केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जरिए देशभर में एनआरसी लागू करने के बार-बार बयानों के बीच जब प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी कैबिनेट में एनआरसी पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है और ना ही इस पर आज तक कोई बातचीत हुई है तो एनआरसी का सवाल ही नहीं पैदा होता है, लेकिन देश के लोग सवाल कर रहे हैं कि सवाल एनआरसी का नहीं उस से पहले CAA का है. NRC और CAA दोनों एक दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं.
लोगों का कहना है कि गृह मंत्री ने एक बार नहीं अनेकों बार इस बात को अलग-अलग मंचों से दोहराया है कि पहले सीएबी आएगा फिर एनआरसी आएगा और एनआरसी कोई रोक नहीं सकता है और एनआरसी पूरे देश के लिए आएगा. देश और दुनिया में धरने प्रदर्शन के बीच भारत की खराब होती छवि को देखते हुए सरकार ने जब एनपीआर को ग्रीन सिग्नल दे दिया और कैबिनेट ने इस पर अपनी मोहर लगा दी तो फिर अब सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि एनआरसी और एनपीआर का कोई संबंध नहीं है जबकि जानकारों का मानना है कि एनआरसी की ही पहली सीढ़ी एनपीआर है और बैक डोर से NRC की एंट्री है.
जानकार खुद मानते हैं कि सरकार ने एक नहीं अनेकों बार संसद में इस बात को स्पष्ट किया है कि NRC की दिशा में ही एनपीआर एक क़दम है जिस के बाद लोगों के धरने में तेजी आ गई है और लोगों का यह कहना है कि वह 70 साल पुराना रिकॉर्ड कहां से लाएंगे. लोग यह भी पूछ रहे हैं कि पापा हरमुनिया तो मिल गया लेकिन कागज कहां छोड़ कर गए थे यह तो बता दीजिए. सरकार के इस कदम के बाद लोगों में खासी नाराजगी है और लोग सड़क से संसद तक धरने प्रदर्शन कर रहे हैं.
वहीं कई राज्यों ने एनआरसी अपने राज्य में लागू न करने की बात कही है. इस में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे नितीश कुमार भी हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या एनपीआर पर भी अब गृहमंत्री सच नहीं बोल रहे हैं? क्योंकि इनके दावे को खारिज किया है ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, योगेंद्र यादव सीता राम यचूरी समेत अनेक लोगों ने.
ओवैसी ने कहा कि जब तक सूरज पूरब से निकलेगा तब तक वह सच बोलेंगे और इस दिशा में उन्होंने सरकार पर गुमराह करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा है कि केंद्रीय गृह मंत्री को देश को गुमराह नहीं करना चाहिए. उनकी सरकार ने खुद संसद में इस बात को स्वीकारा है कि एनपीआर NRC की दिशा में एक क़दम है. उसे वह नकार सकते हैं.
ज्ञात रहे कि भारत समेत दुनिया में हो रहे प्रदर्शन के बाद मुस्लिम देशों के संगठनों OIC ने भी इस दिशा में आपात बैठक बुलाई थी जिसमें कहा गया है कि वह भारत की स्थिति पर गहरी नजर बनाए हुए हैं. मलेशिया के प्रधानमंत्री ने भी इस बाबत सख्त बयान दिया था और दुनिया ने भी भारत को एक सेक्युलर रहने की अपील की है.
वहीँ केंद्रीय गृह मंत्री ने मंगलवार को नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप में अंतर करते हुए कहा कि दोनों अलग-अलग कानून से संचालित होते हैं। उन्होंने कहा कि एनपीआर के आंकड़ों का प्रयोग एनआरसी की कवायद के लिए कभी नहीं किया जाएगा। एक इंटरव्यू में शाह ने कहा कि एनपीआर एक डाटाबेस है जिसके आधार पर नीतियां तैयार की जाएंगी। वहीं, एनआरसी एक प्रक्रिया है जिसमें लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जाएगा। इन दोनों प्रक्रियाओं का आपस में कोई संबंध नहीं है, ना ही इनके सर्वे का प्रयोग एक दूसरे के लिए किया जाएगा।
गृहमंत्री ने कहा कि मै लोगों को आश्वत करना चाहता हूं, विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय को कि एनपीआर का एनआरसी से कोई लेनादेना नहीं है। यह एक अफवाह है। शाह भले ही जो भी कहें लेकिन तथ्य बताते हैं कि एनआरसी को एनपीआर के आधार पर ही संचालित किया जाएगा।
इस बात का उल्लेख नागरिकता कानून 1955 के तहत नागरिकता नियम 2003 में किया गया है। वास्तव में एनपीआर, उन नियमों कायदों का हिस्सा है जिनके आधार पर एनआरसी तैयार होगी। यह बात नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद में एक बार नहीं बल्कि नौ मौकों पर कही है।
संसद में 8 जुलाई 2014 को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस सांसद राजीव सातव के सवाल के जवाब में कहा था कि एनपीआर की समीक्षा की जा रही है और इसके जरिये नागरिकता की स्थिति का वेरिफिकेशन किया जाएगा। 15 जुलाई और 22 जुलाई को दुबारा रिजिजू ने एनपीआर और एनआरआईसी को लेकर इसी तरह की बात लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान कही थी।
23 जुलाई को उन्होंने इसको लेकर राज्यसभा में बयान दिया था। 29 नवंबर 2014 को उन्होंने राज्यसभा में कहा था कि नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजन से हर सामान्य नागरिक की नागरिकता की पुष्टि की जाएगी। इसी तरह 21 अप्रैल और 28 जुलाई को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री एचपी चौधरी ने भी इस आशय का बयान दिया था। 13 मई 2015 को राज्यसभा में रिजिजू ने फिर यही बात दोहराई थी। 11 नवंबर 2016 को राज्यसभा में प्रश्नकाल के दौरान यह बात दोहराई थी
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