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एटलस के बंद होने से कितने लोग प्रभावित होंगे, सरकार को अब करना क्या चाहिए, पढ़िये पूरी सच्चाई

एक के बाद एक कंपनियों के बंद होने की खबरों के बीच साइकिल जगत की जानी मानी कंपनी एटलस साइकिल के बंद होने की खबर पर लोगों को यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन सच यह है कि अब इस कंपनी का साहिबाबाद प्लांट भी बंद हो चुका है और इससे पहले कंपनी के कई और प्लांट भी बंद हो चुके हैं। एटलस साइकिल -साइकिल जगत की जानी मानी कंपनी है, लेकिन अब इसके बंद होने से मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कहा यह जा रहा है कि 1000 कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि सच्चाई इस के विपरीत है और 1000 कर्मचारी बेरोजगार नहीं हुई हैं बल्कि इस धंधे से जुड़े कई लाख कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं, क्योंकि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में साइकिल जगत में सबसे ज्यादा विश्वास जिन साइकिलों पर है उनमें से एटलस साइकिल एक है और किसान आधारित हमारी इकोनामी की साइकिल रीढ़ की हड्डी मानी जाती है।

By: वतन समाचार डेस्क
गुरुवार को कारखाने के बाहर प्रदर्शन करते कर्मचारी. (फोटो: पीटीआई)
  • एटलस के बंद होने से कितने लोग प्रभावित होंगे, सरकार को अब करना क्या चाहिए, पढ़िये पूरी सच्चाई  

एक के बाद एक कंपनियों के बंद होने की खबरों के बीच साइकिल जगत की जानी मानी कंपनी एटलस साइकिल के बंद होने की खबर पर लोगों को यकीन नहीं हो रहा है, लेकिन सच यह है कि अब इस कंपनी का साहिबाबाद प्लांट भी बंद हो चुका है और इससे पहले कंपनी के कई और प्लांट भी बंद हो चुके हैं। एटलस साइकिल -साइकिल जगत की जानी मानी कंपनी है, लेकिन अब इसके बंद होने से मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कहा यह जा रहा है कि 1000 कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि सच्चाई इस के विपरीत है और 1000 कर्मचारी बेरोजगार नहीं हुई हैं बल्कि इस धंधे से जुड़े कई लाख कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं, क्योंकि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में साइकिल जगत में सबसे ज्यादा विश्वास जिन साइकिलों पर है उनमें से एटलस साइकिल एक है और किसान आधारित हमारी इकोनामी की साइकिल रीढ़ की हड्डी मानी जाती है।

 

 

महंगाई के इस दौर में एक बड़ी आबादी ज़्यादा तर साइकिल से अपनी दूरी और छोटे मोटे काम करती है, ऐसे में इस कारोबार से गांव से लेकर शहर तक और शहर से लेकर कस्बे तक कस्बे से लेकर जिले तक और जिले से लेकर राज्य तक एक नहीं बल्कि लाखों कर्मचारियों के बेरोजगार होने की आशंका है जो साइकिल के कारोबार से जुड़े हुए थे, क्योंकि सिर्फ प्लांट बंद होने का मसला नहीं है बल्कि साइकिल के बड़े प्लांट से छोटे प्लांट, कंपनियों से बड़े और छोटे शोरूम और छोटे-छोटे शोरूम से फिर छोटी-छोटी दुकानों तक छोटी-छोटी दुकानों से लेकर गांव क़स्बों तक ऐसे लाखों लोग हैं जिनके अब बेरोजगार होने की आशंका बढ़ रही है।

 

 

ऐसे में जानकारों का कहना है कि सरकार ने कारपोरेट जगत को पिछली बार जो डेढ़ लाख करोड़ की टैक्स छूट दी थी और उसके बावजूद कंपनियों ने निवेश नहीं किया ऐसे में सरकार को कंपनियों से बात करना चाहिए कि कंपनियां उस पैसे को अब यहां पर लगाएं और इस बात को यक़ीनी बनायें कि अगले 2 साल तक किसी को रोजगार से नहीं निकालेंगी ताकि कम से कम करोना के संकट के बीच अर्थव्यवस्था जिस तरह पूरी तरह से बे पटरी हो गई है वह पटरी पर आ सके क्योंकि अगर सरकार ने इस समस्या को गंभीरता के साथ नहीं लिया तो स्थिति काफी भयावह और काफी डरावनी हो सकती है।

 

ज्ञात रहे कि 3 जून को दुनिया भर में विश्व साइकिल दिवस मनाया जाता है. संयोग से जब इसी दिन सुबह जब देश की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी एटलस के उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद स्थित कारखाने के कर्मचारी काम के लिए पहुंचे तो गेट पर नोटिस लगा मिला कि इस इकाई को बंद कर दिया गया है और सभी कर्मचारियों को काम से हटा दिया गया है.

