जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट रेज़ोल्यूशन (एनएमसीपीसीआर) ने, विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के एक हिस्से के रूप में ’वर्तमान परमाणु शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण परिदृष्य’ विषय पर ऑनलाइन एक्स्टेंशन लेक्चर का आयोजन किया। सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज, नई दिल्ली की सीनियर फेलो, डा. मनप्रीत सेठी इसकी मुख्य वक्ता थीं। जामिया की फैकल्टी ऑफ सोशल साइंसेज के डीन, प्रो.रवींद्र कुमार ने इसकी अध्यक्षता की।
एनएमसीपीसीआर की आनरेरी निदेशक प्रो कौशिकी ने अपने शुरूआती संबोधन में मुख्य वक्ता, फैकल्टी मेंबरों, रिसर्च स्कालरों और जामिया तथा अन्य संस्थानों के छात्रों का स्वागत किया। उन्होंने एनएमसीपीसीआर और उद्देश्यों के बारे में संक्षिप्त में बताया। अध्यक्ष डॉ रविन्द्र कुमार ने मुख्य वक्ता, डॉ मनप्रीत सेठी का स्वागत किया और उनका परिचय दिया।
जामिया के 100 साल और एनएमसीपीसीआर के 15 साल पूरे होने पर, डॉ मनप्रीत सेठी ने मुबारकबाद दी। परमाणु शस्त्र नियंत्रण संधि (एनएसी) की वर्तमान स्थिति पर उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात कई वजहों ‘मायूसी और भय‘ पैदा करने जैसे हैं। पुराने समझौते खतरे में हैं और कोई नई पहल नहीं हो रही है। चीन जैसे देश उदासीनता दिखा रहे हैं। इसके अलावा, आपसी अविश्वास पैदा होने से, सभी नौ परमाणु हथियारों वाले देशों द्वारा परमाणु हथियारों का आधुनिकीकरण करने पर ज़ोर है।
उन्होंने ‘‘डूमसडे क्लॉकः इट्स 100 सेकंड्स टू मिडनाइट‘‘ के ज़रिए परमाणु आपातकाल के खतरे के प्रति आगाह करते हुए कहा कि यह स्थिति अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि ऐसे उभरते डरावने हालात से निपटने के लिए परमाणु शस्त्र नियंत्रण संधि पर टिके रहना ज़रूरी है, क्योंकि यह परमाणु हथियारों के खतरों से बचाने के लिए बनी है। यह परमाणु देशों को संयम बरतने पर ज़ोर देती है। उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण द्विपक्षीय एनएसी संधियों के बारे में भी बताया, जो एनएसी द्वारा पूर्व में किए गए उसके सकरात्मक प्रयासों को दर्शाते हैं।
डा. मनप्रीत सेठी ने निरस्त्रीकरण पर बोलते हुए, 2017 में अपनाए गए परमाणु हथियार निषेध संधि (टीपीएनडब्ल्यू) के मौजूद हालात को पेश किया। उन्होंने इस बड़ी चुनौती पर प्रकाश डाला कि नौ में से किसी भी परमाणु संपन्न देशों ने इस महत्वपूर्ण टीपीएनडब्ल्यू संधि की बातचीत में हिस्सा नहीं लिया। साथ ही उन्होंने कहा कि लेकिन, अभी सारी उम्मीदें खत्म नहीं हो गई हैं और एनएसी निश्चित रूप से परमाणु खतरों को कम करने के एक तरीके के रूप में मददगार साबित हो सकती है।
व्याख्यान के अंतिम सत्र में उन्होंने कहा कि हम नागरिकों और शिक्षाविदों के रूप में ‘मायूसी और भय‘ के मौजूदा हालात को रोकने या कम करने के लिए काम कर सकते हैं। इसमें परमाणु जोखिमों को समझना और जागरूकता बढ़ाना, विभिन्न मुद्दों पर आम सहमति बनाने, दोषियों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की मांग करना और सरकारों को संभावित उपायों का सुझाव देना शामिल हो सकता है।
आखिर में सवाल-जवाब का सत्र चला जिसमें श्रोताओं ने कई अहम सवाल उठाए। एनएमसीपीसीआर की एसोसिएट प्रोफेसर रेशमी काज़ी ने, व्याख्यान के संक्षिप्त सारांश की प्रस्तुति के साथ सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद किया।
व्याख्यान में कई प्रख्यात व्यक्तित्वों, जामिया और अन्य विश्वविद्यालयों के विभिन्न विभागों के प्रमुखों, फैकल्टी मेंबरों, छात्रों और शोधकर्ताओं ने हिस्सा लिया।
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