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चीन पर भारत को सख्ती दिखानी होगी: पवन खेड़ा

पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि बड़े भारी मन से बार-बार माननीय प्रधानमंत्री जी का एक वक्तव्य दोहराना पड़ जाता है। मजबूरी है इसलिए दोहराना पड़ जाता है, क्योंकि ये देश का सवाल है। पूरा विश्व इस वक्तव्य से भलीभांति परिचित है। 19 जून, 2020 का ये वक्तव्य ‘ना कोई घुसा था, ना कोई आया था, ना कोई घुसा हुआ है’। यूपीएससी में या कौन बनेगा करोड़पति में ये सिर्फ लाइनें डाल दें, तो सबको मालूम पड़ जाएगा कि ये किस व्यक्ति ने किस विषय पर बोला और उसका परिणाम भारत को क्या भुगतना पड़ रहा है।

By: Press Release
India will have to show toughness on China: Pawan Khera

चीन पर भारत को सख्ती दिखानी होगी: पवन खेड़ा 

 

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया

 

पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि बड़े भारी मन से बार-बार माननीय प्रधानमंत्री जी का एक वक्तव्य दोहराना पड़ जाता है। मजबूरी है इसलिए दोहराना पड़ जाता है, क्योंकि ये देश का सवाल है। पूरा विश्व इस वक्तव्य से भलीभांति परिचित है। 19 जून, 2020 का ये वक्तव्य ‘ना कोई घुसा था, ना कोई आया था, ना कोई घुसा हुआ है’। यूपीएससी में या कौन बनेगा करोड़पति में ये सिर्फ लाइनें डाल दें, तो सबको मालूम पड़ जाएगा कि ये किस व्यक्ति ने किस विषय पर बोला और उसका परिणाम भारत को क्या भुगतना पड़ रहा है।

 

“मिस्टर क्लीन चिट”, हमारे प्रधानमंत्री को मैं आज यह नई उपाधि देना चाहता हूं। मिस्टर क्लीन चिट ने चीन को एक क्लीन चिट दी, 19 जून, 2020 को, यह वक्तव्य देकर। इतना गैर जिम्मेदाराना बयान था कि जितनी बार इसको दोहराया जाए, उतना कम होगा। इस वक्तव्य की वजह से जो हमारे गलवान को लेकर, गोगरा को लेकर, हॉट स्प्रिंग के एक हिस्से को लेकर, जो करारनामें भी हुए हैं, जो समझौते भी हुए हैं, वह भी गैर बराबरी के समझौते हुए हैं।

 

The balance is tilting towards China, गैर बराबरी के समझौते, क्यों हुए ये? चीन की समझ में आ गया, विश्व की समझ में आ गया कि भारत में एक ऐसा प्रधानमंत्री है, जिसको भारत की भौगोलिक संप्रभुता से अधिक, भारत की सीमाओं की सुरक्षा से अधिक, अपनी कृत्रिम छवि की चिंता ज्यादा है।

 

ये कोई छोटी बात नहीं है, पूरे विश्व के द्वारा ये बहुत ज्यादा खतरनाक ऑब्जर्वेशन मानी जाएगी और इसका जिम्मेदार कोई और हो ही नहीं सकता, वही व्यक्ति हो सकता है, जिसने ये टिप्पणी की थी। प्रधानमंत्री को, मंत्रियों को बहुत नपे-तुले शब्दों में बोलना चाहिए, विशेष तौर पर जब वे कोई विदेश नीति की बात करते हैं। आज हम क्यों इस विषय को फिर से दोहरा रहे हैं? आज हम फिर क्यों आपके सामने ये वक्तव्य लेकर आ रहे हैं, इसका कारण क्या है?

