नई दिल्ली | स्वतंत्रता दिवस पर फोरम फ़ॉर डेमोक्रेसी एंड कम्युनल एमिटी (FDCA) द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रोफेसर मुचकुन्द दुबे ने “स्वतंत्रता दिवस पर संदेश” साझा किया. इस कार्यक्रम में देश भर से लोग ऑनलाइन जुड़े. इस ऑनलाइन कार्यक्रम में अपनी बात रखते हुए प्रो. मुचकुन्द दुबे ने कहा कि, “यह आज़ादी काफी संघर्षों के बाद मिली है. लाखों जीवन इस संघर्ष में बलि चढ़ गए. एक सवाल यह उठता है कि आख़िर हमारे पूर्वजों ने इतनी क़ुर्बानी क्यों दी? इसलिए कि आज़ादी में देश का आत्मसम्मान और उसकी मर्यादा निहित है.” स्वतंत्रता के मूल्य को समझाते हुए उन्होंने अनेकों उदाहरण दिए. उन्होंने कहा कि, “गंगाधर तिलक ने कहा था कि, “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है. कोई भी स्वाभिमानी देश ख़ुद को इस अधिकार से वंचित नहीं रख सकता है.” उन्होंने कहा, “हमारे नेताओं को इस बात पर विश्वास था कि आज़ादी के बिना सामाजिक और आर्थिक प्रगति नहीं हो सकती. पंडित नेहरू ने स्वतंत्रता के अवसर पर एक ऐतिहासिक भाषण दिया था. उस भाषण के माध्यम से देश के सामने आने वाली चुनौतियों को समझा जा सकता है.” प्रो. मुचकुन्द दुबे ने कहा, “डॉ. अंबेडकर ने संविधान को कॉन्सिटुएंट असेंबली में पेश करते हुए कहा था कि अगर हम इस संविधान के आर्थिक और सामाजिक प्रावधानों को अमली जामा पहनाने में असमर्थ रहे तो इसके सियासी प्रावधान बेकार हो जाएंगे और हमारी प्रजातांत्रिक व्यवस्था विफल हो जाएगी.” उन्होंने कहा कि आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं का साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए प्रयास करना उनके जीवन का नज़रिया और बुनियादी पहलू था. गांधी जी ने तो इस विचार के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. सुभाषचंद्र बोस जब कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो उन्होंने इस विषय पर विचार कर सिफारिश करने के लिए एक समिति का गठन किया. संविधान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित करने, उनकी रीति रिवाजों, शिक्षण संस्थाओं, धार्मिक आज़ादी और सुरक्षा के जो अधिकार दिए गए हैं वो उसी समिति की सिफ़ारिश से लिया गया है. उन्होंने बताया कि सुभाषचंद्र बोस ने बहुसंख्यकों से अल्पसंख्यकों की स्वतंत्रता, उनकी धार्मिक आज़ादी का खयाल रखने की अपील की थी. नए क़ानूनों द्वारा अल्पसंख्यकों को निशाना बनाये जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “नए क़ानूनों के द्वारा, हिंसा के द्वारा, पुलिस एवं जांच एजेंसियों द्वारा अपलसंख्यकों को परेशान किया जा रहा है और उनको बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा रहा है. सब कुछ एक निर्धारित नीति के तहत हो रहा है. सत्तारूढ़ पार्टी का बहुत दिनों से यह एजेंडा रहा है. वर्तमान सरकार इसे व्यवहारिक रूप देने में व्यस्त है.”
उन्होंने यह भी कहा कि, “कोई भी विवेकशील व्यक्ति इस बात पर विश्वास नहीं कर सकता कि राज्यों में मुसलमानों पर क़हर ढाने वाले, गो रक्षा, लव जिहाद संबंधी क़ानून केंद्र सरकार की इजाज़त के बिना पास किये जा रहे हैं. अपलसंख्यकों के ऊपर सरकारी तंत्र द्वारा ज़ुल्म थोपे जा रहे हैं. उनको मनमाने ढंग से जेल में डाला जा रहा है. उनको ज़मानत में रिहा होने के खिलाफ सरकार मुकदमा चला रही है. इसका संज्ञान देश के उच्च पदाधिकारियों को भी. यह अधिकारी अपने ही अल्पसंख्यक नगरिकों पर होने वाले इस इस ज़ुल्म और अन्याय पर खमोश हैं तो इस देश का भविष्य अवश्य खतरे में है.” उन्होंने कहा कि, “किसी समुदाय को हिंसा की भावना में रखकर भारत विकास की संभावनाओं का लाभ कभी नहीं उठा सकता और देश प्रगति के पथ पर कभी आगे नहीं बढ़ सकता है.” दुनिया में बन रही देश की छवि पर उन्होंने कहा, “दुनिया मे ये तस्वीर बनती जा रही है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र नहीं है. स्वतंत्रत विचारों पर पाबंदी लगाई जा रही है. भारत विश्व में स्वतंत्रता और प्रजातांत्रिक राष्ट्रों की सूचि में कई पायेदान नीचे आगया है.”
कार्यक्रम के अंत में FDCA के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. सलीम इंजीनियर ने स्वतंत्रता दिवस की मुबारकबाद देते हुए प्रो. मुचकुंद दूबे और सभी श्रोताओं का धन्यवाद और आभार प्रकट किया. प्रो. मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कहा कि, “हम सरकार तक यह बात पहुंचाने की कोशिश करेंगे कि हमारे संविधान निर्माताओं ने जिस बुनियाद पर इस देश को ले जाने को ठाना था इस देश को उसी रूप में आगे ले जाने की ज़रूरत है.” उन्होंने कहा कि, “हम सभी को आप की बातों से जो मार्गदर्शन मिला है उसे लेकर हम शांति, समृद्धि, प्रेम और न्याय के मार्ग पर देश को ले जाने का प्रयास करेंगे और इसे प्रचारित और प्रसारित करेंगे.”
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