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अदालत को नागरिकों के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए

अदालत नागरिकों को उनके अंतःकरण और आस्था के ख़िलाफ़ लिबास पहनने का आदेश नहीं दे सकताः जमाअत इस्लामी हिन्द

By: वतन समाचार डेस्क

अदालत को नागरिकों के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए

अदालत नागरिकों को उनके अंतःकरण और आस्था के ख़िलाफ़ लिबास पहनने का आदेश नहीं दे सकताः जमाअत इस्लामी हिन्द

 

नई दिल्ली, 16 मार्च। किसी भी मज़हब में कौन से कर्म अनिवार्य हैं और नहीं हैं, इन्हें तय करने का अधिकार अदालतों को नहीं हुआ करता। ये कर्म सम्बंधित धर्म के रहनुमा और उस धर्म के ओलमा ही तय कर सकते हैं। इसलिए जमाअत इस्लामी हिन्द ने मंगलवार के दिए गये कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर असंतोष प्रकट किया है।

 

 

 

 

जमाअत इस्लामी हिन्द के अमीर सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि हिजाब इस्लाम धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा है। लिबास कैसा हो, उसका रूप और आकार को अपनाने में नागरिकों को आज़ादी रही है। और यह आज़ादी महिलाओं को भारत का संविधान देता है। उच्च न्यायालय ने ऐसा प्रतीत होता है, कर्नाटक राज्य के उस परिपत्र को वैध क़रार दिया है जिस के द्वारा सरकार ने यह कहा है कि सरकारी और ग़ैर सरकारी स्कूलों में यूनीफार्म को तय करने का अधिकार उनकी स्कूल कल्याण कमेटी और प्रबंधन को हासिल है।

 

 

 

 जमाअत के अमीर ने कर्नाटक सरकार से मांग की है कि वह मुस्लिम लड़कियों को यूनीफार्म के रंग का हिजाब अपनाने से न रोके। स्पष्ट हो कि सोशल मीडिया के ज़रिए यह तात्पर्य फैलाया जा रहा है कि उच्च न्यायालय ने हिजाब पर पाबंदी लगाया है, जबकि वास्तविकता यह नहीं है।

 

 

 

बल्कि हाईकोर्ट ने अपनी राय पेश की है कि हिजाब धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। इस फैसले का ग़लत अर्थ निकालना और इसे हिजाब के खिलाफ़ इस्तेमाल करना अत्यंत अनुत्तरदायीपूर्ण कृत होगा। इस फैसले के द्वारा समाज में विद्वेष फैलाने की जो कोशिश हो रही है, वह निन्दनीय है। उपरोक्त फैसला समाजी ज़िंदगी में हिजाब को अपनाने की बात नहीं करता। जमाअत के अमीर ने सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद ज़ाहिर की है कि वह इस फैसले में आवश्यक सुधार करेगा और मुस्लिम छात्रा को एकाग्रता हासिल होगी। उन्होंने आगे कहा कि सरकार एक ओर शिक्षा के मैदान में सबको विकास और हिस्सेदारी की बात करती है तो दूसरी ओर राज्य सरकार के इस रवैये से लड़कियों के लिए शिक्षा की प्राप्ति में रुकावट पैदा की जाती है। हिजाब को मसला किसी भी लिहाज़ से लड़कियों के शैक्षिक वातावरण और कैम्पस को प्रभावित करने वाला नहीं होता, बल्कि हिजाब के ख़िलाफ़ नफ़रत, पक्षपात मांसिकता की उपज है। सभी न्यायप्रिय शहरियों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह नफरती माहौल को देश में कम करने के सिलसिले में हर संभव प्रयास करें।

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