 

डेपसांग और हॉट स्प्रिंग को लेकर 13वें दौर की कोर कमांडर की जो वार्ता हुई, वो विफल हो गई। चीन डेपसांग से, हॉट स्प्रिंग से पीछे हटने को अब मना कर रहा है। भारत के हमारे पराक्रमी सेना के, हमारे सेना प्रमुख है, उन्होंने कहा कि “China is here to stay”, तुलना कीजिए प्रधानमंत्री के वक्तव्य की कि ‘ना कोई घुसा है, ना कोई आया है, ना कोई है’। “China is here to stay”, ये तुलना करके भी आपको अफसोस होगा कि क्या हो रहा है? जो हमने हासिल किया था, हमारी वीर सेना ने दक्षिण पैंगोंग में हासिल किया था, वो भी हमने गंवाया। जहाँ हमारी पेट्रोलिंग होती थी, अप्रैल, 2020 से पहले तक, वहाँ अब पेट्रोलिंग नहीं होती, यथास्थिति हम वापस स्थापित नहीं कर पाए।

 

एक वीर देश, एक वीर सेना और एक कमजोर प्रधानमंत्री, बताइए ये कॉम्बिनेशन कैसे सुनाई देती है? सेना के पराक्रम पर ना 1967 में किसी को संशय हुआ, ना 1971 में किसी को संशय हुआ, ना कारगिल के दौरान किसी को संशय हुआ। सेना के पराक्रम पर कोई संशय हो ही नहीं सकता और मेरे में हिम्मत है ये बोलने की कि 1962 में भी सेना के पराक्रम में कोई कमी नहीं थी, 1965 में भी नहीं थी, 1967 में भी नहीं थी, 1971 में भी नहीं थी, 1999 में भी नहीं थी। आज हमारी राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी बड़े स्पष्ट तौर पर दिख रही है; जब चीन कहता है, We will not go back, ना केवल We will not go back, उत्तराखंड के दो इलाकों में घुस कर हमारे पुल डिस्ट्रोय करके चला जाता है। यह स्थिति कैसे पैदा हुई? इसका जवाब अब क्या होगा?

 

ये चर्चा अब हमें सबको बार-बार करनी पड़ेगी। अब तुजलापास जो था, उत्तराखंड का, वहाँ आपने पहले कभी सुना है ऐसा, इस तरह की हिमाकत की हो चीन ने? बाराहोती जो था, बाराहोती में क्या कभी चीन पहले घुसा था इस तरह से, जैसे अब घुसा था? तो वो लद्दाख हो, अरुणाचल हो, सिक्किम हो, उत्तराखंड हो, बार-बार चीन ये हिमाकत करने की हिम्मत जुटाता है, क्योंकि उसे मालूम है कि मिस्टर क्लीन चिट उसको विश्व में क्लीन चिट दे देंगे।

 

कल जो स्टेटमेंट आया “मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स” का कि यूनिलेटरल अटेंम्प्ट हो रहे है चीन द्वारा, स्टेटसको, यथास्थिति को डिस्टर्ब करने के लिए, उसको भंग करने के लिए। इस स्टेटमेंट की आप तुलना करिए, 19 जून 2020 के स्टेटमेंट से। मैं बार-बार 19 जून, 2020 का वो दिन आपको स्मरण कराता रहूंगा, क्योंकि वह दिन इस देश के इतिहास में एक काला दिन या काला अध्याय माना जाएगा, जब देश के एक प्रधानमंत्री ने दुश्मन को क्लीन चिट दी और वो गलत क्लीन चिट थी। ये भी हैरत की बात है कि 2021 के पहले 6 महीने में चीन से हमारा व्यापार 62.7 प्रतिशत बढ़ गया है। आप बताइए दुश्मन देश रिकॉर्ड तोड़ गया व्यापार का, 62.7 प्रतिशत बढ़ जाना व्यापार का एक दुश्मन देश से, कैसे संभव होता है, क्योंकि मिस्टर क्लीन चिट ने उसे क्लीन चिट दे दी।

 

हम सरकार से यह जानना चाहते हैं कि देश के प्रधानमंत्री ने 19 जून, 2020 को देश के सामने, विश्व के सामने एक झूठ क्यों परोसा? Why did the Prime Minister of India lie to the nation, to the world giving a clean chit to China, a misplaced clean chit to China. 100 पीएलए के सैनिक उत्तराखंड के 5 किलोमीटर भीतर घुसकर बाराहोती और तुनजुला पास में कैसे घुसकर आए और पुल तोड़कर वापस गए? अगस्त 30, 2021, आप लोगों ने ही रिपोर्ट किया था। ये संभव कैसे हुआ? 

