2015 के विधानसभा में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के आपसी तालमेल के बाद बिहार में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बना और आरएसएस के खिलाफ दोनों दलों ने मिल कर मुहिम चालाई। यह महागठबंधन बिहार में सरकार बनाने में जरूर कामयाब रहा लेकिन साल भर बाद ही यह गठबंधन बिखर गया और नीतीश कुमार की पार्टी ने कई तरह के आरोप आरजेडी और उनके नेताओं पर लगाकर गठबंधन से खुद को अलग कर लिया और भारतीय जनता पार्टी के साथ जाकर के सरकार बना ली।
नीतीश कुमार गठबंधन से अलग क्यों हुए? बीजेपी का दामन उन्होंने क्यों थामा? यह एक ऐसा राज है जिस से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है, लेकिन अब उसी बीजेपी की ओर से नीतीश कुमार घिरते जा रहे हैं। बीजेपी और नीतीश कुमार का 50/50 का गठबंधन 2020 के विधानसभा चुनाव में जरूर नजर आ रहा है, लेकिन इसी गठबंधन के साथी लोजपा का गठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के फैसले ने बहुत सारे सवाल खड़े कर दिए हैं।
प्रश्न यह उठता है कि क्या लोजपा बीजेपी के लिए बी टीम के तौर पर काम कर रही है। इस सवाल को बल इस लिए मिल जाता है क्यों कि बीजेपी पूरी तरह खामोश है और वह नीतीश को पराजित करने के लिए और उनके खिलाफ बिहार में वातावरण बनाने के लिए क्या सच में लोजपा को आगे कर रही हैं? क्योंकि नीतीश के खिलाफ चिराग मुखर हैं और बीजेपी के साथ खड़े हैं। जानकारों का मानना है कि 122 सीटें तो वह होंगी जिन पर चिराग नीतीश के खिलाफ कैंडिडेट खड़े करेंगे लेकिन 21 सीटें वह होंगी जिनमें वह बीजेपी के खिलाफ कैंडिडेट भी खड़ा करेंगे। ऐसे में प्रश्न ये उठता है कि क्या बीजेपी इन सीटों पर कोई कैंडिडेट देगी या खामोशी से चिराग पासवान को समर्थन करेगी? या उनको अपना वोट ट्रांसफे कर देगी। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर बीजेपी डमी कैंडिडेट देती है तो या खामोशी से अपने वोटों को चिराग की पार्टी को ट्रांसफर करा देती है तो भी ऐसी सूरत में अगर चिराग 21 सीटों में से 15 सीट भी जीत लेते हैं और उधर 122 सीटें (जहां उन्हों ने नीतीश के खिलाफ उम्मीदवार दिए हैं) में से अगर बीजेपी 10 सीटों पर भी अपना वोट चिराग को ट्रांसफर करवा देती है तो यह नीतीश के लिए खतरे की घंटी होगी।
ऐसी स्थिति में अगर बीजेपी अपने 121 सीटों में से 80 सीट भी जीत लेती है तो आसानी से बीजेपी अपना मुख्यमंत्री का दावा ठोक सकती है या नीतीश से अलग होकर गठबंधन बना सकती है। प्रश्न यह भी उठता है कि चिराग पासवान के जरिए तेजस्वी यादव को शुभकामनाएं दिए जाने के बाद कि क्या बीजेपी चिराग के जरिए तेजस्वी पर भी डोरे डालने की कोशिश कर रही है। अगर विधानसभा चुनाव के बाद जरूरत पड़ती है तो क्या तेजस्वी बीजेपी का समर्थन देने के लिए तैयार होंगे।
यह और इन जैसे अनेकों सवाल हैं जो जन्म ले रहे हैं। क्योंकि एक तरफ जहां चराग नीतीश के खिलाफ जा रहे हैं वहीं चिराग ने तेजस्वी को शुभकामनाएं देकर बहुत सारे प्रश्न खुद ब खुद खड़े कर दिए हैं। विधानसभा चुनाव के बाद क्या होगा अभी तक किसी दल की तरफ से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है कि कौन किसके साथ जाएगा। सरकार किसकी बनेगी नहीं बनेगी यह फैसला तो जनता को करना है।
इधर आरजेडी कांग्रेस वामदलों के गठबंधन को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। जानकारों का मानना यह है कि इस गठबंधन में कांग्रेस को इसलिए फायदा हो सकता है क्योंकि कांग्रेस को वह सीटें दी जा रही हैं जिस पर JDU के विधायक हैं। ऐसे में अगर जनता को यह मैसेज चला गया कि नीतीश को वोट देना बर्बाद करने के बराबर होगा तो आवाम कांग्रेस की तरफ झुक सकती है। ऐसी सूरत में कांग्रेस अपने 70 सीटों में से काफी सीटें निकालकर बिहार में अपने आप को मजबूत कर सकती है।
खबर यह है कि आरजेडी अक्सर उन सीटों पर लड़ेगी जिनमें मुस्लिम यादव बाहुल्य हैं या जिन पर बीजेपी के विधायक हैं, लेकिन आरजेडी के लिए ज्यादा मुश्किल इसलिए होगा कि क्या वह MY गठजोड़ बनाने में कामियाब होती है। क्यों RJD के वोटरों पर यह आरोप लगता रहा है कि अगर RJD कोई मुस्लिम उम्मीदवार देती है तो उसका अपना कोर वोट बीजेपी को ट्रांसफर हो जाता है।
इस में कितनी सच्चाई है यह तो समय बतायेगा लेकिन RJD और बीजेपी की आमने सामने की टक्कर में लड़ाई आसान नहीं होगी, क्योंकि पिछले कुछ सालों में तेजस्वी की छवि कुछ धूमिल हुयी है। अभी भी आरजेडी आधे से ज्यादा उन सीटों पर लड़ेगी जहां उसके अपने विधायक हैं। ऐसे में आधे से कम उन सीटों पर लड़ेगी जहां उसकी बीजेपी से टक्कर होगी। ऐसे में RJD अपने कोर वोट को कैसे रोकेगी यह दिलचस्प होगा। क्यों अगर RJD यादव वोट रोकने में कामियाब नहीं होती है तो माना यही जा रहा है कि मुस्लिम वोट AIMIM या इन जैसे दलों की ओर जा सकता है। ऐसे में RJD के लिए खतरा हो सकता है, लेकिन लड़ाई दिलचस्प हो सकती है।
ऐसे में कांग्रेस के लिए अपने स्तर पर WIN WIN की सिचुएशन नज़र आ रही है। लेकिन क्या होगा क्या नहीं होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। इन तमाम बातों के बीच घाटा नितीश कुमार का नजर आ रहा है, लेकिन क्या सच में नीतीश का घाटा होगा या नीतीश कोई और चाल चलेंगे कहना जल्दबाज़ी होगी। क्योंकि अभी तो नीतीश बीजेपी के साथ ही गठबंधन में नजर आ रहे हैं। इधर खबर यह भी है कि बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे को बीजेपी अपने साथ ज्वाइन करा सकती है। अगर बीजेपी ऐसा करती है और गुप्तेश्वर पांडे बीजेपी को ज्वाइन करते हैं तो फिर गठबंधन में खटास पड़ना तय है, लेकिन क्या होगा क्या नहीं होगा, इसके लिए थोड़ा इंतज़ार करिये। इस मामले में वतन समाचा ने पांडेय से बात की कोशिश की लेकिन बात नहीं हो सकी, हमें उनके मत का भी इंतज़ार है।
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