झूठ नहीं बोलते- ‘झूठ का व्यापार’ और ‘भ्रम का प्रचार’ कर रही पाखंडी मोदी सरकार सच का आईना देखने से इंकार कर रही है। पर सच्चाई क्या है:- हमने 6 तथ्य आपके समक्ष रखे हैं - I) आर्थिक बर्बादी के चलते 40 करोड़ हिंदुस्तानी गरीबी रेखा से नीचे धकेले जा रहे हैं। ( ये हम नहीं ILO की रिपोर्ट कह रही है) II) भयानक आर्थिक मंदी के बीच 80 लाख लोगों ने EPFO से 30,000 करोड़ मजबूरन निकाले। जो कभी नहीं हुआ। III) अप्रैल से जुलाई, 2020 के बीच 2 करोड़ नौकरीपेशा लोगों की नौकरियां चली गईं। असंगठित क्षेत्र में लॉकडाऊन में यानि देशबंदी के दौरान 10 करोड़ से अधिक नौकरियां गईं। (ये हम नहीं, CMIE कह रही है) IV) देश की 6.3 करोड़ MSME इकाईयों में से केवल एक चौथाई ही 50 प्रतिशत उत्पादन कर पा रही हैं। अधिकतर धंधे ठप्प हैं या बंद होने की कगार पर हैं। ये MSME का आंकड़ा है, जो उन्होंने दिया है। V) साल 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में, जैसा आप जानते हैं, कंस्ट्रक्शन सेक्टर में माइनस 50.3 प्रतिशत की गिरावट, ट्रेड-होटल-ट्रांसपोर्ट में माईनस 47 प्रतिशत की गिरावट आई, मैनुफैक्चरिंग में माईनस 39.3 प्रतिशत की गिरावट आई व सर्विस सेक्टर में माईनस 26 प्रतिशत की गिरावट का मतलब है कि करोड़ों रोजगार चले गए और भविष्य में भी रिकवरी की उम्मीद नहीं।VI) एसबीआई की 1 सितंबर, 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 के पूरे साल की जीडीपी माईनस 10.9 प्रतिशत होगी या लगभग 11 प्रतिशत गिरने वाली है। अर्थव्यवस्था पर इसका क्या असर होगा, ये देश का लीड बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कह रहा है, आप खुद आंकलन कर सकते हैं।

 

4. केंद्र सरकार हुई ‘डिफॉल्टर’- प्रांतों को जीएसटी का पैसा देने से किया इंकार – ये सीधे-सीधे संघीय ढांचे  पर आक्रमण है व आर्थिक अराजकता है। 73 साल में पहली बार केंद्र सरकार घोषित रूप से डिफॉल्टर हो गई है। वित्त सचिव ने 11 अगस्त, 2020 को संसद की ‘वित्तीय मामलों की स्थायी समिति’ को साफ तौर से कहा कि भारत सरकार GST में प्रांतों का हिस्सा नहीं दे सकती व प्रांत कर्ज लेकर काम चलाएं। यही नहीं, 2020-21 में प्रांतों को GST कलेक्शन में 3 लाख करोड़ रुपए सालाना नुकसान होने वाला है (SBI Report)। सवाल ये है कि फिर प्रांत अपना खर्च कैसे चलाएंगे? अगर 3 लाख करोड़ कर्जा भी ले लें, तो उसका ब्याज देंगे कैसे, क्या केन्द्रीय सरकार प्रांतीय सरकारों के GST का हिस्सा देने से इंकार कर सकती है? ये संघीय ढांचे पर आक्रमण नहीं तो क्या, ये आर्थिक अराजकता नहीं तो क्या?