 

ये क्यों संभव हो रहा है कि लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में बार-बार चीन आकर अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत कर देता है? 2005 में एक एग्रीमेंट मनमोहन सिंह जी के वक्त हुआ था। उससे पहले भी 4 एग्रीमेंट हो चुके हैं; 93 का एक एग्रीमेंट था, बॉर्डर पर कैसे कोएक्जिस्ट करना है, उसको लेकर, कैसे साथ-साथ समन्वय के साथ रहना है बॉर्डर पर, उसको लेकर। क्या हुआ उन एग्रीमेंट्स का? आखिर क्या कारण है कि 5 एग्रीमेंट जो हिंदुस्तान और चीन के मध्य पिछले दशकों में हुए। आखिरी मनमोहन सिंह जी के वक्त 2005 में हुआ, जो विश्व समुदाय द्वारा बड़ा अच्छा एग्रीमेंट माना जाता है। उन एग्रीमेंट को आप यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं कि चीन उन एग्रीमेंट पर कायम रहे।

 

चीन का बार-बार हमारी सीमाओं में घुसने का जो एक सिलसिला विशेष तौर पर पिछले डेढ़-दो सालों से जो चल रहा है, जो हमारा दौलतबेग ओल्डी सेक्टर है, डेपसांग सेक्टर है और डेपसांग तो आप सबको याद होगा, डॉ. मनमोहन सिंह जी के वक्त में भी चीन ने हिमाकत थी कि 2013 में। 21 दिन में वापस चले गए थे। कूटनीति देश में नारे लगाने से नहीं होती, ऊंची – ऊंची आवाज में भाषण देने से नहीं होती, कूटनीति चुप चाप होती है। वो तुलना करते रहना पड़ेगा। 12वें राउंड की बातचीत, जो मिलिट्री की अगस्त में हुई, गोगरा क्षेत्र के विषय में तय हुआ आपस में दोनों कोर कमांडर्स का, लेकिन दौलतबेग ओल्डी सेक्टर पर चीन ने फिर से पूरा जमावड़ा किया। ना केवल उन्होंने वहाँ पर जमावड़ा किया, एस 400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम वहाँ डिप्लोय करना छोटी बात नहीं होती है; देश के लिए खतरा है और इस खतरे का आभास हमें और आपको होना चाहिए और इस सरकार को बार-बार याद दिलाना पड़ेगा कि ये खतरा हमारे बॉर्डर पर मंडरा रहा है। यह पहली बार हो रहा है, इसको रोकिए। जो बन सकता है, वो कीजिए, ट्रेड बाद में हो जाएगा। इन लोगों को रोकिए।

 

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख से ये एयर क्राफ्ट कितने दूर हैं, 400 किलोमीटर से भी कम। हमें यह याद रखना होगा कि प्रधानमंत्री और कैबिनेट आज चुप हैं और मुझे लगता है ये अच्छी बात है शायद चुप हैं, क्योंकि बोलते है, तो क्लीन चिट दे देते हैं। लेकिन इन सवालों के जवाब हमें प्रधानमंत्री से चाहिए और इस बार बिना क्लीन चिट के चाहिए।

 

