वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 29, अज़ीज़न बाई
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 29वां नाम अज़ीज़न बाई का है-
अज़ीज़न बाई -29
अज़ीज़न बाई का जन्म सन् 1832 को लखनऊ में हुआ था। उनकी मां एक वेश्या थी, जिनकी मृत्यु अज़ीज़न के बचपन में ही हो गयी थी। उनकी मां की मृत्यु के बाद उनका पालन-पोषण लखनऊ के सतरंगी महल में एक अन्य वेश्या के घर में हुआ था। बाद में वह कानपुर आ गयी और लुरकी महल में उमराव बेगम के घर में रहीं।
कानपुर शहर तात्या टोपे और नाना साहब, दोनों के लिए संघर्ष का एक रंगमंच था, जो कि अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। अज़ीज़न बाई सैनिकों के लिए हथियार और गोला-बारूद व अंग्रेजों से संवेदनशील जानकारी इकट्ठा करके, इसे विद्रोहियों तक पहुंचाया करती थी। अज़ीज़न ने स्वतंत्रता के पहले युद्ध की तैयारी में सक्रिय और निष्क्रिय दोनों भूमिका निभाई, उनके घर का इस्तेमाल सिपाहियों द्वारा गुप्त बैठकों के लिए भी किया जाता था।
युद्ध-नीतिज्ञ और सिपाही होने के नाते उन्हें हथियार चलाने आते थे और इसे वह अन्य महिलाओं को भी सिखाती थी। वह मरदाना कपड़े पहना करती थी और घुड़सवारी किया करती थी। उन्होंने महिलाओं का एक समूह भी बनाया था जो पुरुषों को सवतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया करता था और जख्मियों का ख्याल रखता था।
अज़ीज़न, जिन्हें विद्रोह के प्रमुख षड्यंत्रकारियों में से एक माना जाता था, उन्हें अंग्रेजों ने पकड़ लिया था, और उन्हें जनरल हेवलॉक की कस्टडी में रखा गया, जहां हेवलॉक ने उन्हें उनका जुर्म कबूल करने के लिए कहा और उनसे वादा किया कि अगर वह ऐसा करती हैं तो उन्हें माफ़ कर दिया जायेगा। लेकिन अज़ीज़न ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और देश से गद्दारी के बदले उन्होंने वफ़ादारी और शहादत चुनी। इससे उनकी वफादारी, सम्मान, और बहादुरी साबित होती है।
अज़ीज़न बाई ने नाना साहेब से प्रभावित होकर आज़ादी के लिए अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। लेकिन स्वतंत्रता का एक और नाम इतिहास के पन्नों में भुला दिया गया।
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