 

5. किसान-मजदूर-मध्यम वर्ग पर सुनियोजित हमला- I) आर्थिक मंदी की मार सह रहे मिडिल क्लास व नौकरीपेशा लोगों को EMI भुगतान का समय 31 अगस्त, 2020 से आगे न बढ़ा तथा लॉकडाऊन के दौरान EMI पर ब्याज वसूलने के निर्णय का शपथपत्र मोदी सरकार ने 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया। सारी उम्मीदें टूट गईं। मोदी सरकार ने सैलरिड क्लास और मिडिल क्लास को पूरी तरह से ब्याज में छूट देने से भी इंकार कर दिया। कॉर्पोरेट सेक्टर को तो 1 लाख 45 हजार करोड़ की टैक्स छूट दी जा सकती है, साल 2019-20 में 1,85,000 करोड़ के बैंक फ्रॉड हो सकते हैं, परंतु मिडिल क्लास और सैलरिड़ क्लास जो हैं, उनकी ना ईएमआई का मोडेटोरियम बढ़ाया जा रहा और ना ब्याज में छूट दी जा रही है, यह घाव पर नमक नहीं तो क्या है? II) किसान-मजदूर का नाम ले अपनी झूठी पीठ ठोंकने वाली सरकार ने उन्हें आत्महत्या की ड्योढ़ी पर पहुंचा दिया है। NCRB के मुताबिक साल 2019 में 42,480 किसान-मजदूर आत्महत्या को मजबूर हुए, यानि आर्थिक संकट के चलते रोज 116 किसान-मजदूरों की जिंदगी को आत्महत्या ने निगल लिया। पर सरकार क्या कर रही है? III) यही हाल बेरोजगारों का है। NCRB की ताजा रिपोर्ट ये दिखाती है कि साल 2019 में 14,019 बेरोजगार आत्महत्या को मजबूर हुए, यानि नौकरी के अभाव में रोज 38 बेरोजगारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सवाल ये है कि प्रधानमंत्री रात को सो कैसे पाते हैं, जिस देश में 116 किसान-मजदूर और 38 बेरोजगार आत्महत्या की कगार पर खड़े हों, आत्महत्या को चुन लेते हों।

 

अहंकार में डूबी मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों की तरक्की, किसानों की मेहनत, युवाओं के रोजगार - सबको हराकर केवल अपने दल की जीत की स्वार्थ सिद्ध करने में लगी है। विकराल आर्थिक संकट की इस घड़ी में देश की तरक्की मोरों को दाना चुगा कर, फोटो अपॉर्च्युनिटी बना कर, आत्ममुग्ध ‘परिधानमंत्री’ व चापलूस दरबारी कदापि नहीं कर सकते। इसके लिए ‘टेलीविज़न से विज़न’, ‘झूठ से सच’, ‘झांसों से वास्तविकता’ व ‘कथनी से करनी’ तक का सफर तय करना अनिवार्य है।

 

समय आ गया है, कि देश को इस अंधेरी गुफा से निकाल विकल्प के नए रास्ते पर ले जाया जाए। आर्थिक तबाही, बर्बादी व वित्तीय आपातकाल से उबरने का यही एक सूत्र है।

 