प्रधानमंत्री के दिए बयान को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री पवन खेड़ा ने कहा कि प्रधानमंत्री जी और इनके तमाम भक्त मंडली के साथ यह दो दिक्कतें हैं, ऐसे तो बहुत सारी दिक्कते हैं, चलिए दो की बात करते हैं। लाल आँख देश के भीतर बैठे लोगों को दिखाते हैं, बाहर वालों को दिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। तीन दिक्कतें बता देता हूँ, नाम चीन का भी लेने की हिम्मत नहीं करते और तीसरी दिक्कत यह है, हमेशा तुलना करते रहेंगे, भाई, आप उठा लीजिए मुद्दा। अरे साहब, लखीमपुर पर तो कांग्रेस बोलती है, महाराष्ट्र पर नहीं बोलती, आपने किस पर बोला? आपने तो न लखीमपुर पर बोला, न महाराष्ट्र पर बोला। हाथरस पर कांग्रेस बोल देती है, राजस्थान पर नहीं बोलती, आपने न हाथरस पर बोला, न राजस्थान पर बोला। तो ये प्रधानमंत्री जो हैं, तुलना करने के बजाय अपना ट्रैक रिकॉर्ड बताएं न कि आपने कहाँ बोला, या आप कहाँ गए? बड़ी मुश्किल से ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई चीन पर, उसमें भी क्लीन चिट दे आए, ऐसे प्रधानमंत्री को तो अब ट्विटर से बाहर हो जाना चाहिए, फेसबुक पर अगर हैं, तो मुझे नहीं मालूम हैं या नहीं बाहर हो जाना चाहिए, इंस्टाग्राम से बाहर हो जाना चाहिए। देश चलाओ भाई, हो गया बहुत ये ट्विटर-ट्विटर।

 

हमसे तो पूछते हैं कि आप सिर्फ ट्विटर, सोशल मीडिया और प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, प्रधानमंत्री से तो पूछिए, वो तो प्रेस कांफ्रेंस भी नहीं करते, वो तो ट्विटर-ट्विटर करते हैं और जब बोलते हैं, तो क्लीन चिट दे देते हैं। अरे ये कैसे देश चल रहा है, पूछिए न उनसे? अब प्रेस कांफ्रेंस वो नहीं करते, न करें। कभी घेर कर पूछ लीजिए, कहीं न कहीं तो टकरा ही जाते होंगे पार्लियामेंट के बाहर, पूछिए न उनसे; फिर देखिए, क्या जवाब मिलता है।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि प्रधानमंत्री द्वारा चीन को क्लीन चिट दिए जाने वाले बयान की गलती को कैसे सुधारें, दूसरा, आपने सैनिकों के पराक्रम की बात की, तो क्या आपको लगता है कि किसी मिलिट्री सोलूशन की तरफ इंडिया बढ़े, खेड़ा ने कहा कि जो विश्व समुदाय में एक मैसेजिंग पर डिप्लोमेसी चलती है, आप मुझसे ज्यादा समझते हैं, जो विश्व समुदाय में एक हमने संदेश दिया, उस क्लीन चिट के माध्यम से, उस संदेशवाहक को ही खुद उस संदेश को बदलना होगा। परसेप्शन को बदलना होगा। लेकिन प्रधानमंत्री जी अपनी छवि का बारे में ज्यादा चिंतित हैं और किसी चीज में चिंतित नहीं रहते हैं, वो स्टेटमेंट दें। क्या करें, वो तो उन्हें ज्यादा मालूम है, लेकिन “तुम ही ने दर्द दिया, तुम ही दवा देना”, यही बात उन पर लागू होती है।

 

आप कहते हैं कि क्या मिलिट्री सोलूशन है, मिलिट्री सोलूशन है, नहीं है, यह बात प्रधानमंत्री को अब तय करनी होगी कि कैसे आपने जो गलतियाँ की, जिन गलतियों की वजह से बार-बार, अलग-अलग बॉर्डर्स पर हमें झेलनी पड़ रही है ये मुसीबत, वो कैसे हल की जा सकती है?

 

भारत की सेना से अच्छे-अच्छे लोग घबराते हैं, डरते हैं। हमारी सेना पराक्रमी सेना है और उसका एक मजबूत ट्रैक रिकॉर्ड है, लेकिन वो सेना कमजोर सरकार के सामने क्या करेगी? सरकार को मजबूती दिखानी होगी,  you have to send the message of strength, of courage.

