फेसबुक आरएसएस, बजरंग दल और उनके सहयोगियों का प्रॉक्सी बन, भारत के लोकतंत्र के साथ कर रहा है खिलवाड़: पवन खेड़ा
पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि नमस्कार साथियों! बहुत ही गंभीर विषय है। एक जो फेसबुक का प्रकरण है, जो आप सबके संज्ञान में है और हम लाते भी रहे हैं। लेकिन उसमें जो नए मोड़ आए हैं, उस पर कुछ आपसे चर्चा करनी थी।
फेसबुक और भारत की भारतीय जनता पार्टी, जो रुलिंग पार्टी है, उनके संबंध कितने गहरे हैं, उसके उदाहरण बार-बार आप लोग भी हमसे साझा करते आए हैं। हम भी देश, विश्व और आप से साझा करते आए हैं।
पिछले साल अंखी दास के विषय पर हमने आपसे कई बार चर्चा की थी और ये सबके सामने आया था कि कैसे अंखी दास, जो कि भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी हुई, कैसे फेसबुक में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हुए लोग फेसबुक के अंदर बिल्कुल घुस चुके हैं। बात सिर्फ हेट स्पीच की नहीं है, बात है कि हिंदुस्तान फेसबुक का सबसे बड़ा मार्केट है, 37 करोड़ उपभोक्ता हैं फेसबुक के हिंदुस्तान में। तो उन 37 करोड़ उपभोक्ताओं के साथ जो धोखा हो रहा है, कैसे एक विचारधारा को उन पर थोपा जा रहा है। कैसे गलत, फेक न्यूज, फेक इमेजिस, फेक पोस्ट के माध्यम से देश में एक माहौल बनाया जा रहा है, जो माहौल देश की रुलिंग पार्टी को बिल्कुल माफिक गुजरता है, वो चाहते हैं कि ऐसा माहौल हो।
2020 में फेसबुक की जो सेफ्टी टीम थी, जो सुरक्षा टीम थी, उन्होंने कहा था कि बजरंग दल कुछ वर्ग विशेष के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा देता है पूरे देश में और फेसबुक बजरंग दल जैसी संस्था को एक खतरनाक संस्था घोषित करने वाला था। लेकिन उनको सलाह दी गई, ये करने से देश की जो रुलिंग पार्टी है, वो नाराज हो सकती है और फेसबुक ने उस संस्था को, जो फेसबुक स्वयं मानती है कि हिंसा फैलाती है या हिंसक संदेश फैलाती है और एक माहौल बनाती है देश में हिंसा का, नफरत का, फेसबुक मानती है कि वो एक डेंजरेस ऑर्गेनाइजेशन है, ये फेसबुक के शब्द हैं, लेकिन फेसबुक हिम्मत नहीं जुटा पाई कि उसको एक डेंजरेस ऑर्गेनाइजेशन घोषित कर सके।
अब नया, जो फेसबुक की एक whistleblower हैं, 37 साल की इंजीनियर हैं, Frances Haugen, उन्होंने एक नया खुलासा किया है कि कैसे हिंदी और बांग्ला भाषा के जानकार फेसबुक में, हिंदुस्तान की फेसबुक की टीम में नहीं है कि जो फिल्टर कर सके कि कौन सा संदेश फेक है या नफरत पैदा कर रहा है या एक माहौल खराब करने की कोशिश कर रहा है देश में। वो फिल्टरिंग करने का जो आपके पास स्टाफ होना चाहिए, जो हिंदी और बांग्ला का जानकार हो, वो स्टाफ उनके पास नहीं है। आप सोचिए जिस देश ने उनको 37 करोड़ उपभोक्ता दिए, जहाँ से वो सबसे ज्यादा कमा रहे हों, वहाँ उनको इतनी चिंता नहीं है कि उस देश का माहौल ना बिगड़े। उसके लिए जो यथासंभव काम करने चाहिए, जिस तरह के ऑफिसरों को, जिस तरह के कर्मचारियों को, भाषा विशेषज्ञों को लगाना चाहिए, वो नहीं लगाना उचित समझते, आखिर कारण क्या है?