एक प्रश्न पर कि अनेक गैर भाजपा शासित राज्यों ने साफ कह दिया है कि GST की कमी को लेकर केंद्र सरकार उनको कर्जा लेकर दें, वो कर्जा नहीं लेंगे, ऐसे में स्थिति कैसे बनेगी? श्री सुरजेवाला ने कहा कि इस महत्वपूर्ण सवाल के लिए आपको साधूवाद। मोदी सरकार देश में आर्थिक अराजकता फैला रही है। मोदी सरकार ने देश के संघीय ढांचे पर हमला बोला है। मोदी सरकार देश को आर्थिक आपातकाल की ओर धकेल रही है। राजनीतिक गतिरोध से ऊपर उठकर जीएसटी कानून के लिए प्रांत इसलिए सहमत हुए थे क्योंकि यह अनिवार्य था कि जीएसटी कंपनसेशन में प्रांतों का हिस्सा और साल दर साल 14 प्रतिशत इजाफा दिया जाएगा। प्रांतों का टैक्स तो केन्द्रीय सरकार यानि मोदी सरकार ने इक्कट्ठा कर लिया, परंतु इस साल 2020-21 में प्रांतों का जीएसटी कंपनसेशन का हिस्सा देने से मोदी सरकार ने हाथ खड़े कर दिए, अगर केन्द्रीय सरकार ही डिफोल्ट घोषित करेगी, डिफोल्टर बन जाएगी, तो देश कैसे चलेगा? अगर केन्द्रीय सरकार ही प्रांतों का पैसा जबरन मार लेगी, चोरी कर लेगी, तो देश कैसे चलेगा? अगर केन्द्रीय सरकार ही प्रांतों के जीएसटी के पैसे पर डाका डालेगी, तो देश कैसे चलेगा? कांग्रेस के चारों राज्यों ने और मुझे बताया गया है कि वामपंथी दलों ने तथा तृणमूल कांग्रेस ने भी केन्द्र सरकार के इस सुझाव को कि आप कर्ज लो और प्रांत चलाओ, सिरे से खारिज कर दिया है। क्या आप प्रांतों की संपत्ति बेचकर, क्या आप प्रांतों के लोगों के भविष्य को गिरवी रखकर, ब्याज लेकर सरकारें चला सकते हैं? जवाब – नहीं में है। इसके विपरीत मोदी सरकार जीएसटी के अलावा 4 लाख करोड़ रुपए सालाना पेट्रोल-डीजल व दूसरे सेस और सरचार्ज लेकर इक्कट्ठा कर रही है, उसमें से भी एक फूटी कौड़ी प्रांतीय सरकारों को नहीं दे रही। हमने ये कहा था कि 14 वें वित्तीय आयोग की सिफारिश के अनुरुप सेस और सरचार्ज का 42 प्रतिशत हिस्सा भी दिया जाए और आखिरी पहलू – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की वो रिपोर्ट जो मैं आपको भेज रहा हूं, 1 सितंबर, 2020 की साफ तौर से कहती है कि कोरोना महामारी और आर्थिक संकट के चलते जो जीएसटी कंपनसेशन का पैसा पहले से आना था, उसमें भी 3 लाख करोड़ कम प्रांतों को आएंगे और कुल घाटा प्रांतों को 6 लाख 20 हजार करोड़ का होने वाला है। ऐसे में आप बताईए कि प्रांत कर्ज लेकर, प्रांतों के लोगों के भविष्य को गिरवी रखकर किस प्रकार से प्रांत चलाएंगे? मोदी सरकार द्वारा ये सीधे-सीधे आर्थिक अराजकता है, आर्थिक अपातकाल है और संघीय ढांचे पर हमला है।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि जिस तरह से आपने डेटा रखा, क्या इसके आधार पर माना जा सकता है कि देश की अर्थव्यवस्था कोलैप्स कर गई है? श्री सुरजेवाला ने कहा कि मोदी सरकार के पास अर्थव्यवस्था सुधारने का एक ही इलाज है कि मोरों को दाना चुगाईए, नहीं लगता कि देश की अर्थव्यवस्था मोरों को दाना चुगाने से या 3 बार कपडे बदल कर फोटो खिंचवाने से बदल पाएगी। देश की अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार ने पाताल में पहुंचा दिया है। देश की जीडीपी 24-24 प्रतिशत 73 वर्षों में पहली बार गिरी है। मोदी जी ये कहा करते थे कि जो 60 साल में नहीं हुआ, मैं 60 महीने में कर दूंगा, वो सच कहते थे। जिस देश की जीडीपी कभी पिछले 73 साल में 24 प्रतिशत नहीं गिरी थी, उस देश की जीडीपी को पाताल लोक में मोदी जी ने पहुंचा दिया। इस सरकार से देश की जनता का विश्वास उठ चुका है, अर्थशास्त्रियों का विश्वास उठ चुका है, संस्थाओं का विश्वास उठ चुका है और जब तक इस सरकार से छुटकारा नहीं लेंगे, देश की अर्थव्यवस्था, रोटी, रोजगार, उद्योग, धंधे और व्यवसाय दोबारा नहीं चल पाएंगे। अब ये बिल्कुल साफ है।

 

