आगामी वित्त वर्ष के बजट में सरकार अल्पसंख्यकों का खास ख्याल रखेः केंद्रीय शिक्षा बोर्ड, जमाअत इस्लामी हिन्द
नई दिल्ली, 4 जनवरी। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए केंद्रीय सरकार की ओर से पेश किए जाने वाले बजट में अल्पसंख्यकों और उनकी शैक्षिक ज़रूरतों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से जमाअत इस्लामी हिन्द का केंद्रीय शिक्षा बोर्ड की ओर से एक आॅन लाइन कान्फ्रेंस आयोजित की गयी जिसमें अर्थशास्त्र विशेषज्ञों के अतिरिक्त देश के विभिन्न राज्यों से पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर अर्थशास्त्री डाॅक्टर जावेद आलम ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में अल्पसंख्यकों या धार्मिक अल्पसंख्यकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए निर्माणकारी योजनाओं विशेषकर शिक्षा-बजट बनाते समय उनके विकास और स्थायित्व का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है।
आने वाले वित्त वर्ष के लिए जल्द ही नया बजट पेश किया जाने वाला है। ऐसे अवसर पर अल्पसंख्यकों की शैक्षिक पिछड़ेपन को देखते हुए उनके लिए बजट में अतिरिक्त वृद्धि की तरफ सरकार को ध्यान दिलाना आवश्यक जान पड़ता है। क्योंकि प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक भारी रक़म की ज़रूरत होती है जिसके लिए खासतौर पर पिछड़े वर्ग को वित्तीय सहायता की आवश्यकता पड़ती है। सरकार की ओर से अनेकों शेक्षिक योजनाएं और नीतियां बनाई गयी हैं मगर उसको कितना लागू किया गया? इसकी उचित माॅनिटरिंग नहीं की गयी और न ही यह सामने आया कि इन योजनाओं से अल्पसंख्यकों के कितने छात्रों ने लाभ लिया। सरकार ने पिछले वित्त वर्ष के बजट में शैक्षिक बजट खासतौर अल्पसंख्यक शिक्षा बजट पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। जो फंड पहले से निश्चित था उसमें भी कमी कर दी गयी। पहले ये बजट पांच हज़ार करोड़ रुपये था जिसे कम कर के चार हज़ार आठ सौ करोड़ कर दिया गया। जबकि मौजूदा समय में अल्पसंख्यकों के शिक्षा के लिए कम से कम दस हज़ार करोड़ रुपये की ज़रूरत है।
कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए जमाअत के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के निदेशक सैयद तनवीर अहमद ने कहा कि केंद्रीय सरकार की ओर से नये वित्त वर्ष पर जो बजट पेश किया जाने वाला है इसमें अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी कितनी होनी चाहिए और उनके शक्षिक विकास के लिए कितने फंड की ज़रूरत है? इस महत्वपूर्ण पहलू से सरकार को आगाह करना हम सब की ज़िम्मेदारी है और इसके लिए सभी संगठनों, बुद्धिजीवियों और समुदायों से सहानुभूति रखने वालों को आगे आना चाहिए।
जमाअत इस्लामी हिन्द ने जो कान्फ्रेंस आयोजित किया है उसका उद्देश्य भी यही है ताकि सरकार उनके शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए विशेष नीतियां और प्रभावी योजनाएं बनाए जिनसे छात्र अधिक से अधिक लाभ उठा सकें। सैयद तनवीर अहमद ने बताया कि जमाअत शिक्षा बोर्ड की एक स्वयंसेवी टीम आगामी बजट में अल्पसंख्यकों को शैक्षिक ज़रूरतों अैर उन्हें सूविधा पहुंचाने की संभावनाओं का अध्ययन कर रही है, जो भी सुझाव सामने आएगा उन्हें सरकार को पेश कर दिया जाएगा। साथ ही जमाअत ने सरकार से मांग की है कि वर्ष 2020 में शिक्षा के लिए ‘कुल घरेलू उत्पाद’ का 6 फीसद सुनिश्चित करने की मांग की गयी थी, उसे लागू किया जाए। इस संदर्भ में खर्च की क्वालिटी को बेहतर किया जाए। बजट की प्रक्रिया को विकेंद्रीकृत किया जाए। ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की फंडिंग को बढ़ाया जाए। सभी पिछड़े वर्गों की छात्रवृत्ति और फेलोशिप की संख्या बढ़ाई जाए। शिक्षा के खर्च में केंद्रीय सरकार की हिस्सेदारी में इज़ाफ़ा किया जाए
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