देश में लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए दलित-मुस्लिम एकता जरूरी: कलीमुल हफीज
दिल्ली एमआईएम और बहुजन संस्कृति मंच द्वारा आयोजित दलित मुस्लिम एकता पर संगोष्ठी
9 अक्टूबर, 2021
भारत में हमेशा से एक वर्ग रहा है जिसे यहां के शासकों ने अछूता बना कर रखा है, इसका मुख्य कारण सनातन धर्म की भेदभाव की मान्यताएं हैं, लेकिन दुर्भाग्य से मुस्लिम शासकों ने भी इस वर्ग के पिछड़ेपन को दूर करने की कोशिश नहीं की है। इसलिए यह समाज आज तक दलित ही बना हुआ है। देश का भविष्य पिछड़े वर्गों के लिए बेहद दर्दनाक साबित होगा। इन विचारों को वक्ताओं ने मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन दिल्ली के सामाजिक और सांस्कृतिक विंग और होटल रिवर व्यू में बहुजन संस्कृत मंच द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में व्यक्त किया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सिद्धार्थ पब्लिकेशंस और गौतम बुक सेंटर के संस्थापक और अध्यक्ष व दलित साहित्य रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष सुल्तान सिंह गौतम ने कहा कि दलित-मुस्लिम एकता समय की जरूरत है, देश में लोकतंत्र की जगह फासीवाद ने ले ली, हमें एकजुट होना चाहिए। इस गठबंधन में धर्म बाधा नहीं बनना चाहिए।
मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन, दिल्ली के अध्यक्ष कलीमुल हफीज ने अपने भाषण में कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकास के लिए राजनीतिक सशक्तिकरण आवश्यक है और इसके बिना कोई भी समस्या हल नहीं हो सकती है। हालांकि दलितों की कुछ मज़बूत पार्टियां रही हैं, लेकिन उन्होंने भी अपने राजनितिक हितों के लिए उन पार्टियों के साथ गठबंधन किया जो दलितों के पिछड़ेपन के लिए जिम्मेदार हैं। कम से कम मुसलमानों में सनातन धर्म में दलितों के साथ भेदभाव की तरह कोई मुद्दा नहीं है, लेकिन दोनों वर्ग वर्तमान सरकार की नीतियों से प्रभावित हैं। इसलिए हम दोनों का दर्द एक जैसा है और जब दर्द एक जैसा होता है तो हम एक दूसरे को हमदर्द कहते हैं। मजलिस हमेशा से बाबा साहब भीम राव अंबेडकर का सम्मान करती रही है और आभारी है कि उन्होंने मुसलमानों को निराश नहीं किया।
मासिक सामयिक भारत के संपादक केपी मोरिया ने कहा कि दलितों के पिछड़ेपन का मुख्य कारण जनसंख्या के अनुपात में उनकी हिस्सेदारी की कमी थी। हालाँकि संविधान दलितों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन अधिकारों की लूट की गई है। आज जो दलित-मुस्लिम एकता का प्रयास हो रहा है, वह बहुत पहले हो जाना चाहिए था, फिर भी मैं इसका स्वागत करता हूं। रिटायर्ड जस्टिस ओपी शुक्लाजी ने कहा कि बाबा साहब और दलित महापुरुषों को हमेशा मुसलमानों का समर्थन मिला है, इसलिए मुझे लगता है कि इस समय दलितों को भी मुसलमानों के साथ खड़ा होना चाहिए।
सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रकांत सावल ने कहा कि मुसलमानों और दलितों की समस्याएं एक जैसी हैं, दोनों जगहों पर शिक्षा और गरीबी की समस्या है, दोनों में असुरक्षा की भावना है, इसका एक प्रमुख कारण दोनों वर्गों की महिलाओं की अशिक्षा है। हम सभी के लिए अपनी बेटियों और महिलाओं को शिक्षित करने का समय अभी भी है जब एक राष्ट्र की महिलाएं शिक्षित होती हैं, तो वह राष्ट्र अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है। भगवान बुद्ध ट्रस्ट के अध्यक्ष अमर बशारत ने कहा कि अगर दोनों समुदाय देश पर शासन करने के लिए एक साथ आते हैं तो दलित और मुस्लिम आबादी लगभग बराबर होती है, लेकिन केवल तभी जब दोनों राष्ट्र अपने व्यक्तिगत हितों को पूर्णरूप से त्याग दें और सामाजिक सामाजिक दूरियां बंद हों। केवल वोटों का गठबंधन सरकार तो बना सकता है लेकिन सच्ची खुशहाली नहीं ला सकता है। इनके अलावा शंभू कुमार, संपादक राष्ट्रीय दस्तक, केसी आर्य, अध्यक्ष दिल्ली जन मंच, मजलिस नेता मुहम्मद इस्लाम ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
संगोष्ठी के बाद एक कवी सम्मलेन का आयोजन हुआ, जिसमें एजाज अंसारी, जगदीश जींद, अब्दुल गफ्फार दानिश, संतोष पटेल, सोनिया कंवल, जावेद सिद्दीकी, इंदरजीत कुमार, कीर्ति रतन, अनस फैजी, राजीव रियाज और सुंदर सिंह ने अपनी कविताओं से दर्शकों को संबोधित किया। इस अवसर पर सभी कवियों को फातिमा शेख पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सुल्तान सिंह गौतम और कलीम अल-हफीज को कांशी राम साहित्य रतन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जबकि संगोष्ठी में बाकी वक्ताओं को बहुजन रतन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी का संचालन एमआईएम दिल्ली के सचिव अब्दुल गफ्फार सिद्दीकी और बहुजन संस्कृत मंच के कवि और अध्यक्ष राजीव रियाज प्रतापगढ़ी ने किया। कार्यक्रम में दलित समाज के एक दर्जन से अधिक बुद्धिजीवी और मजलिस के महत्वपूर्ण नेता शामिल हुए।
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