दिल्ली की सीमा पर बैठे लाखों किसानों को दरकिनार कर प्रधानमंत्री, श्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंस से मध्यप्रदेश में किसानों से वार्तालाप का ढोंग और प्रपंच कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि हिमालय की चोटी से ऊँचे अहंकार में डूबी मोदी सरकार के हाथ चौबीस अन्नदाताओं के खून से सने हैं, जो 21 दिन से लाखों की संख्या में देश की राजधानी, दिल्ली के चारों ओर न्याय की गुहार लगा रहे हैं।
मोदी सरकार अब ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ से भी बड़ी व्यापारी बन गई है, जो किसान की मेहनत की गंगा को मैली कर मुट्ठीभर पूंजीपतियों को पैसा कमवाने पर आमादा है। मोदी सरकार को किसान से छल, कपट, ढोंग और प्रपंच बंद करना चाहिए।
प्रधानमंत्री जी, तीन खेती विरोधी काले कानूनों की दीवारों की दरार को सरकारी दुष्प्रचार और झूठे इश्तेहारों से ढँकना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा सरकार ने इन काले कानूनों के क्रूर प्रहार से पहली बार किसानों पर वार किया है। सत्ता सम्हालते ही मोदी सरकार पूँजीपतियों पर सारे सरकारी संसाधन वार कर किसानों को दरकिनार करती रही हैः-
1) पहला वार: 12 जून 2014 को मोदी सरकार ने सारे राज्यों को पत्र लिखकर फरमान जारी कर दिया कि समर्थन मूल्य के ऊपर अगर किसी भी राज्य ने किसानों को बोनस दिया तो उस राज्य का अनाज समर्थन मूल्य पर नहीं खरीदा जाएगा और किसान भाइयों को बोनस से वंचित कर दिया गया।
2) दूसरा वार: दिसंबर 2014 में मोदी सरकार ने किसानों की भूमि के उचित मुआवज़े कानून 2013 को ख़त्म करने के लिए एक के बाद एक तीन अध्यादेश लाए, ताकि किसानों की ज़मीन आसानी से छीनकर पूंजीपतियों को सौंपी जा सके।
3) तीसरा वार: फरवरी 2015 में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर साफ़ इंकार कर दिया कि अगर किसानों को समर्थन मूल्य लागत का पचास प्रतिशत ऊपर दिया गया, तो बाज़ार ख़राब हो जाएगा अर्थात फिर पूंजीपतियों के पक्ष में खड़े हो गए।
4) चौथा वार: 2016 में खरीफ सीज़न से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लेकर आए और कहा कि यह विश्व की सबसे अच्छी योजना है। जबकि सच्चाई यह है कि 2016 से लेकर 2019 तक लगभग 26 हज़ार करोड़ रु का मुनाफा चंद पूंजीपतियों की निजी कंपनियों ने इस योजना से कमाया है।
5) पाँचवा वार: जून, 2017 में देश की संसद में तत्कालीन वित्तमंत्री, श्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत सरकार किसानों का कर्जा माफ नहीं करेगी। मोदी सरकार चंद उद्योगपतियों का 3,75,000 करोड़ कर्ज माफ कर सकती है, पर देश के किसान का नहीं।
6 ) छठवां वार: प्रधानमंत्री जी ने कहा कि 6 हज़ार रु. किसान सम्मान निधि किसानों को दे रहे हैं जबकि सच्चाई यह है कि आपने पिछले 6 सालों में खेती की लागत 15हज़ार रु. एकड़ बढ़ा दी। डीज़ल के दामों में 25 रु. लीटर की वृद्धि कर दी। कीटनाशक से लेकर कृषि यंत्रों तक पर जीएसटी 18 प्रतिशत तक लगा दिया, खाद बीज की कीमतों में वृद्धि कर दी। अर्थात एक तरफ आप किसानों की पॉकेट मार रहे हैं और दूसरी तरफ उन्हें ऑटो का भाड़ा देने का स्वांग रच रहे हैं ।
