जामिया के शोधकर्ताओं ने लिविंग सेल्स में आर्सेनिक लेवल की चेतावनी देने वाला नैनोसेंसर विकसित किया
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बायोसाइंसेज़ विभाग के एसिस्टंेंट प्रोफेसर डा मुहम्मद मोहसिन के नेतृत्व वाली शोधकर्ताओं की टीम ने एक ऐसा नैनोसेंसर विकसित किया है जो लिविंग सेल्स में आर्सेनिक स्तर के बढ़ने की चेतावनी देने की क्षमता रखता है। आर्सेनिक विषाक्तता एक बड़ी चिंता की बात है क्योंकि यह शरीर को गंभीर टाक्सकलाजिकल क्षति पंहुचाता है।
इस नैनोसेंसर को सेनअलिब:सेंसर फाॅर आर्सेनिक लिंक्ड ब्लैकफुट डिज़ीज़ः नाम दिया गया है। यह लिविंग सेल्स को क्षति पंहुचाए बिना, उसमें मौजूद आर्सेनिक की पहचान करके उसकी मात्रा भी बता सकता है। नैनामोलर रेंज तक आर्सेनिक स्तर को जानने की इसकी क्षमता है।
एफआरईटी-आधारित यह सेंसर काफी सरल और विश्वसनीय है, जो नाॅन इनवेसिव और हाई रिज़ाल्यूशन के जरिए आर्सेनिक के जमाव की पहचान कर सकता है।
जामिया टीम का यह महत्वपूर्ण शोध, हाल ही में प्रतिष्ठित पत्रिका ‘‘ साइंटिफिक रिपोर्ट्स ‘‘ में प्रकाशित हुआ है।
इस सेंसर की खासियत यह है कि तेज़ी से बदलते रहते आर्सेनिक स्तर:एएस3 प्लसः को, वह रिअल टाईम में माप कर तुरंत उसकी रिपोर्ट दे सकता है।
इस नैनोसंेंसर की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी तरह के सेल्स में आर्सेेनिक विषाक्तता के स्तर को, किसी भी समय बिंदु पर बता सकता है।
भारत सरकार के समक्ष इस नैनोसेंसर को पेंटट कराने के लिए फाइल किया गया है।
डा मोहसिन, प्रिसिंपल इन्वेस्टिगेटर के रूप में भारत सरकार की कई महत्वकांक्षी अनुसंधान परियोजनाओं को चला रहे हैं। देश विदेश की कई जानी मानी साइंस पत्रिकाओं में उनके शोध कार्य प्रकाशित हुए हैं। उनके शोधकार्य, स्वास्थ्य देखभाल और सेलुलर पर्यावरण निगरानी पर खासतौर से केन्द्रित हैं।
वह भारत के पहले शोधकर्ता हैं जिन्होंने एफआरईटी आधारित नैनोसेंसर विकसित करने में पहल की है।
साल 2014 और 2016 में वह हाई इम्पेक्ट पब्लिकेशन अवार्ड से सम्मानित किए गए।
डा मोहसिन कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के समीक्षक और संपादक हैं। देश विदेश के कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों में उनके अनुसंधान कार्यों को पेश किया गया है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में वह 8 रिसर्च फैलो के समूह का नेतृत्व कर रहे हैं, जिनमें पीएच.डी. और पोस्टडाॅक्टरल साइंटिस्ट शामिल हैं।
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