एक अन्य प्रश्न पर श्री सुरजेवाला ने कहा कि देश को आर्थिक आपातकाल या इकनॉमिक इमरजेंसी की ओर धकेल दिया गया है। अगर मैं ये कहूं कि प्रधानमंत्री मोदी जी और मोदी सरकार के नेतृत्व में देश में इस समय इकनॉमिक एनारकी है, आर्थिक अराजकता है, तो ये गलत नहीं होगा। आर्थिक बर्बादी और देश की अर्थव्यवस्था को पाताल लोक की ओर धकेलने का काम मोदी सरकार ने किया है। अब सवाल ये है कि देश इससे उबरेगा कैसे? इस सरकार में ना सोच है, ना दृष्टि है, ना रास्ता है। हर बार जब आर्थिक आपातकाल की स्थिति जैसे ही उत्पन्न हुई, तो ये टेलीविजन को ही विजन का मार्ग मान कर ध्यान भटकाने का काम करते हैं। कभी गुफा में बैठकर ध्यान लगाकर, कभी मोरों को दाना चुगाकर, कभी दाढ़ी बढ़ाकर, कभी प्रधानमंत्री की बजाए अपने आपको 'परिधान मंत्री' साबित करवाकर। सवाल ये है कि प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री देश की अर्थव्यवस्था के बारे में बोल क्यों नहीं रहे? उन्होंने देश को भगवान भरोसे क्यों छोड़ दिया है और अब तो भगवान पर भी इल्जाम लगा रहे हैं, वित्त मंत्री ने कहा कि इस सारी बात के लिए मोदी सरकार नहीं भगवान जिम्मेवार है। लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब ये भगवान को कटघरे में खड़ा कर मुकदमा चलवाएंगे। ऐसे में एक मेजर फाईनेंशियल और पॉलिटिक्ल सर्जरी की जरुरत है। जब प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री इस काबिल ना रहें कि वो देश को आर्थिक बर्बादी से बचा पाएं, तो क्या उन्हें अपने पद पर बने रहने का अधिकार है? जब सैलरेड क्लास, मिडिल क्लास और साधारण व्यक्ति पर टैक्सों के भार लाद दिए जाएं और दो या तीन पूंजीपतियों को पूरा देश बेचने की तैयारी कर ली जाए तो क्या ऐसी सरकार को एक दिन भी पद पर बने रहने का अधिकार है? जब सत्ता पर बैठे सत्ताधीशों को अपने वातानुकूलित कमरों में बैठे सत्ताधारियों को सडकों पर नंगे पांव चलते करोड़ो मजदूरों के पांव के फफोले ना दिखें और ना आत्महत्या करता किसान और बेरोजगार दिखे, तो क्या ऐसी सरकार को एक सैंकेड भी पद पर बने रहना चाहिए? ये देश के और आपके विवेक पर हम छोड़ते हैं, क्योंकि हमारा मानना है कि मोदी सरकार शासन का अधिकार खो चुकी है। जितनी देर और रहेंगे, देश को ये पाताललोक की ओर और ज्यादा धकेलेंगे।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि इस वक्त लद्दाख में जो हालात हैं, देश में जिस तरह से कोरोना के बाद हालात हैं और अर्थव्यवस्था की जो हालत है, ऐसे में यदि युद्ध जैसे हालात बनते हैं, तो क्या हम उससे निपट पाएंगे? श्री सुरजेवाला ने कहा कि आपके सवाल के दो पहलू हैं – पहला, कोरोना महामारी पर नियंत्रण में ये सरकार ओंधे मुँह गिरी है। अगले दो दिन में जिस प्रकार से कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है, 40 लाख के आंकड़े को कोरोना का संक्रमण पार कर जाएगा। आज देश में 82 हजार के करीब कोरोना के मामले प्रतिदिन सामने आ रहे हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक है। दुनिया में अब मौत की संख्या की तुलना में भारत में प्रतिदिन होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक है। अगर ये संक्रमण इसी गति से बढ़ता गया तो बहुत जल्द अगले 10 दिन में होगा कोरोना संक्रमण में भारत पहले पायदान पर होगा। ना पूरे बैड हैं, ना वेंटिलिटेर हैं, आप प्रांतों में, जिलों में, मुफसिल में, मैं अस्पतालों में हर रोज जा रहा हूं, ये चौंकाने वाली बात है कि अस्पतालों में बैड भर चुके हैं और अब मरीजों को आईटीआई, स्कूलों या खेती के केंद्रों में भर्ती करवाया जा रहा है। ना वहाँ वेंटिलेटर है, ना डॉक्टर, ना पैरामैडिक्स, ना स्टाफ। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने कोरोना मरीजों को इलाज की बजाए, उन्हें 'आत्मनिर्भर' छोड़ दिया है या भगवान भरोसे छोड़ दिया है। कोरोना महामारी से संकट के लिए नए बैड, नए अस्पताल, डॉक्टर्स, पैरामैडिक्स, नर्सिंग स्टाफ, इसके बारे में सरकार ने क्या कदम उठाए? अब तो सरकार ने, स्वास्थ्य मंत्री ने इस बारे देश को ब्रीफिंग करना बंद कर दिया, जैसे लोगों को अपने हाल पर छोड़कर और मोरों को दाना चुगाकर मोदी जी बेफ़िक्र हो गए हैं। ये अपने आप में गंभीर संक्रमण का संकट है, जो भारत के लिए आज सबसे विकट और विकराल रुप लिए हुए है। इसके साथ-साथ देश में आर्थिक आपातकाल के हालात हैं, फाईनेंशियल इमरजेंसी के हालात हैं, प्रांतों के पास तनख्वाह देने का पैसा नहीं, प्रांतों के पास पेंशन देने का पैसा नहीं, प्रांतों के पास बुजुर्गों, विधवाओं को पैसा देने का पैसा नहीं, किसान और मजदूर के वेलफेयर का पैसा नहीं, तो सरकारें चलेंगी कैसे? क्योंकि हिंदुस्तान के लोग तो प्रांतों में रहते हैं, केवल 0.5 प्रतिशत या आधा प्रतिशत आबादी ही सीधे भारत सरकार के नियंत्रण में है। दूसरी तरफ आप प्रांतों को जीएसटी कंपनसेशन का पैसा नहीं दे रहे, प्रांतों को 6 लाख 20 हजार करोड़ का रेवेन्यू घाटा जीएसटी का इस साल हो रहा है। अगर 3 लाख करोड़ कर्ज भी ले लें, तो बाकी 3 लाख 20 हजार करोड़ कहाँ से आएगा, क्योंकि भारत सरकार उनका पैसा खा गई, घोषित डिफोल्ट हो गई, तो प्रांत चलेंगे कैसे, रोजी-रोटी चलेगी कैसे, तनख्वाह देंगे कैसे, पेंशन देंगे कैसे, अस्पताल, बिजली और पानी चलेगा कैसे, ये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है?