 

एक अन्य प्रश्न पर चीन के कमांडर प्रवक्ता ने कहा है कि भारत को वास्तविक स्थिति का गलत आंकलन करने के बजाय, जो वास्तविक स्थिति संजोई है उसको बचाकर रखना चाहिए, क्या कहेंगे, खेड़ा ने कहा कि हम चीन की बात क्यों मानें कि हमारी मांग अनुचित है। हम जिन इलाकों में पेट्रोलिंग करते थे अप्रैल 2020 तक उन इलाकों में पेट्रोलिंग करेंगे, ये अवास्तविक नहीं है, ये अनुचित नहीं है। कोर कमांडर हमारे अच्छी तरह समझते हैं। इसलिए वार्ता में उन्होंने ये बात नहीं मानी, हमें गर्व है हमारी सेना पर कि उन्होंने ये बातें नहीं मानी।

 

हमें संशय है या दिक्कत है, तो प्रधानमंत्री से, इस सरकार से है कि जो स्थिति पर ले आए इस देश को और कैसे आई ये स्थिति, एक तो आपका रवैया शतुर्मुर्गी रवैया है कि कोई आया ही नहीं, कोई घुसा ही नहीं, कोई है ही नहीं। दूसरा, जब आपको हम यहाँ बैठकर तक़ाज़ा करते हैं कि साहब, देखिए क्या हो रहा है, डेपसांग पर, हॉट स्प्रिंग पर, गोगरा में, तो आप हमें लाल आँख दिखाते हो। फिर आप कहते हो, अरे कांग्रेस के वक्त ये हुआ, कांग्रेस के वक्त वो हुआ, कांग्रेस के वक्त 2005 की एग्रीमेंट हुई, कांग्रेस के वक्त दो बार भूगोल बदला देश का। हम लोगों ने बदला; नाथूला में कांग्रेस ने बदला लिया, 1962 का। 1971 में कांग्रेस ने क्या किया, सबको मालूम है ये बात। तो आप हमें या आप मीडिया वालों को लाल आँखे दिखाने से अच्छा है चीन को दिखाओ न, जो वादा करके आए थे।

 

पाकिस्तान को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में खेड़ा ने कहा कि देखिए, गुडविल जैस्चर्स के खिलाफ कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता, जो कई-कई सालों तक सरकारों का हिस्सा रहा हो, लेकिन गुडविल जैस्चर्स का एक समय होता है। क्या कह उचित समय है, ऐसे गुडविल जैस्चर्स का, जब कश्मीर में आपके लोग मारे जा रहे हों, वीर सैनिक मारे जा रहे हों? अभी कल 5 लोग हमारे जवान शहीद हुए, क्या यह सही समय है गुडविल जैस्चर का? 2014 में आपने अपनी शपथ ग्रहण में बुला लिया था। ठीक है, कुछ लोगों को आपत्ति थी, हमने सोचा नई शुरुआत करना चाहते होंगे। फिर आपने क्या किया, आप चले भी गए बिना बुलाए जन्मदिन मनाने, उसके बाद आपके साथ क्या हुआ- उड़ी हुआ, पठानकोट हुआ, पंपोर हुआ, पुलवामा हुआ, क्या-क्या नहीं हुआ आपके साथ, तो Goodwill gestures are an essential part of building confidence among nations, but, the critical aspect of goodwill gesture is the timing. I don’t think, this is the good time for such goodwill gestures.

