हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) रहती दुनिया तक, सियासत करने वालों के लिये बेमिसाल नमूना हैं
सियासी ताक़त हासिल करने के लिये की जाने वाली जिद्दो-जुहद भारत में मुसलमानों के रौशन मुस्तक़बिल की ज़मानत ही नहीं, रसूलुल्लाह (सल्ल०) की सुन्नत हैं
जश्न ए मिलादुन्नबी ﷺ पर ख़ाकसार का मज़मून-
कलीमुल हफ़ीज़
इस्लाम दीने-हक़ भी है और मुकम्मल दीन भी है। मुकम्मल इस अर्थ में भी कि इसमें ज़िन्दगी के तमाम पहलुओं के लिये हिदायतें मौजूद हैं और इस अर्थ में भी कि हर ज़माने में, हर इलाक़े और हर शख़्स के लिये हिदायतें हैं। इस्लाम की यही ख़ूबी इसे दूसरे मौजूदा दीनों और मज़हबों से जुदा करती है। इसी तरह हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) की मुबारक ज़िन्दगी तमाम इन्सानों के लिये नमूना है, क़ुरआन ने इस पाक ज़िन्दगी को बेहतरीन नमूना या कामिल नमूना बताया है।
ये मेरा अक़ीदा और ईमान सिर्फ़ एक मुसलमान होने की हैसियत से ही नहीं है बल्कि मैं जिस्म के अक़ल व होश के सभी पुर्ज़ों से काम लेकर ये बात कह रहा हूँ। ये केवल आस्था का सवाल नहीं है बल्कि ये बात स्कॉलर्स ने साबित कर दी है। मेरे माँ-बाप आप (सल्ल०) पर क़ुर्बान हों, क्या आइना ए ज़िन्दगी है जिसमें हर शख़्स अपनी तस्वीर सँवार सकता है।
जिसका जी चाहे किसी रुख़ से उठाकर देख ले।
किस क़द्र बे-दाग़ है सीरत रसूलुल्लाह की॥
सीरत के जलसों में हुज़ूर अकरम (सल्ल०) की पाक ज़िन्दगी के मुख़्तलिफ़ पहलुओं पर रौशनी डाली जाती है। आप (सल्ल०) के लिबास, रहन-सहन, खान-पान, बातचीत के अन्दाज़, बेहतरीन अख़लाक़ वग़ैरा, वो टॉपिक्स हैं जिन पर ख़तीबों, इमामों और मुक़र्रिरों ने नज़्म और नस्र (गद्य और पद्य) दोनों में ही उतना कुछ लिखा है कि उसे जमा करना और अन्दाज़ा लगाना भी मुमकिन नहीं है। मगर आपकी सियासी ज़िन्दगी और एक सियासत-दाँ (Politician) और हुक्मराँ (Ruler) के पहलू शायद अभी मुकम्मल तौर पर आने बाक़ी हैं।
हालाँकि उर्दू-अरबी ज़बान में बहुत-से लेख मौजूद हैं, लेकिन लोगों की नज़रों से ये पहलू ओझल ही हैं। बल्कि बहुत-से लोग आपको सियासी कहने पर बिगड़ जाते हैं, इसलिये कि वो सियासत को दीन से अलग कोई बुरी चीज़ समझते हैं। इसका बड़ा नुक़सान ये हुआ कि दीने-इस्लाम भी एक मज़हब और मसलक बनकर रह गया, इसकी आलमगीर और हमागीर (International and Multi-dimensional) हैसियत लगभग ख़त्म हो गई। सुन्नतों के नाम पर भी दाढ़ी-टोपी, पाजामे की लम्बाई और नमाज़ और वुज़ू की सुन्नतें याद रहीं और आपके नबी बनाकर भेजे जाने का वो अज़ीम मक़सद कहीं गुम होकर रह गया जो एक सियासी इन्क़िलाब की शक्ल में आप (सल्ल०) ने हासिल किया।
आप (सल्ल०) ने मात्र 23 साल की मुद्दत में अरब में एक सियासी इन्क़िलाब बरपा किया। ग़ैर-मुनज़्ज़म और बिखरे हुए क़बीलों को एक करके एक हुकूमत बनाई, एक झण्डे के नीचे सबको जमा करके एक अख़लाक़ी निज़ाम का पाबन्द बनाया। ये वो अज़ीम कारनामा है जो नबियों में भी केवल आप ही की ख़ुसूसियत है। हुकूमत और इक़्तिदार दूसरे नबियों ने भी क़ायम और हासिल किया लेकिन हज़रत मुहम्मद (सल्ल०) ने जिन हालात में और जिन लोगों में किया, वो अलग है।
हज़रत सुलैमान (अलैहि०) को अल्लाह ने बादशाह बनाया, बनी-इस्राईल के ज़्यादातर नबी बादशाह थे, हज़रत यूसुफ़ (अलैहि०) को एक क़ायम हुकूमत में इख़्तियारात हासिल हुए, लेकिन हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्ल०) ने अरब के उन बद्दुओं को क़ानून और ज़ाब्तों का पाबन्द बनाया जिनकी फ़ितरत ही लड़ना और झगड़ना थी, जो ज़रा-ज़रा सी बात पर तलवारें सूंत लेते थे और फिर उनकी तलवारों की प्यास कई साल तक सैंकड़ों इन्सानों का ख़ून पीकर भी नहीं बुझती थी। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) ने वो सिस्टम डेवलप किया जिसके नतीजे के तौर पर आज भी जिस इलाक़े में उस सिस्टम का जितना भी हिस्सा लागू है लोग उसकी बरकतों से फ़ायदा उठा रहे हैं। अरब में मग़रबी साज़िशों को अगर दरकिनार कर दिया जाए तो अमन और ख़ुशहाली आज भी मौजूद है।
व्याख्या: यह लेखक के निजी विचार हैं। लेख प्रकाशित हो चुकी है। कोई बदलाव नहीं किया गया है। वतन समाचार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वतन समाचार इसकी सच्चाई या किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए जिम्मेदार नहीं है और न ही वतन समाचार किसी भी तरह से इसकी पुष्टि करता है।
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