 

तीसरा संकट है, चीन के दुस्साहस का, मैं आज विशेष तौर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से हमारी तीनों सेनाओं के जज्बे को सलाम करता हूं और उनकी बहादुरी के आगे नमन करता हूं, हर कांग्रेसजन की ओर से, जो इस विकट, विकराल परिस्थिति में भी चीन की तोपों के आगे, चीन की गोलियों के आगे, चीन के दुस्साहस के आगे अपना सीना ताने खड़ी है। हमें नाज है हमारी सेनाओं पर, हमें नाज है हमारे फौजियों पर, जो सर्वोच्च कुर्बानी देकर भी भारत मां की रक्षा कर रहे हैं। चीन ने अपने पैर अरुणाचल प्रदेश, भूटान, सिक्किम, उत्तराखंड, लद्दाख, चारों ओर चीन पसर रहा है। मिसाइल बैट्री और मिसाइल यूनिट लगाए जा रहे हैं, चिकन नेक और सिलिगुड़ी कोरिडोर तक चीन द्वारा निर्माण किया जा रहा है। हमारे एयरपोर्ट को चीन की मिसाइल के रेंज में लाया जा रहा है, परंतु भारत सरकार क्या कर रही है? सेना तो चीन को ठोस जवाब दे रही है, सेना पर हमें गर्व है, तीनों सेनाओं पर, पर भारत सरकार की जिम्मेवारी क्या है? इन तीनों पहलूओं पर देशवासियों को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

 

