केंद्र सरकार ने ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टलों, ऑनलाइन कॉन्टेंट प्रोवाइडरों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (Ministry of I&B) के तहत लाने की अधिसूचना जारी कर दी है. ज्ञात रहे कि केंद्र सरकार ने इस के पहले सुप्रीम कोर्ट में तबलीग़ी जमाअत मामले में वकालत की थी कि ऑनलाइन माध्यमों का नियमन (Regulation of Digital Media) टीवी से ज्यादा जरूरी है, और अब सरकार ने ऑनलाइन माध्यमों से न्यूज़ या कॉन्टेंट देने वाले माध्यमों को मंत्रालय के तहत लाने का कदम उठाया है
शीर्ष सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने इस दिशा में कदम भी उठाना शुरू कर दिया है. सूत्रों ने बताया कि सरकार ने अधिसूचना जारी करने के बाद अब गाइडलाइन तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिस पर काम जारी है और आने वाले दिनों में जल्द ही गाइडलाइन की पूरी रूपरेखा देश के सामने रखी जाएगी.
याद रहे कि मोदी सरकार पर कई बारी आरोप लगता रहा है कि सरकार मीडिया की स्वतंत्रता पर लगाम लगाना चाहती है, वैसे मोदी सरकार सब से ज़्यादा डिजिटल इंडिया का प्रचार करती रही है और डिजिटल मीडिया को लेकर अब रूल regulation बना रही है, हालांकि सरकार कई बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है जिस से मीडिया की स्वतंत्रता पर किसी तरह की कोई लगाम कसी जाए, लेकिन सरकार साथ ही झूठी खबरों के प्रचार प्रसार पर चिंता भी प्रकट करती रही है.
शायद इसी के तहत अब सरकार ऐसे नियम और कानून बनाने जा रही है, जिस से डिजिटल मीडिया की जवाबदेही तय हो और झूठी ख़बरों के प्रसार पर रोक लग सके. कैबिनेट सचिवालय की ओर से मंगलवार रात जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, नेटफ्लिक्स जैसे ऑनलाइन सामग्री प्रादाताओं को भी मंत्रालय के दायरे में लाया गया है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर वाली इस अधिसूचना में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 77 के खंड तीन में निहित शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत सरकार ने (कार्य आवंटन) नियमावली, 1961 को संशोधित करते हुए यह फैसला किया है. अधिसूचना के साथ ही यह तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है और सूचना व प्रसारण मंत्रालय को ऑनलाइन मंचों पर उपलब्ध फिल्म, ऑडियो-वीडियो, न्यूज और करंट अफेयर्स से संबंधित सामग्रियों की नीतियों के विनियमन का अधिकार मिल गया है.
अधिसूचना के मुताबिक, ‘इन नियमों को भारत सरकार (कार्य आबंटन) 357वां संशोधन नियमावली, 2020 कहा जाएगा. ये एक ही बार में लागू होंगे.' बता दें कि वर्तमान में डिजिटल कंटेंट के नियमन के लिए कोई कानून या फिर स्वायत्त संस्था नहीं है. प्रेस कौंसिल प्रिंट मीडिया के नियमन, न्यूज चैनलों के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स असोसिएशन और एडवर्टाइज़िंग के नियमन के लिए एडवर्टाइज़िंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया है. वहीं, फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन है.
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने OTT प्लेटफॉर्म्स पर स्वायत्त नियमन की मांग वाली याचिका को लेकर केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी थी. शीर्ष अदालत ने इस संबंध में केंद्र सरकार, सूचना व प्रसारण मंत्रालय और मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया को नोटिस भेजा था. इस याचिका में कहा गया था कि इन प्लेटफॉर्म्स के चलते फिल्ममेकर्स और आर्टिस्ट्स को सेंसर बोर्ड के डर और सर्टिफिकेशन के बिना अपना कंटेंट रिलीज करने का मौका मिल गया है. बता दें कि OTT प्लेटफॉर्म्स पर न्यूज पोर्टल्स के साथ-साथ Hotstar, Netflix और Amazon Prime Video जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स भी आते हैं.
मंत्रालय ने अदालत को एक अन्य केस में बताया था कि डिजिटल मीडिया के नियमन की जरूरत है. मंत्रालय ने यह भी कहा था कोर्ट मीडिया में हेट स्पीच को देखते हुए गाइडलाइंस जारी करने से पहले एमिकस के तौर पर एक समिति की नियुक्ति कर सकता है.
पिछले साल सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी, जिससे कि मीडिया की स्वतंत्रता पर कोई असर पड़ेगा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ फिल्म्स पर जिस तरह का नियमन है, उसी तरह का कुछ नियमन ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म्स पर भी होना चाहिए.
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