पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक में एक प्रस्ताव पारित करते हुए, विभाजनकारी कानून नागरिकता संशोधन एक्ट को तत्काल रुप से वापस लेने और बीजेपी शासित राज्यों में सीएए के ख़िलाफ जारी लोकतांत्रिक प्रदर्शनों को कुचलने की कोशिश बंद करने की मांग की गई।
सीएए कानून पास होने के बाद से देश भर में बड़े पैमाने पर हो रहे जन विरोध प्रदर्शनों से साबित होता है कि अधिकतर लोगों ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित धर्म के आधार पर नागरिकता के विचार को पूरी तरह से रद्द किया है। इस कानून के ख़िलाफ विभिन्न शहरों और गांवों में सड़कों पर उतरे लाखों लोगों का कहना है कि वे धार्मिक बुनियाद पर देश के एक और बंटवारे की कोशिश को किसी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे। सरकार सबके सामने देशभर में एनआरसी लाने का विचार छोड़ने और डिटेंशन सेंटर की मौजूदगी का इनकार करने पर मजबूर हुई है, यह हकीकत मोदी और अमित शाह के अहंकार पर एक ज़ोरदार तमांचा और जनता की बड़ी जीत है। यह भी बड़ी आशाजनक बात है कि 11 राज्यों की सरकारों ने एनआरसी लागू करने से मना कर दिया है।
बैठक में बीजेपी शासित राज्यों में पुलिस द्वारा लोकतांत्रिक प्रदर्शनों को कुचलने के अमानवीय तरीके की कड़ी निंदा की गई। प्रदर्शनों में लोगों के बड़ी संख्या में शामिल होने के बावजूद, हर जगह लोग बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे और उन्होंने कहीं पर भी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया। फिर भी बीजेपी शासित राज्यों की पुलिस ने उनके साथ किसी फौजी तानाशाही सरकार जैसा रवैया अपनाया। एएमयू में पुलिस ने जिस तरह से हिंसा बरती, वह जामिया मिलिया से भी ज़्यादा ख़ौफनाक था। लखनऊ और आसपास के इलाकों का दौरा करने वाली एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट से पता चलता है कि अकेले उत्तर प्रदेश के अंदर शहरों और गांवों में निर्दोषों पर पुलिस की बर्बरता के नतीजे में, लगभग 27 लोगों की मौत हो चुकी है और 800 लोग घायल हुए हैं। प्रदेश से मिलने वाले वीडियो और दूसरे सबूत यह बताते हैं कि तोड़फोड़ में सबसे आगे पुलिस ही रही है और उन्होंने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ अंधाधुंध हिंसा बरती है। ऐसी रिपोर्टें भी मिल रही हैं कि विभिन्न संगठनों के नेताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमों में फंसाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया और पुलिस की हिरासत में उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद ने इस बात की तरफ भी इशारा किया कि उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के ख़िलाफ खुली साजिश रच रही है। प्रदेश कमेटी के कन्वीनर वसीम अहमद और 2 सदस्य क़ारी अशफाक़ और मोहम्मद नदीम को पहले लखनऊ से गिरफ्तार किया गया और अब उनपर गंभीर मुकदमे लगाकर उन्हें मीडिया के सामने हिंसा के मास्टरमाइंड के रूप में पेश किया जा रहा है। पुलिस ने उनमें से दो का चेहरा ढककर उन्हें मीडिया के सामने पेश किया ताकि इस पूरे मामले के पीछे आतंकवाद का माहौल तैयार किया जा सके। यह गिरफ्तारियां देशभर में जारी जन प्रदर्शनों को किसी चरमपंथी गतिविधि के तौर पर पेश करते हुए, उन्हें दबाने और बदनाम करने की नापाक साज़िश का हिस्सा हैं। पूरे देश में जनता विभाजनकारी कानून सीएए और देशभर में एनआरसी लाने के मंसूबे के खि़लाफ बड़े पैमाने पर एक दूसरे के साथ मिलकर सड़कों पर उतर रही है। और अब सरकार लोगों का ध्यान भटकाने के लिए निर्दोषों पर हिंसा का आरोप लगा रही है। राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद यह स्पष्ट करती है कि ऐसी हर कोशिश के ख़िलाफ लोकतांत्रिक एवं कानूनी तरीकों से लड़ाई लड़ी जाएगी। बैठक ने यूपी पुलिस और संघ परिवार की हिंसा के शिकार पीड़ितों को सहायता देने का भी फैसला किया।
साथ ही बैठक ने ख़बरदार करते हुए कहा कि संसद में पारित राष्ट्रीय आबादी रजिस्टर का फैसला देशभर में एनआरसी लाने का चोर दरवाज़ा है। बैठक ने देश की जनता और राज्य सरकारों से अपील की कि वे इस प्रक्रिया को रद्द करें।
उपचेयरमैन ओ.एम.ए. सलाम ने बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें महासचिव एम. मोहम्मद अली जिन्ना, सचिव अब्दुलवाहिद सेठ व अनीस अहमद, कार्यकारी सदस्य ई.एम. अब्दुर्रहमान, प्रोफेसर पी. कोया, एड. ए. मोहम्मद यूसुफ, ए.एस. इस्माईल, के.एम. शरीफ, यामुहियुद्दीन आदि शामिल रहे।
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