नई दिल्ली, 14 मार्च। हिन्दुस्तान में लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है। सूरतेहाल यह हो चुकी है कि हमारे देश की तुलना अलोकतांत्रिक देशों से किया जाने लगा है जो अत्यंत चिंता की बात है। जो लोग देश की हालात को अपनी नज़रों से देख रहे हैं उन्हें अंदाज़ा है कि देश की संवैधानिक बुनियाद को नुकसान पहुंचाने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। इसकी पुष्टि अमरीका के फ्रीडम हाउस और स्वीडेन की एक संस्थान की हालिया रिपोर्ट से भी होती है जिसमें कहा गया है कि हिन्दुस्तान में लोकतांत्रिक निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है और संवैधानिक मूल्यें क्रमवार घटती जा रही हैं।
ये बातें वरीष्ठ पत्रकार प्रशांत टंडन ने जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित एक पैनल डिस्कशन में कही। ‘‘पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव के प्रभाव - मतदाताओं की ज़िम्मेदारियां’’ विषय पर आयोजित इस डिस्कशन में उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रांति के बाद जब दुनिया में लोकतंत्र आया तो आज़ादी के बाद भारत ने भी इस प्रणाली को अपनाया और अपने देष के संविधान की बुनियाद इस पर रखी। इस तरह भारत एक लोकतांत्रिक देश बना। लोकतंत्र ऐसी संस्था है जो मतदान की बुनियाद पर चलता है। लेकिन मतदान किन मुद्दों पर हो? यह बहुत महत्वपूर्ण है।
हम जैसा मतदान करेंगे वैसी सरकार बनेगी। हम मतदान के समय मानवाधिकार, रोज़गार, स्वच्छता, विकास, शिक्षा और उद्योग आदि जैसे मुद्दों पर वोट डालने के बजाए धर्म, और जाति के नाम पर वोट डालते हैं। और विगत कुछ सालों से नफरत को बुनियाद बना कर वोट का ध्रुवीकरण किया जा रहा है। यह प्रवृति किसी भी लोकतांत्रिक देशों के लिए उचित नहीं है। ऐसे समय में मतदाता की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है के वे वोट डालते समय सजग रहें और देशहित और विकास के मद्देनज़र अपना क़ीमती वोट डालें और ईमानदार प्रतिनिधियों को ही चुनें। जब हम विधानसभाओं और संसद में किसी प्रतिनिधियों को भेजते हैं तो चुनाव के बाद पांच साल के लिए संतुष्ट हो कर न बैठ जाएं बल्कि उन प्रतिनिधियों की जवाबदही तय करें कि उन्होंने देश और जनता के लिए कब किया काम क्या है। इस डिस्कशन में जमाअत इस्लामी हिन्द के नेशनल सेक्रेट्री मलिक मोतसिम खान ने कहा कि आने वाले दिनों में देश के पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं।
लोकतांत्रिक देश में निर्वाचन प्रक्रिया अवाम की ताक़त होती है। इसके ज़रिए जनता अपने लोप्रिय प्रतिनिधि को निर्वाचित करते हैं। इस तरह अवाम को अपने वोटिंग पावर के द्वारा अपनी पिछली ग़लतियों के सुधार करने और अयोग्य प्रतिनिधियों को अस्वीकार करने का अवसर मिलता है। विचार करें तो चुनाव अवाम को जोड़ने का एक बेहतरीन माध्यम है। मगर विगत सालों में कुछ राजनीतिक पार्टियों की ओर से जो माहौल बना दिया गया है इससे ऐसा महसूस होने लगा है कि चुनाव की आड़ में अवाम को तोड़ने और देश के लोकतंत्र पर पाबंदी लगाने का काम किया जा रहा है जो हमारे देश के लिए अत्यंत हानिकारक है। इस पैनल डिस्कशन में असम से फिरदौस बारभुइया, पश्चिम बंगाल से इमराउल क़ैस और केरल से मेहर नौशाद ने भी हिस्सा लिया।
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