सरकारी एजेंसी एगमार्कनेट ने माना, किसानों को नहीं मिल रहा MSP
रणदीप सिंह सुरजेवाला, महासचिव, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बयान- सरकारी एजेंसी एगमार्कनेट ने भी माना कि किसानों को नहीं मिल रहा न्यूनतम समर्थन मूल्य
किसानों के साथ अनदेखी के लिए मोदी सरकार की गलत नीतियां जिम्मेदार
2022 तक कैसे होगी आमदनी दोगुनी जब लागत+50% मुनाफा देना तो दूर, किसान को फसल की लागत भी नहीं मिल रही
नई दिल्ली: सरकार की अपनी एजेंसी एगमार्कनेट ने अब मान लिया है कि किसानों को खरीफ फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा। सरकारी वेबसाइट https://agmarknet.gov.in/PriceTrendDashboard/TrendCompare.aspx पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं, कि मोदी सरकार किसानों को ‘लागत + 50 प्रतिशत मुनाफा’ देना तो दूर देश के अन्नदाता को उसकी फसल की लागत भी नहीं सुनिश्चित नहीं करवा पा रही है। इससे मोदी सरकार का किसान विरोधी चेहरा सबके सामने उजागर हो गया है और यह साफ सिद्ध हो गया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा देश के अन्नदाता को बहका कर उसके वोट लेने के लिए गढ़ा गया केवल एक चुनावी जुमला था और उसका सच्चाई से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं था।
1. मोदी सरकार किसान को खरीफ फसलों का लागत मूल्य भी नहीं दे रही- तो फिर वादे के अनुरूप ‘लागत+50 प्रतिशत मुनाफा’ कब देगी?
पिछले 25 दिनों में देश के किसानों को उसके फसलों से प्राप्त बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा बताई गई विभिन्न प्रांतों में फसलों की लागत से बहुत कम है। अब जब पूरे देश में किसान आंदोलन चल रहा है और जब सभी विपक्षी दल किसानों के समर्थन में मजबूती के साथ खड़े हैं, उस समय भी यदि किसानों के साथ ये अन्याय हो रहा है, तो मोदी सरकार की नीयत व नीति भलीभांति समझी जा सकती है।
2. जब मोदी सरकार षडयंत्र के तहत एमएसपी पर फसल खरीदी जानबूझकर कम कर रही है, तो एमएसपी निर्धारण से किसान को क्या फायदा मिलेगा?
पिछले 7 साल के कार्यकलापों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि मोदी सरकार काम में कम और अखबार की सुर्खियां बनाने में ज्यादा विश्वास रखती है। सच यह है कि एक सोचे समझे षडयंत्र के तहत मोदी सरकार एमएसपी पर फसल खरीदी को लगातार कम कर रही है, ताकि धीरे-धीरे एमएसपी स्वयं ही समाप्त हो जाए। जब एमएसपी पर फसल खरीद होगी ही नहीं, तो एमएसपी देने के मायने क्या बचते हैं? यदि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं करेगी, तो बाजार भाव गिर जाएगा और किसान के पास उसे लागत से कम बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा, अब भी यही हो रहा है। इसका सबूत सामने है। मोदी सरकार ने साल 2020-21 में एमएसपी पर 389.93 लाख टन गेहूं खरीदा। पर चालू साल में 30 अप्रैल, 2021 तक (साल 2021-22 में) एमएसपी पर खरीदे जाने वाले गेहूं की मात्रा कम कर 271 लाख टन कर दी। यानि चालू साल 2021-22 में पिछले साल 2020-21 के मुकाबले एमएसपी पर 118.93 लाख टन गेहूं कम खरीदा गया। इसी प्रकार 2019-20 में एमएसपी पर 519.97 लाख टन धान खरीदा गया। पर 2020-21 में मोदी सरकार ने एमएसपी को कमजोर करने के लिए एमएसपी पर मात्र 481.41 लाख टन धन ही खरीदा, जो 38.56 लाख टन कम था। इस प्रकार से एमएसपी को खत्म करने और किसानों का पूरा व्यापार मित्र उद्योगपतियों के हाथों में सौंपने की साजिश की जा रही है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पूछना चाहती है कि यदि न्यूनतम समर्थन मूल्य देना ही नहीं है, तो यह सरकार घोषणा भी क्यों करती है?
3. प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (PM - AASHA) का बजट काटा
प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना का साधारण नाम भावांतर योजना भी है। सरकार की ओर से बार - बार यह कहा गया कि अगर किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा, तो फिर या तो सरकार इस स्कीम में खरीद करेगी या फिर किसान को न्यूनतम मूल्य और बाजार भाव के बीच की राशि किसान के खाते में डाली जाएगी। परंतु मोदी सरकार ने इस साल के लिए इस स्कीम का बजट ही काट दिया। साल 2019-20 में पीएम आशा का बजट 1500 करोड़ था, जो साल 2020-21 में घटा करके सिर्फ 400 करोड़ कर दिया गया। यानि 73 प्रतिशत कम कर दिया गया। अब जब देशभर में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मूल्य मिलने के आंकड़े स्वयं केन्द्र सरकार ने अपने अधिकृत वेबसाइट पर स्वयं सार्वजनिक रुप से स्वीकार कर लिए हैं, तो केवल 400 करोड़ रु. में देश के किसानों को भावांतर योजना में लाभ कैसे मिलेगा?
4. सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे ने भी किसानों की बिगड़ती हालत का सच सबके सामने रखा
भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम एनएसएस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2012-13 में हर किसान के ऊपर 47,000 रुपए का कर्ज था, जो 2018-19 में बढ़कर 74,121 रुपए हो गया।
सिचुएशन एसेसमेंट सर्वे की यह रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि किसान की आय दोगुनी होने की बजाए उस पर खर्च बढ़ते जा रहे हैं और उसे पूरा फसल का पूरा मूल्य ना मिलने के कारण कर्ज बढ़ता जा रहा है। इन सबके बावजूद सरकार किसानों को परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही।
5. किसान से बेरुखी क्यों?
इस सरकार ने जहाँ एक ओर डीजल को बढ़ाकर 100 रुपए पहुंचा दिया है, वहीं देशभर में डीएपी खाद की कमी, फसलों को समर्थन मूल्य पर ना खरीदे जाने के समाचार लगातार आ रहे हैं। एक स्टडी के अनुसार पिछले 7 सालों में कृषि की लागत में 25,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। ये सिर्फ कोस्ट में वृद्धि है, जिसके लिए किसान को भरपाई नहीं की गई है। हम पूछना चाहते हैं कि यह सरकार देश के अन्नदाता के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रही है?
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