तीन काले कानूनों के दुष्परिणाम मध्यप्रदेश की मंडियों से ही आने लगे हैं।
आज प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री मध्यप्रदेश के किसानों को संबोधित कर रहे थे। काश, मध्यप्रदेश का हाल ही जान लिया होता। मध्यप्रदेश में 269 सरकारी कृषि उपज मंडिया हैं जिसमें से कानून आने के बाद 47 मंडिया तो पूरी तरह बंद हो गई हैं जहाँ एक पैसे का कारोबार नहीं हुआ और 143 मंडिया ऐसी हैं जहाँ का कारोबार 50प्रतिशत तक कम हो गया है। अर्थात कानून के आते ही असर प्रारंभ हो गया।
इतना ही नहीं, 1850 रु. समर्थन मूल्य का मक्का मध्यप्रदेश में 810 रु. में और बिहार में 900 रु. मात्र में बिका है।
काले कानून आते ही किसान समर्थन मूल्य से कम बेचने पर मजबूर
हाल ही में एक निजी न्यूज़ एजेंसी ने देश के 15 राज्यों की 291 मंडियों का सर्वे किया है जिसमें पाया गया कि ये कानून आने के बाद धान का समर्थन मूल्य यूपी में 47प्रतिशत, गुजरात में 83 प्रतिशत, कर्नाटक में 63 प्रतिशत, तेलंगाना में 60 प्रतिशत और पूरे देश में 77 प्रतिशत किसानों को नहीं मिला। किसानों को समर्थन मूल्य से काफ़ी कम कीमत में अपना धान बेचने पर मजबूर होना पड़ा है।
किसान को लूटने के लिए मोदी सरकार विदेशों से आयात करती है
मक्का के किसानों पर तो मोदी सरकार ने आघात करते हुए मुट्ठी भर पूंजीपतियों के लिए 50 प्रतिशत इम्पोर्ट ड्यूटी को घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया तथा 5 लाख मीट्रिक टन सस्ता मक्का विदेशों से मंगवा कर किसानों के साथ आघात किया।
मोदी सरकार ने साल 2016 में पहले पंद्रह महीने में ही सस्ती दाल का आयात कर 2,50,000 करोड़ की लूट की थी। अब फिर मोदी सरकार ने साल 2020-21 में 30 लाख टन दाल आयात का कोटा निर्धारित किया है। क्या प्रधानमंत्री बताएंगे कि इससे किसानों का फायदा होगा या नुकसान?
प्रधानमंत्री मोदी समर्थन मूल्य की गारंटी पर मुख्यमंत्री मोदी की बात क्यों नहीं मानते।
बतौर मुख्यमंत्री के श्री नरेंद्र मोदी ने वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष के तौर पर लिखकर सिफारिश की थी कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी दी जानी चाहिए। तो आज प्रधानमंत्री मोदी अपनी लिखी बात से ही क्यों मुकर रहे हैं।
किसानों को देशद्रोही बता अपमानित करना बंद कीजिए और माफी मांगिए
आज दुख इस बात का है जिन किसानों से मोदी सरकार कर रही बर्बरता और बेवफाई है, उन्हीं की बदौलत प्रधानमंत्री के सिंहासन में रौनक आई है। आज भाजपाई मंत्रीगण व मोदी सरकार उन्हीं किसान भाइयों को आतंकी, कुकुरमुत्ता, टुकड़े टुकड़े गैंग, गुमराह गैंग, खालिस्तानी बता रहे हैं। शर्मनाक है, कृषिमंत्री ने तो अपने पत्र में किसानों को ‘राजनैतिक कठपुतली’ तक कह दिया। इस शर्मनाक व्यवहार को छोड़ प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को किसानों से माफी मांगनी चाहिए और तीनों काले कानून वापस लेने चाहिए।
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