एक प्रश्न पर कि क्या कोई सुझाव भी है कांग्रेस की तरफ से सरकार को देने के लिए कि वो कदम उठाए जाएं ताकि अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सके और दूसरा कि आपने कहा कि ऐसे हालात में एक पल भी सरकार को पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, क्या कांग्रेस वित्त मंत्री का इस्तीफा मांग रही है, श्री सुरजेवाला ने कहा कि अर्थव्यवस्था सुधारने का पहला कदम, अगर आप श्रीमती सोनिया गांधी जी और श्री राहुल गांधी जी के वो सारे पत्र और वो सारी वार्निंग जो इस आर्थिक सुनामी से पहले कांग्रेस पार्टी ने सरकार को आगाह कर दी, उनका अवलोकन करें, तो जवाब उनमें मिल जाएगा। माननीय पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जी ने इस बारे में सार्वजनिक तौर से लेख लिखकर सरकार को आगाह किया था, परंतु प्रधानमंत्री जी ने, वित्त मंत्री जी ने, स्वास्थ्य मंत्री जी ने, स्वास्थ्य की सुनामी हो या आर्थिक सुनामी हो, जब-जब राहुल गांधी जी ने ये सारे मुद्दे जनवरी-फरवरी से लेकर और आज तक पिछले 8 से 10 महीने में उठाए, तो कांग्रेस पार्टी का मजाक उड़ाने के अलावा कुछ नहीं किया। मैं याद दिलाऊँ, ये वही स्वास्थ्य मंत्री हैं, जिन्होंने कहा था, जब राहुल गांधी जी ने कहा कि कोरोना एक महामारी है, तो उन्होंने कहा कि कोरोना नाम की कोई महामारी या बीमारी ही नहीं है, ये उनका जवाब था।

 

जब आर्थिक सुनामी की बात राहुल गांधी जी ने की तो उस समय पीयूष गोयल जी ने, वित्त मंत्री निर्मला जी ने कांग्रेस पार्टी का उपहास-मजाक उड़ाया, आज वो सब पूरी दुनिया के सामने ख़ुद, देश के प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री मजाक का पात्र बन गए, पर दुख की बात ये है कि उनकी इस हठधर्मिता ने, उनके इस अहंकार ने, उनकी इस सोच ने देश को आर्थिक बर्बादी की कगार पर, आर्थिक आपातकाल में धकेल दिया। इसका सीधा-सीधा एक हल है, लोगों के हाथ में पैसा डालिए। अगर आप देश के बहुमत के हाथ में 15 हजार रुपया डाल दें, जैसा केवल कांग्रेस और राहुल गांधी जी ने नहीं, नोबेल पुरस्कार जो विजेता हैं, हिंदुस्तान के अर्थशास्त्रियों ने भी कहा, देश के पूर्व आरबीआई के गवर्नर रघुराम राजन जी ने कहा, उर्जित पटेल जी ने कहा कि आप देश के साधारण लोगों के हाथ में 15 हजार रुपया डालिए, उनके खातों में सीधा हस्तांतरण करिए, अगर आप ऐसा करेंगे, तो अर्थव्यवस्था में खपत बढ़ जाएगी, जैसे ही खपत बढ़ेगी, मैन्यूफैक्चरिंग और एमएसएमई का पहिया चलना शुरु हो जाएगा, और देश की अर्थव्यवस्था किक स्टार्ट होगी। देश की अर्थव्यवस्था को आर्थिक किक स्टार्ट करने की जरुरत है, ये मालूम प्रधानमंत्री जी को है।

 

4 लाख करोड़ रुपये आप पेट्रोल-डीजल और दूसरे सेस और सरचार्ज लेकर इकट्ठा करते हैं, प्रधानमंत्री जी एक साल का वो 4 लाख करोड़ रुपये, जिसमें ये राशि तो मुश्किल से 2 लाख 20 हजार करोड़ ही बनती है। ये 4 लाख करोड़ रुपया आम हिंदुस्तानी की जेब में डाल दीजिए एक साल के लिए और फिर देखिए कि अर्थव्यवस्था कहाँ से कहाँ पहुंच जाती है। साधारण सोल्यूशन है, पर सरकार है कि मानती ही नहीं है और ऐसे में ऐसी वित्तमंत्री, ऐसे प्रधानमंत्री और ऐसी सरकार, जिन्होंने आर्थिक अराजकता की ओर देश को धकेला हो, मैं ये आपके विवेक पर छोड़ता हूँ और देशवासियों के विवेक पर कि क्या उन्हें एक दिन भी अपने पद पर बना रहना चाहिए। जिस वित्तमंत्री ने 24 प्रतिशत जीडीपी को डुबो दिया हो, जिस वित्तमंत्री ने देश में रोजी-रोटी और रोजगार के लाले पड़े हों, जिसके कार्यकाल में, क्या ऐसी वित्तमंत्री को एक क्षण भी अपने पद पर बने रहना चाहिए, हमारा ये मानना है कि वित्तमंत्री को एक क्षण भी अपने पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है, ऐसी वित्तमंत्री को अपने विवेक से या प्रधानमंत्री को ऐसी वित्तमंत्री को बर्खास्त कर देना चाहिए।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि फेसबुक को लेकर आप लोगों ने मसला उठाया और लगातार प्रेसवार्ताएं हुईं और कल जो संसदीय स्टैंडिंग कमेटी की बैठक थी, उसमें बीजेपी का काउंटर ऑफेंसिव आया है, इसके उलट उन्होंने आरोप लगाकर नाम गिनाएं हैं, जो फेसबुक के मैनेजमेंट में है, और उनकी कांग्रेस मानसिकता है, जो उनके फैक्ट चैकर्स हैं, वो भी वामपंथी औऱ कांग्रेस माइंडेड हैं, ऐसा बीजेपी के तमाम सांसदों का कहना था और सवाल भी उठाया है कि लगातार शो बाजी करने से काम नहीं चलेगा कमेटी में, श्री सुरजेवाला ने कहा कि जैसा कि आप वरिष्ठ पत्रकार जानते हैं, संसदीय समिति की बैठक कॉन्फीडेंशियल होती है, मैं उसका सदस्य नहीं हूँ और वहाँ क्या हुआ मैं उस पर टिप्पणी नहीं कर सकता, परंतु जो आपने फेसबुक के संदर्भ मे कहा, मैं जरुर दोहराना चाहूँगा।