 

लखीमपुर खीरी की घटना के बाद कांग्रेस द्वारा गृह राज्य मंत्री की बर्खास्तगी को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में खेड़ा ने कहा कि गृह राज्य मंत्री ने खुद इस्तीफा तो दिया नहीं, हमने बर्खास्तगी की मांग की और उसके बाद, जब सुप्रीम कोर्ट ने किस सख्त लहजे में पूछा सरकार से कि क्या हर 302 के आरोपी के साथ ऐसे पेश आते हैं, उसके बाद अब वो हिरासत में हैं। आज कुछ मीडिया रिपोर्ट भी आईं, जिसमें सीसी टीवी फुटेज भी बड़ा स्पष्ट है कि आशीष मिश्रा उस गाड़ी में मौजूद थे। तो उसके बाद एक मिनट का समय नहीं लगाना चाहिए प्रधानमंत्री को अजय मिश्रा को बर्खास्त करने में। जितना वो समय लगा रहे हैं, उतना इस देश के मन में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि प्रधानमंत्री जी या तो कोई दबाव में हैं, कई बार ऐसा भी उदाहरण मिला है कि प्रधानमंत्री जी दबाव में ही रहते हैं, अपने ही लोगों से ज्यादा दवाब में रहते हैं और यह फिर प्रधानमंत्री जी की नजरों में यह गुनाह है ही नहीं। उनका एक मुख्यमंत्री, पसंदीदा मुख्यमंत्री, हैंडपिक्ड मुख्यमंत्री (हरियाणा) किस तरह की भाषा में किसानों के लिए बात करता है? तो ये चारों, पांचो उदाहरण अगर हम सामने रखें, तो कई बार मन में बड़ा अफसोस होता है कि शायद प्रधानमंत्री को कोई आपत्ति ही नहीं है कि किसानों को रौंदकर मार दिया गया। उनको उसमें कुछ गलत लगता ही नहीं है, यही होगा, वरना बिल्कुल हटा देना चाहिए था, एक मिनट नहीं लगाना चाहिए था।

 

एक अन्य प्रश्न पर कि बीजेपी ने आरोप लगाया है कि चीन के मामले में कांग्रेस पार्टी चीन के एजेंट के तौर पर काम करती है, क्या कहेंगे, खेड़ा ने कहा कि सरकार देश के साथ क्यों नहीं खड़ी, सरकार सैनिकों के साथ क्यों नहीं खड़ी? क्लीन चिट ये सरकार दे और मिले हुए हम हैं, ये कौन मानेगा? आरएसएस की डेलीगेशन्स जा-जाकर कम्यूनिस्ट पार्टी से मिलती थी, जब हम सरकार में थे, कहते थे, ट्रेनिंग ले रहे थे उनसे, क्या ट्रेनिंग ले रहे थे साहब उनसे? आपके डोभाल साहब के सुपुत्र कहाँ-कहाँ जाते हैं, किस-किस से मिलते हैं, कौन-कौन सी फाउंडेशन हैं, किन-किन फाउंडेशन्स के रिश्ते किन देशों से हैं? हम तो नहीं पूछते, हम तो सीधा-सीधा कहते हैं कि साहब, अगर रिश्ते हमारे हैं, तो क्लीन चिट आप क्यों दे रहे हो? ये कौन सा रिश्ता है आपका? ये अजीब सी बातें, यही देखिए, ये आपने जो सवाल पूछा, बड़ा महत्वपूर्ण सवाल है। सवाल इनको चीन से करना चाहिए, सवाल पूछ रहे हैं, देशवालों से। लाल आँखे दिखानी चाहिए चीन को, लाल आँखें दिखा रहे हैं, मीडिया और कांग्रेस और विपक्ष को, ये किस तरह की आप सरकार चला रहे हैं? जहाँ आपके वश की नहीं है कि अपनी सीमाओं की रक्षा करें; विफल आप हो रहे हैं सीमाओं की रक्षा करने में, जिम्मेदार किसी और को ठहराते हैं। सरकार आप चला रहे हैं, भई, 2013 में डेपसांग में घुसा था चीन, 21 दिन मे मनमोहन सिंह सरकार ने बाहर कर दिया था या नहीं कर दिया था। अगर ऐसा ही कोई प्रगाढ़ संबंध थे, हमारे छिपे-छिपे, तो क्यों बाहर कर पाए हम, तो रह जाते यहीं, ये कैसी बातें करते हैं?

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