परमाणु बम के इस युग में केवल अहिंसा ही हिंसा को मात दे सकती है: महात्मा गांधी
महात्मा गांधी का नाम सुनते ही, घुटनों तक साधारण सूती की धोती पहने, आंखों पर चश्मा लगाए, हाथ में लाठी लिए जिस व्यक्ति का चित्र हमारे ज़हन में आता है वह व्यक्ति केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशियों की दृष्टि में भी महान है। पतला दुबला एक ऐसा व्यक्ति धरती पर अवतरित हुआ जिसने अहिंसा, उपवास, स्वदेशी, खादी, चरखा, सत्याग्रह और बहिष्कार आदि मंत्र देकर भारतीयों के दिलों में स्वतंत्रता का जोश भर दिया, और उन्हें स्वाधीनता संग्राम के लिए प्रेरित किया। महात्मा गांधी ने अहिंसा का मंत्र देकर केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को प्रेम, भाईचारा, अनेकता में एकता और शांति का संदेश दिया।
वर्तमान समय में गांधी जी के विचारों और आदर्शों के प्रसार-प्रचार की अधिकाधिक आवश्यकता है। जब दुनिया भर की सरकारें, राजनेता अपने फायदे के लिए आम जन के ज़हनों में एक दूसरे के लिए नफरत पैदा कर रही हैं, और परमाणु हथियारों के द्वारा युद्ध के दरवाज़े को खटखटाया जा रहा है, तब जरूरत है कि महात्मा गांधी के अहिंसा मंत्र से दुनिया को अवगत कराया जाए। उन्हें बताया जाए कि अहिंसा एक ऐसा ताकतवर हथियार है जिसके आगे बड़े-बड़े सूरमाओं ने घुटने टेक दिए। अहिंसा ही वह हथियार था जिसके बल पर महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्र कराया।
महात्मा गांधी की दृष्टि में अहिंसा के सही तथा सटीक मतलब को गांधी जी के कुछ वक्तव्यों और कथनों से समझा जा सकता है।
महात्मा गांधी का मानना था कि अच्छे साध्य के लिए अच्छे साधन भी ज़रूरी हैं, अर्थात कुछ बेहतर कार्य करने के लिए बेहतर तरीकों का चुनाव आवश्यक है। महात्मा गांधी कहते थे कि अस्थाई रूप से हिंसा अच्छी दिखती है। उसका लाभ तत्कालिक होता है, लेकिन उससे जो नुकसान होता है वह स्थाई होता है। यानी अगर हम बलपूर्वक कोई बदलाव लाते हैं तो उसका बदलाव केवल कुछ समय तक ही रहता है। जबकि हृदय परिवर्तन से समझा-बुझाकर जो काम होता है उसका प्रभाव स्थाई होता है।
गांधी जी कहते थे कि "अहिंसा कोई धार्मिक या नैतिक कार्य नहीं, बल्कि यह समाज व्यवस्था का आवश्यक नियम है। जिस प्रकार किसी की हत्या करना हिंसा है उसी प्रकार काला बाज़ारी, झूठ बोलकर किसी को नुकसान पहुंचाना, मुनाफाखोरी, भ्रष्टाचार और किसी व्यक्ति को कोई भी तकलीफ पहुंचाना हिंसा ही है। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है जिसका कोई अंत नहीं।"
7 फरवरी 1921 में पटना स्थित मदरसा मस्जिद के मैदान से जनसभा को संबोधित करते हुए गांधी जी ने कहा था कि "मेरा मार्ग अहिंसा का मार्ग है। मैं उस व्यक्ति को भी मरना नहीं चाहता जो मुझे अपना शत्रु मानता है। यदि हम अहिंसा का पालन नहीं करेंगे तो हमारी असफलता निश्चित है। मुझे पूरा भरोसा है कि हम केवल अहिंसा के द्वारा ही स्वाधीनता प्राप्त कर सकते हैं।"
सभा में महात्मा गांधी ने लूट-पाट, चोरी, गाली-गलौज, धमकाने और डांटने आदि कामों को हिंसा का रूप बताते हुए कहा कि अगर हमें स्वराज्य प्राप्त करने में देरी हो रही है, तो इसका कारण यह है कि हमने अहिंसा का पाठ सही तरीके से नहीं पढ़ा।
अहिंसा की अवधारणा महात्मा गांधी की दृष्टि में सुस्पष्ट थी। वह कहते थे कि "अहिंसावादी होने के नाते मेरा फर्ज़ है कि, मैं खुद तो हिंसा से दूर रहूं ही साथ में ईश्वर के बनाए हर प्राणी को समझा-बुझाकर उनमें अहिंसा के प्रति विश्वास पैदा करूं। उन्हें अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित भी करूं। यदि मैंने दूसरों तक अहिंसा का पैगाम न पहुँचाया तो यह अहिंसा में मेरी आस्था के साथ विश्वासघात होगा।
गांधी जी कहते थे "जीवन भर अहिंसा के रास्ते पर चलने के कारण में अहिंसा का विशेषज्ञ होने का दावा करता हूं। हालांकि मैं बहुत कम दर्जे का विशेषज्ञ हूं। साफ और सीधे शब्दों में मैं यह कहना चाहूंगा कि अहिंसा कोई छोटी चीज़ नहीं है, मैं जितना अहिंसा पर अमल करता हूं उतना ही खुद को पूर्ण अहिंसा से कोसों दूर महसूस करता हूं।"
16 सितंबर 1947 में महात्मा गांधी ने हरिजन समाचार पत्र में एक लेख में लिखा, "परमाणु बम के इस युग में अहिंसा ही ऐसी ताकत है जो हिंसा की सारी चालों को नाकाम कर सकती है।
वर्तमान समय में हम खुद को गांधी का वारिस कहलाने में फख्र महसूस करते हैं। लेकिन हकीकत में हमने आज गांधी जी के विचारों, मान्यताओं और आदर्शों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। ज़रूरत आज इस बात की है कि जिस तरह हम गांधी जयंती पर गांधी जी के आदर्शों और विचारों की चर्चा करते हैं, सोशल मीडिया पर गांधी जी के वक्तव्य को साझा करते हैं। उसी प्रकार गांधी जी की शिक्षाओं, आदर्शों और सबसे अहम अहिंसा के पाठ को अपनी हकीकी ज़िंदगी में शामिल करें।
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