 

तथ्य क्या हैं? ‘वाल स्ट्रीट जर्नल’ अमेरिका का सबसे नामी-गिरामी अखबार है, ‘टाइम’ मैगजीन दुनिया की सबसे बड़ी मैगजीन में से एक है। इन दोनों मैंगजीन्स ने और अखबार ने तीन लेख लिखे औऱ उन तीन लेख से क्या तथ्य सामने आए-

 

1. फेसबुक इंडिया की है, माननीय अंखी दास जी, वे अपनी इंटरनल ईमेल्स में मोदी जी का महिमामंडन कर रही हैं और विपक्ष समेत कांग्रेस के लिए अपमानजनक या गाली-गलौच की भाषा का शायद इस्तेमाल कर रही हैं।

 

2. अंखी दास जी, जो फेसबुक इंडिया की हैड हैं, उनका ये कहना है कि उन्होंने मोदी जी को जिताया, यानि ये साफ है कि फेसबुक इंडिया और फेसबुक हिंदुस्तान के प्रजातांत्रिक प्रोसेस के अंदर दखलअंदाजी कर रहे हैं।

 

3. व्हाट्सएप के जो मौजूदा मुखिया हैं, जो पब्लिक पॉलिसी हैड भी थे, उनके तथ्य सामने आए कि वो किस प्रकार से भाजपा से संबंधित वेबसाइट्स चलाते रहे हैं। इसीलिए एक बात बिल्कुल साफ है कि फेसबुक इंडिया और व्हाट्सएप, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है औऱ स्वाभाविक तौर से निष्पक्ष और गैर राजनीतिक होने चाहिएं, उनकी भूमिका भारतीय जनता पार्टी के अग्रिम संगठनों की बन गई है। वो भाजपा के प्रचार का एक तरह से जमावड़ा बने हैं और उससे भी संगीन बात जो है, कि वो भारत में नफ़रत फैलाने वाले, समाज को बांटने वाले, नफ़रत फैलाने वाली जो भाजपा के नेताओं की टिप्पणियाँ और फेसबुक पोस्ट्स हैं, उनको बढ़ावा दे रहे हैं, भाजपा विरोधी पेजेस और पोस्ट को हटा रहे हैं।

 

4. भारतीय प्रजातंत्र में किसी विदेशी कंपनी को दखलअंदाजी की इज़ाजत नहीं है। अगर कोई कंपनी भारतीय प्रजातंत्र में दखलअंदाजी कर रही है तो ये अपने आप में एक अपराध है, ये तीनों चीज क्रिमिनल अपराध भी हैं और सिविल अपराध भी हैं, इसके एवज में पहले व्हाट्सएप को लाइसेंस दिया गया और अब व्हाट्सएप को पेमेंट लाइसेंस भी शायद दिया जा रहा है। हमने केवल ये कहा था कि क्योंकि वो जांच होने ही नहीं दे रहे, जैसे अमेरिका में हुआ, जैसे ब्राजील में हुआ, एक संयुक्त संसदीय समिति जिसमें सब पार्टियों के सदस्य हों, वो इसकी जांच करें, फेसबुक के खिलाफ अपराधिक मामला भी दर्ज हो और फेसबुक इंडिया की ये जो लीडरशिप है, जो निष्पक्ष होने के बजाय प्रजातंत्र से छेड़छाड़ का कुत्सित षड़यंत्र कर रही हैं, इनको देश के कानून के मुताबिक सजा मिले।

