ज्ञानवापी मस्जिद की सुरक्षा के लिए सरकार इबादतगाह (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को बरकरार रखे : जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द
नई दिल्ली, 4 अगस्त। "हम उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में होने वाली घटनाओं से बेहद चिंतित हैं। हमें संदेह है कि 1992 में बाबरी मस्जिद के साथ जो हुआ उसकी पुनरावृत्ति हो सकती है। वाराणसी जिला न्यायाधीश के 21 जुलाई के आदेश के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति द्वारा लाई गई चुनौती को खारिज करने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले से अप्रत्याशित परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं जैसे मस्जिद परिसर और इसकी कुछ आंतरिक संरचनाओं को नुकसान हो सकता है। ये बातें जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोहतसिम खान ने मीडिया को जारी एक बयान में कहीं।
उन्होंने कहा कि वाराणसी न्यायालय के आदेश के बचाव में उत्तर प्रदेश राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले महाधिवक्ता ने कहा कि यह केवल सच्चाई का पता लगाने के लिए है, वादी और प्रतिवादी के बीच कोई विवाद पैदा नहीं करना नहीं, इसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए। उनका यह आश्वासन कि अदालत के निर्देशों की परवाह किए बिना कानून-व्यवस्था संबंधी कोई समस्या नहीं होगी, मुस्लिम आबादी के कल्याण से संबंधित मुद्दों के संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार के ट्रैक रिकॉर्ड और राजनीतिक स्थिति को देखते हुए इस पर पूरी तरह विश्वास नहीं किया जा सकता। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के विचार में जब विधान में स्पष्ट कानून मौजूद है, जैसे इबादतगाह (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991, जो धार्मिक स्थानों के चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है,
अदालतों को को चाहिए कि ज्ञानवापी और अन्य मस्जिदों के सर्वेक्षण की मांग के बारे में याचिकाओं पर विचार नहीं करे। जमाअत की मांग है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को तत्काल एक बयान जारी करना चाहिए और इबादतगाह अधिनियम 1991 को बरकरार रखना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को जो मस्जिद, मंदिर, चर्च या कोई भी सार्वजनिक इबादतगाह अस्तित्व में था, वही बरकरार रहेगा। अर्थात इसका धार्मिक चरित्र जो उस दिन था - चाहे इसका इतिहास कुछ भी हो - और इसे अदालतों या सरकार द्वारा नहीं बदला जा सकता है।
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