नई दिल्ली: जमीयत उलेमा ए हिंद ने इस्लामी मदरसों को सलाह दी है कि वह अपने यहां हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा को स्थापित करें। जमीयत उलेमा ए हिंद ने इससे संबंधित दिल्ली में होने वाले अपने प्रबंध कमेटी के अधिवेशन में एक प्रस्ताव भी पारित किया है। जहां देशभर से 2,000 से अधिक इस्लामिक विद्वान और जमीयत के सदस्यगण सम्मिलित थे। यह प्रस्ताव प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान दारुल उलूम देवबंद के अध्यापक मौलाना सलमान बिजनौरी ने प्रस्तुत किया। जमीअत उलमा ए हिंद के अध्यक्ष मौलाना कारी उस्मान मंसूरपुरी की अध्यक्षता में और महासचिव मौलाना महमूद मदनी के सफल संचालन में संपन्न अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहां गया कि वर्तमान समय में दूसरों तक प्रचार- प्रसार पहुंचाने, बल्कि इस्लामी आदेशों का विवरण, सद व्यवहार से परिचित कराने के लिए आधुनिक शिक्षा और अंग्रेजी व दूसरी भाषाओं का ज्ञान आवश्यक हो गया है। अगर इस्लामी मदरसा और दीनी- धार्मिक शिक्षा केंद्रों के विद्यार्थी मूलभूत आधुनिक शिक्षा जैसे साइंस, विज्ञान, भूगोल, गणित और अंग्रेजी, हिंदी दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं से अच्छी तरह परिचित हों ,तो वह अधिक सफलतापूर्वक, सभी मामलों में सही मार्गदर्शन की जिम्मेदारी अदा कर सकेंगे।
इस परिदृश्य में जमीयत उलेमा ए हिंद की प्रबंध कमेटी का यह सम्मेलन इस्लामी मदरसों के जिम्मेदारों, पदाधिकारियों से अपील करता है कि उचित आवश्यकताओं के दृष्टिगत अपनी शैक्षिक व्यवस्था में मूलभूत और आधुनिक शिक्षा को शामिल करें। जिससे मदरसों और शैक्षिक संस्थानों के प्रबंध पर किए जाने वाले विरोध और प्रश्नों का समाधान भी हो सकेगा और उन संस्थानों के मूलभूत उद्देश्य की प्राप्ति में सुविधा और सरलता भी होगी। इसलिए मदरसों और मकतब के पदाधिकारीगण अपने मूलभूत ढांचे में परिवर्तन लाए बिना अपने शिक्षा केंद्रों में प्राइमरी स्तर से ऊपर मिडिल स्कूल तक की शिक्षा उपलब्ध कराएं। और मदरसों व अपने शिक्षा संस्थानों की शैक्षिक व्यवस्था में हायर सेकेंडरी तक की शिक्षा को मजबूत बनाएं।
देर शाम तक चले इस अधिवेशन में धर्मिक कट्टरवाद की निंदा से सम्बंधित
प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें कुछ तत्वों की तरफ से फैलाई जाने वाली धार्मिक कट्टरवादीता और एक विशेष कल्चर को जबरदस्ती थोपने की कोशिशों की निंदा करते हुए इसे देश के माथे पर कलंक बताया गया और रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की रोशनी में प्रभावी कानून बनाकर इस को लागू करने को यकीनी बनाया जाए। बहुसंख्यक व अल्पसंख्यकों के बीच विश्वास का वातावरण बहाल किया जाए, वरना इसके परिणाम राष्ट्र और कौम ,सभी के लिए अत्यधिक हानिकारक होंगे।
जमीयत उलमा ए हिंद ने एक प्रस्ताव में यू ए पी एक्ट के वर्तमान संसोधन पर भी चिंता प्रकट की और कहा कि इस कानून में जिस तरह एजेंसियों को किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी करार देने का अधिकार दिया गया है वह व्यक्तिगत आजादी पर बड़ा हमला है और इस बात की आशंका है कि इसे राजनीतिक और धार्मिक दुर्भावना के लिए प्रयोग किया जाएगा। आतंकवाद के खिलाफ सख्त से सख्त कानून बने हमें स्वीकार है। मगर पिछले 15 वर्षों के अनुभवों की रोशनी में जमीअत उलमा हिंद इस हकीकत को प्रकट करती है कि अगर सरकार को इस एक्ट का जायजा लेना था तो वह इसके नकारात्मक प्रभावों का जायजा लेती और कानून में संशोधन करके,बेलगाम पुलिस और एजेंसियों को उत्तरदाई बनाती। जिनके हाथ निर्दोषों को लंबे समय तक जेल में रखने और आतंकवाद के आरोपों की वजह से उनकी जिंदगी व कैरियर को बर्बाद करने की गंदगी में संलिप्त हैं।
अनेक प्रस्तावों के पारित होने के बाद जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना कारी मोहम्मद उस्मान मंसूरपुरी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि जमीयत उलेमा ए हिंद जो भी खिदमत अंजाम देती है वह सब दीन-धर्म का हिस्सा है। यह लोगों की गलतफहमी है कि जमीयत के कामों को सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण से देखते हैं। उन्होंने कुरान की आयतों और हदीसों से साबित किया कि एक मोमिन के लिए सबसे बड़ी नेमत ईमान है।
धार्मिक कट्टरवाद की निंदा से संबंधित प्रस्ताव पर बोलते हुए मौलाना महमूद मदनी ने अपने दो टूक अंदाज में कहा कि आपसी एकता कायम करने और देशवासियों के साथ शांति सद्भाव की कोशिश और वृक्षारोपण जैसे कार्य किसी कूटनीति या किसी से डर कर शुरू नहीं किये गये हैं, बल्कि यह सब हमने अपनी नैतिक कर्तव्य के अंतर्गत किया है, ताकि सांप्रदायिक तत्वों के नकारात्मक प्रचार प्रसार का उत्तर दिया जा सके, जो मुसलमानों के संबंध में देशवासियों के दिलों में घ्रणा को पैदा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हालात सरकारों के बदलने से नहीं बदलते बल्कि अपने आप को बदलने से बदलते हैं। हमें हर तरह की समस्याओं का मुकाबला हिम्मत और बहादुरी के साथ करना चाहिए।
इस अवसर पर प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान मुफ्ती मोहम्मद सलमान मंसूरपुरी अध्यापक जामिया कासमिया शाही मुरादाबाद और मौलाना हकीमुद्दीन कासमी सचिव जमीयत उलेमा हिंद ,मुफ्ती अब्दुल मुग़नी, मुफ्ती रोशन कासमी, मौलाना नियाज अहमद फारुकी आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए।
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