सिर्फ 0.2 प्रतिशत, 1 प्रतिशत भी नहीं, 0.2 प्रतिशत हेट स्पीच को फेसबुक हटाता है अपने प्लेटफार्म से। मतलब 99.8 प्रतिशत जो कंटेट हैं फेसबुक का, जो नफरत फैलाता है देश में, जो बंटवारा फैलाता है देश में, समाज में, वो वहीं का वहीं बहाल रहता है, उसको हटाया नहीं जाता। ये बहुत गंभीर विषय है।
87 प्रतिशत खर्च किया जाता है अपने बजट का फेसबुक द्वारा। जो इंग्लिश स्पीकिंग ऑडियेंस है, जो अंग्रेजी बोलने वाली ऑडियंस हैं, जो सिर्फ 9 प्रतिशत है फेसबुक के उपभोक्ताओं का, 37 करोड़ में से सिर्फ 9 प्रतिशत हैं, जो अंग्रेजी बोलते हैं या अंग्रेजी की पोस्ट पढ़ते या लिखते हैं। उन 9 प्रतिशत पर आप 87 प्रतिशत का खर्चा करते हैं। मैं भी अपनी प्रेस वार्ता शुरु करता हूं, मैं हिंदी में शुरु करता हूं। हम अलग-अलग राज्यों में जाते हैं, कोशिश करते हैं वहाँ कि भाषा अगर अलग नहीं है, तो हिंदी में बोलें। वॉट्सअप के जितने फॉरवर्ड हम सबके पास आते हैं, रीजनल भाषा में ज्य़ादा आते हैं और हिंदी में आते हैं। लेकिन फेसबुक की नीति देखिए और मैं इसको नीति नहीं कहूंगा, ये एक चाल है, ये जानबूझ कर किया जा रहा है।
फेसबुक की जो आंतरिक स्टडी हैं, उनकी अपनी, हमारी तो ऑब्जर्वेशन हो सकती है, लेकिन ये तो उनकी अपनी रिसर्च है, उनका अपना अनुसंधान है, उनकी अपनी स्टडी है, जिसमें ये स्पष्ट तौर से कहा जा रहा है कि फेसबुक आरएसएस, बजरंग दल और उनके सहयोगी संगठनों का एक प्रोक्सी एक तरह से बन गया है और जितने भी किसी वर्ग विशेष के खिलाफ टारगेटेड पोस्ट होती हैं, उन पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता। वो टारगेटेड पोस्ट इस देश की किस राजनीतिक विचारधारा को आगे बढ़ाती है या वो किस विचारधारा से स्पॉन्सर होती है, ये मैं, आप सब जानते हैं, उसमें बोलने की आवश्यकता है नहीं, लेकिन मैं फिर भी बोल रहा हूं कि आरएसएस और उसके संगठन, बाकी संगठन जो हैं, मित्र संगठन या उस छतरी के नीचे बाकी जो संगठन हैं, उन सबका एक प्लेटफार्म बनता चला जा रहा है फेसबुक और अब इस देश में यह कहने में मुझे या किसी और जो यहाँ बैठे हैं, यह कहने में कोई गुरेज नहीं होगा कि फेसबुक हिंदुस्तान में एक फेकबुक हो गया है, जो सिर्फ और सिर्फ फेक पोस्ट, फेक एजेंडा फॉरवर्ड करता है, उसको आगे बढ़ाता है। वो बांटता है भारतीय जनता पार्टी और संघ के लिए।
हम फेसबुक और भारत सरकार, दोनों से ये जानना चाहते हैं कि जब यह स्पष्ट तौर पर आपकी जानकारी में है कि फेसबुक आरएसएस के, बजरंग दल को डेंजरेस ऑर्गेनाइजेशन यानी खतरनाक संगठन मानता है, फिर भी उस पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया? उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई, उसको घोषित करने से भी क्यों डर गए?
एक तरफ ट्विटर पर तो भारत सरकार बड़ी मुखर प्रखर होकर बोलती है, तो हम यह भी जानना चाहते हैं कि सोशल मीडिया सेफ्टी कंप्लायंस क्या फेसबुक पर लागू नहीं होगा? क्या भारत सरकार के मुँह में दही जम गया है, जब फेसबुक पर आता है, क्योंकि फेसबुक आपका एजेंडा चला रहा है, आपका नफरत वाला एजेंडा चला रहा है, आपका एक माउथ पीस बन गया है?
आपके आर्थिक जो इंट्रस्ट हैं, आपको कमाना है हिंदुस्तान से, हिंदुस्तान को आप एक मार्केट की तरह देखते हैं, 37 करोड़ आपके उपभोक्ता हैं। इस देश से आप कमा रहे हैं और इस देश में ही बांटने की एक विचारधारा को प्रचारित कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी यह नहीं होने देगी, लोकतंत्र के साथ इससे बड़ा खिलवाड़ होते हुए नहीं देखा, जहाँ आप 5 साल तक एक एजेंडा, एक विचारधारा चलाते हैं और फिर चुनाव के वक्त आप लोगों का जो वोटिंग बिहेवियर है, उस पर भी आप इन्फूलेंस (influence) करते हैं, उसको आप मोड़ते हैं कि कैसे वोट देना है। यह एक इलेक्शन फ्रॉड से कम नहीं माना जाएगा कि हमारे वोटिंग में भी हस्तक्षेप अगर हो रहा है तो वो फेकबुक या फेसबुक, जो भी आप कहना चाहें, उसके माध्यम से हो रहा है। हम एक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी की मांग करते हैं ताकि फेसबुक की जो भारत में गतिविधियां हैं, कैसे वो भारत के लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ कर रहा है, उस पर पूरी तरह से खुलासा हो और वो सबसे सामने ज़ाहिर हो।
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