 

स्वाभाविक तौर से भाजपा व मोदी सरकार फेसबुक इंडिया की, फेसबुक इंडिया की पीआर एजेंसी और पीआर एजेंट बन गए हैं, देश के आईटी मिनिस्टर तो वो स्वाभाविक तौर से फेसबुक और व्हाट्सएप, जो भाजपा का षड़यंत्रकारी टूल हैं, उनके पक्ष में आ खड़े हुए हैं, इसीलिए संसदीय आईटी कमेटी को अपना काम नहीं करने दे रहे हैं, पर क्या बाहुबल के आधार पर, संख्या बल के आधार पर देश के प्रजातंत्र को तोड़ा जा सकता है, ये बात मैं आपके और आपके दर्शकों के विवेक पर छोड़ता हूँ।

 

पार्लियामेंट सत्र में क्वेश्चन आवर को खत्म करने से संबंधित पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री सुरजेवाला ने कहा कि संसद में, विधायिकाओं में दो तरह के सवाल पूछे जाते हैं, एक स्टार्ड क्वेश्चन और एक अनस्टार्ड क्वेश्चन। स्टार्ड क्वेश्चन इसलिए पूछे जाते हैं, ताकि संसद के पटल पर उस सवाल से जुड़े जवाब में सप्लिमेंटरी सवाल पूछकर सरकार के झूठ, नीतियों की कमी, लोक कल्याणकारी निर्णय हैं, उनको न लेने का कारण और विरोधी निर्णयों का जवाब और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। मोदी सरकार प्रजातंत्र और संसद दोनों का गला घोंटना चाहती है। मोदी सरकार ने पूरी संसदीय प्रणाली पर षड़यंत्रकारी हमला बोल रखा है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार संसद को पंगु बना रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार संसद को खारिज करना चाहते हैं। सवालों को, क्वेश्चन आवर को खारिज करने का मोदी सरकार का निर्णय सरकार की तानाशाही और कुत्सित षड़यंत्र का ज्वलंत सबूत है। क्या कारण है अगर संसद बैठ सकती है तो मंत्री खड़े होकर स्टार्ड क्वेश्चन का जवाब और सप्लिमेंटरी सवालों का जवाब नहीं दे सकते, क्या इसका कोई लॉजिक हो सकता है? क्या सवाल पूछना संसद का समय नष्ट करना है, क्या मोदी सरकार संसद पर तालाबंदी करना चाहती है, क्या मोदी सरकार संसद को पंगू नहीं बना रही, क्या मोदी सरकार देश के 130 करोड़ लोगों के प्रतिनिधियों की आवाज को पूरी तरह से दबा देना चाहती है? सच्चाई यही है। ये सरकार न सवाल पूछने देती है, न सवालों का जवाब देती है, ये सरकार पूरी तरह से तानाशाही पर उतर आई है। प्रधानमंत्री कोरोना पर, चीन पर, बेरोजगारी पर, आर्थिक मंदी पर, आर्थिक अराजकता पर, जीएसटी कंपंसेशन पर, जाती हुई जिंदगियों पर, किसान मजदूर की व्यथा पर, आत्महत्याओं पर जवाब देने से घबरा रहे हैं और इसीलिए मोदी सरकार ने देश के इतिहास में 73 साल में जो नहीं हुआ, वो कर रहे हैं, ये संसद को बंधक बना रहे हैं, प्रजातंत्र को बेड़ियों में डालना चाहते हैं और संसदीय प्रणाली का खात्मा चाहते हैं, कांग्रेस पार्टी इसे कभी स्वीकार नहीं करेगी, हम पुरजोर विरोध करेंगे, संसद के अंदर भी और संसद के बाहर भी।

 

 

 

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