कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के चलते, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार को जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं को पूर्ण रूप से बहाल करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों को स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी पूरी जानकारी उपलब्ध हो, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने आज कहा।
19 मार्च 2020 तक, कोरोनावायरस के 219,217 मामलों की पुष्टि होने, 8,965 लोगों की मौत होने और कम से कम 85,742 लोगों के इस बीमारी से उबरने के चलते, दुनिया इस पीढ़ी की अब तक की सबसे बड़ी महामारी का खतरा झेल रही है।
19 मार्च (सुबह 9:00 बजे) तक, भारत सरकार ने देश में कोरोनावायरस के 166 मामलों की पुष्टि होने की सूचना दी है। इनमें से चार मामलों की पुष्टि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की सरकार ने की है। मामलों की बढ़ती संख्या के बावजूद, 17 मार्च 2020 को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की सरकार ने क्षेत्र में इंटरनेट सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध को जारी रखने का आदेश दिया जिसमें इंटरनेट की की स्पीड को 2G तक सीमित रखना भी शामिल है।
सुरक्षा की आड़ में कुछ क्षेत्रों में बीच बीच में इंटरनेट को पूरी तरह से बंद भी किया गया है। वायरस के फ़ैलने को रोकने के लिए, सरकार ने सभी शैक्षिक संस्थानों, सार्वजनिक पार्कों, होटलों, रेस्तरां आदि को बंद करने के साथ साथ, सार्वजनिक समारोहों पर अन्य प्रतिबंध लगाने के आदेश भी दिए हैं।
“महामारी को लेकर लोगों में चिंता बढ़ती जा रही है और इस हालत में जानकारी और सूचना के प्रसार पर गैरज़रूरी प्रतिबंध लगान सिर्फ लोगों में भय को बढ़ाने का काम करेगा। इंटरनेट को पूरी तरह से बंद किया जाना या इंटरनेट की स्पीड या उपलब्धता पर प्रतिबन्ध लगाने से लोगों के लिए इन कठिन हालातों से निपटना और मुश्किल हो जाएगा और इससे उनका शासन में भरोसा और गिरेगा। सार्वजनिक स्वास्थ्य के संरक्षण को मद्देनज़र रखते हुए, भारत सरकार को अधिकारों का सम्मान करने वाला दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और 4G इंटरनेट स्पीड बहाल करनी चाहिए, ”अविनाश कुमार, कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया।
सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उठाये जाने वाले सभी रोकथाम, मुस्तैदी, नियंत्रण और उपचार सम्बन्धी प्रयासों के केंद्र में मानव अधिकारों का दृष्टिकोण होना चाहिए और इसके तहत सबसे कमजोर समुदायों को सहायता मुहैया कराई जानी चाहिए। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में अंकित स्वास्थ्य के अधिकार में स्वास्थ्य सेवा का अधिकार भी शामिल है। स्वास्थ्य से संबंधित जानकारी का मुहैया कराया जाना भी स्वास्थ्य के अधिकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
"समुदाय में मौजूद मुख्य स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में शिक्षा और जानकारी उपलब्ध कराना जिसमें इन समस्याओं की रोकथाम और नियंत्रण के उपाय भी शामिल है" इसे स्वास्थ्य के अधिकार के मूल दायित्वों के "बराबर प्राथमिकता वाला दायित्व" माना गया है। 17 मार्च 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नवीनतम स्थिति रिपोर्ट में यह सिफारिश दी गई थी कि जनता को अनिवार्य रूप से स्थिति से अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वे अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए उचित कदम उठा सकें। इसमें आगे यह सलाह दी गयी है कि बिमारी के फैलाव को लेकर चिंता से, विश्वसनीय स्रोतों से मिले तथ्यों को लोगों तक पहुंचा कर, निपटा जा सकता है जिनके ज़रिये खतरों का सही मूल्यांकन करने में मदद मिले और उचित सावधानी बरती जा सके।
जम्मू और कश्मीर के लोगों को अपने स्वास्थ्य के लिए खतरों, जोखिम को कम करने के उपायों, भविष्य के संभावित परिणामों की पूर्व चेतावनी सम्बन्धी जानकारी और उठाये जा रहे कदमों की जानकारी के बारे में सूचित रहने का पूरा अधिकार है। उन्हें अपनी स्थानीय भाषाओं में, मीडिया के माध्यम से और उस रूप में जानकारी पाने का अधिकार है, जिसे आसानी से समझा और हासिल किया जा सकता हो, ताकि वे जवाबी प्रयासों में पूरी तरह से हिस्सा ले सकें और सूचित निर्णय ले सकें। ऐसा करने में विफलता, असहायता, गुस्से और हताशा की भावना को बढ़ा सकती है, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया को कमजोर कर सकती है, दूसरों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती है, और मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण भी बन सकती है।
“कोरोनावायरस के संबंध में स्थिति लगातार बदल रही है। जम्मू और कश्मीर के लोगों तक इस जानकारी के पूर्ण संचार को सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार को इस क्षेत्र में इंटरनेट प्रतिबंधों को तत्काल हटाना चाहिए और वायरस के फैलाव के खिलाफ लोगों की तात्कालिक मुस्तैदी सुनिश्चित करनी चाहिए। कोरोनावायरस से निपटाने की कार्यवाई मानव अधिकारों के उल्लंघन, गैर-पारदर्शिता और सेंसरशिप पर आधारित नहीं हो सकती हैं", अविनाश कुमार ने कहा।
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