दूसरी तरफ नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक 1989 में शुरू हुए इस कारखाने के गेट पर एक नोटिस लगा था जिसमें लिखा था कि कारखाने को अनिश्चितकाल के लिए बंद किया जा रहा है. कंपनी के पास कारखाना चलाने का पैसा नहीं है, न ही उनके पास कोई निवेशक है. कंपनी 2 साल से घाटे में है और दैनिक खर्च भी नहीं निकल पा रही है, इसलिए कर्मचारियों को ले-ऑफ पर भेजा जा रहा है. इसका अर्थ है कि कंपनी के पास उत्पादन के लिए धन नहीं है, ऐसे में कर्मचारियों को निकला नहीं जा रहा है, पर उन्हें वेतन नहीं मिलेगा, लेकिन साप्ताहिक अवकाश को छोड़कर रोजाना अपनी हाजिरी लगानी होगी.

साहिबाबाद की साइट-4 में साइकिल बनाने वाले इस कारखाने में स्थायी और कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को मिलाकर लगभग 1,000 लोग काम करते थे. बताया जाता है कि साइकिलों का सर्वाधिक उत्पादन यहीं होता था. कंपनी यहां हर साल लगभग 40 लाख साइकिल बनाती थी.

बंटवारे के बाद कराची से आए जानकी दास कपूर ने साल 1951 में एटलस साइकिल कंपनी शुरू की थी. साहिबाबाद स्थित कारखाने के बंद होने से पहले कंपनी मध्य प्रदेश के मालनपुर और हरियाणा के सोनीपत की इकाइयां भी बंद कर चुकी है. बुधवार को यह नोटिस मिलने के बाद नाराज़ कर्मचारियों ने कारखाने के सामने जमा होकर प्रदर्शन भी किया. अमर उजाला की खबर के अनुसार, प्रदर्शन की सूचना पर पहुंची लिंक रोड पुलिस ने कर्मचारियों के एकत्र होने पर हल्का बल प्रयोग कर सभी को हटाया.

एटलस साइकिल यूनियन के महासचिव महेश कुमार ने बताया कि इस कारखाने में परमानेंट और कांट्रेक्ट आधार पर करीब एक हजार कर्मचारी काम करते हैं और वे भी पिछले 20 साल से कंपनी में हैं.

उन्होंने बताया कि बुधवार को कर्मचारी ड्यूटी पर पहुंचे तो उन्हें गार्डों ने अंदर नहीं घुसने दिया और नोटिस देखने को कहा. उन्होंने कंपनी के प्रबंधकों से इस बारे में बात करने का प्रयास किया, लेकिन किसी की बात नहीं हो सकी.

कुछ देर में कर्मचारियों की भीड़ बढ़ती गई. सभी को इस बारे में मालूम हुआ तो उनका गुस्सा भड़क गया और सभी कंपनी के बाहर ही प्रदर्शन करने लगे, फिर पुलिस ने आकर उन्हें हटाया.

यहां बहुत से कर्मचारी बहुत लंबे समय से काम कर रहे हैं. उनका डर है कि उम्र के इस पड़ाव में उन्हें अब कहीं और काम नहीं मिलेगा.

नवभारत टाइम्स से बात करते हुए 1989 से यहां काम करने वाले एक कर्मचारी ने बताया, ‘लगभग पूरी उम्र इसी फैक्ट्री में काम करते हुए निकल गई. अब इस उम्र में शायद कहीं और नौकरी भी नहीं मिलेगी. अब क्या करेंगे? परिवार कैसे चलेगा? कुछ समझ नहीं आ रहा. परिवार को खाना कहां से खिलाऊंगा. कहां से खर्चे पूरे होंगे?’

एनडीटीवी की रिपोर्ट बताती है कि लॉकडाउन के बाद मार्च और अप्रैल में कर्मचारियों को वेतन मिला था. हालांकि मई महीने की तनख्वाह नहीं आई. 1 जून से कारखाना खुला था और दो दिन तक कर्मचारी आए और काम किया था.

वहीं, एटलस साइकिल लिमिटेड कर्मचारी यूनियन ने इस मामले में श्रम विभाग के प्रमुख सचिव और श्रमायुक्त को पत्र भेजकर विरोध जताया है. कंपनी की तरफ से अधिकारिक बयान नहीं आया है.

यूनियन का कहना है कि कंपनी ने बिना किसी पूर्व सूचना से अचानक ले-ऑफ लागूकर नोटिस चिपका दिया. साथ ही कर्मचारियों को गेट पर ही रोक दिया गया. यह गैर-कानूनी है. यूनियन ने दोनों पक्षों को बुलाकर राहत देने की मांग की है.

इस बारे में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और कहा कि लोगों की नौकरियां बचाने के लिए सरकार को अपनी नीति एवं योजना स्पष्ट करनी चाहिए.

यूनाइटेड साइकिल्स पार्ट्स एंड मैन्युफैक्चरर्स के पूर्व अध्यक्ष चरणजीत सिंह विश्वकर्मा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘कंपनी पर विक्रेताओं का करीब 125 करोड़ रुपये बकाया है. मेरी कंपनी के 20 लाख रुपये बकाया हैं. पिछले साल भी बकाये के लिए विक्रेताओं ने प्रदर्शन किया था, जिसके बाद पैसे जारी किए गए थे.’

 

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