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उच्च शैक्षणिक संस्थानों में बौद्धिक संपदा अधिकारों पर जामिया

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने ’उच्च शैक्षणिक संस्थानों में बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) पर एक वेबिनार का आयोजन किया, जिससे कि उसके छात्र और फैकल्टी मेंबर आईपीआर इको-सिस्टम के पहलुओं को गहराई से समझ सकें। 03 अक्टूबर, 2020 को हुए इस वेबिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने किया। इसमें विशेषज्ञ जानकारी देने वालों में सीएसआईआर के पूर्व जाने माने वैज्ञानिक प्रो नरेश सहजपाल, विधि एवं न्याय मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री जी आर राघवेंद्र, शिक्षा मंत्रालय के नवाचार सेल के निदेशक, डा. मोहित गंभीर शामिल थे।

By: वतन समाचार डेस्क

 

  • उच्च शैक्षणिक संस्थानों में बौद्धिक संपदा अधिकारों पर जामिया में वेबिनार

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने ’उच्च शैक्षणिक संस्थानों में बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) पर एक वेबिनार का आयोजन किया, जिससे कि उसके छात्र और फैकल्टी मेंबर आईपीआर इको-सिस्टम के पहलुओं को गहराई से समझ सकें। 03 अक्टूबर, 2020 को हुए इस वेबिनार का उद्घाटन विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने किया। इसमें विशेषज्ञ जानकारी देने वालों में सीएसआईआर के पूर्व जाने माने वैज्ञानिक प्रो नरेश सहजपाल, विधि एवं न्याय मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री जी आर राघवेंद्र, शिक्षा मंत्रालय के नवाचार सेल के निदेशक, डा. मोहित गंभीर शामिल थे।  अपने उद्घाटन भाषण में, प्रोफेसर अख्तर ने कहा कि हाल ही में सरकार की ओर से पेश की गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) ने कौशल विकास, क्षमता विकास और नवाचार एवं रचनात्मकता के साथ शिक्षण प्रक्रियाओं में एक तकनीकी-संचालित नज़रिए को शामिल करने पर ख़ास ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा कि आईपीआर और पेटेंट के बारे में शिक्षाविदों को आम तौर पर कम जानकारी होती है, इसलिए कई बार, फैकल्टी मेंबर अपने नए अनुसंधान कार्य को पेटेंट नहीं करा पाते हैं। अकादमिक संस्थानों का ध्यान भी अपने शोध कार्यों को पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने तक ही सीमित रहता है। इसलिए संस्थानों के भीतर आईपीआर जागरूकता पैदा करना बहुत ज़रूरी है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि अकादमिक संस्थानों में एक ऐसी समर्थ संस्कृति विकसित करने की ज़रूरत है, जिससे अध्यापकों और छात्रों को पता हो कि “क्या पेटेंट कराया जा सकता है और क्या नहीं“। उन्होंने कहा कि छात्रों और अध्यापकों को अपने शोध कार्यों को पेटेंट कराने की प्रक्रिया और उससे होने वाले फायदों को समझना चाहिए।

प्रो अख्तर ने वेबिनार में हिस्सा लेने वालों को भारत सरकार द्वारा की गई पहलों और अकादमिक संस्थानों में पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में आईपीआर को शामिल करने की यूजीसी की सिफारिशों के बारे में भी बताया।    

कुलपति ने कहा कि जामिया का रिसर्च प्रोफ़ाइल बहुत शानदार है और इनका पेटेंट कराने के साथ ही उन्हें समाज के लिए व्यावहारिक इस्तेमाल में बदलने की ज़रूरत है। जामिया के छात्र और शिक्षक समुदाय आईपीआर के लिए एक सक्षम प्रणाली और जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वित्तीय प्रोत्साहन के साथ, आईपीआर फाइलिंग को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय में एक तंत्र स्थापित किया गया है। आने वाले दिनों में इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को और ज़्यादा बढ़ावा दिया जाएगा। आईपीआर, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अनुसंधान योजना क्षेत्र के एक मशहूर विशेषज्ञ, प्रो सहजपाल ने पेटेंट के महत्व, पेटेंट आवेदन और उसके बाद की प्रक्रियाओं के बारे में बहुत विस्तार से बताया। उन्होंने अपने अनुभवों को भी साझा किया और इस बात की जानकारी दी कि कैसे रिसर्च कार्यों को पेटेंट कराके, उन्हें व्यावहारिक इस्तेमाल में लाया जा सकता है।  

श्री जी राघवेंद्र ने शैक्षणिक संस्थानों में आईपीआर के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए गए आईपीआर, पेटेंट और कानूनी पहलुओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जामिया देश के शीर्ष दस केंद्रीय विश्वविद्यालयों में है और आने वाले वर्षों में, इसके अपने पेटेंट प्रोफाइल में सुधार करने की बहुत अधिक संभावना है।

डॉ मोहित गंभीर ने एचईआई में एक इनोवेशन कल्चर बनाने पर सरकार की पहल के बारे में बताया। उन्होंने उद्योगों के व्यावहारिक उदाहरणों को साझा करते हुए आईपीआर उल्लंघनों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने दुनिया के अन्य देशों में आईपीआर पेटेंट और इनोवेशन आंकड़ों को रखते हुए, इसकी अहमियत के बारे में बताया।

 

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