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श्रमिक क़ानून कमज़ोर करने कि ख़बरों पर भड़की जमात ए इस्लामी हिन्द, आया स्ट्रांग रिएक्शन

हमें श्रमिक वर्गों को केंद्रीय स्थान देना होगा: जमाअत इस्लामी हिन्द

By: वतन समाचार डेस्क
  • श्रमिक क़ानून कमज़ोर करने कि ख़बरों पर भड़की जमात ए इस्लामी हिन्द, आया स्ट्रांग रिएक्शन
  • हमें श्रमिक वर्गों को केंद्रीय स्थान देना होगा: जमाअत इस्लामी हिन्द

 

 

श्रमिकों के मुद्दे को उठाते हुए जमात-ए-इस्लामी हिंद की ओर से कहा गया है कि हमें श्रमिकों के मामलों को केंद्रीय स्थान देना होगा व श्रमिकों की समस्याओं को सही ढंग से समझना और उस समस्या का समाधान करना होगा. जमात इस्लामी हिंद की ओर से श्रमिकों की मौजूदा स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि श्रमिक कानून का जमात-ए-इस्लामी पूरी तरह समर्थन करती है और जिस तरह से कुछ राज्यों द्वारा इस कानून में बदलाव के संकेत मिल रहे हैं वह चिंताजनक और दुखद हैं. उसे किसी भी सूरत में स्वीकारा नहीं जाना चाहिए. जमात-ए-इस्लामी की ओर से इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार से अपील की गई है कि वह तत्काल प्रभाव से इस मामले में हस्तक्षेप करे और श्रमिकों की समस्याओं का न सिर्फ समाधान करे बल्कि श्रमिक कानून को कमजोर करने के बजाय उसको और मजबूती प्रदान की जाए ताकि श्रमिकों की सुरक्षा उनकी स्वास्थ्य की पूरी जिम्मेदारी तय हो.

 

 

आमतौर पर मुस्लिम संगठनों के बारे में यह बात कही जाती है कि वह मुस्लिम समस्याओं के अलावा किसी मसले पर नहीं बोलते हैं. वह उन्हीं मसलों पर बोलते हैं जिनका संबंध सीधे-सीधे मुसलमानों से होता है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी हो या जमीयत उलमा यह ऐसे संगठन हैं जो ऐसे तमाम मुद्दों पर बोलते हैं जो देश के आमजन से संबंधित हैं. चाहे वह रोजगार से संबंधित हों चाहे वह श्रमिकों और मजदूरों से संबंधित हों, चाहे वह देश की अर्थव्यवस्था से संबंधित हों या फिर देश के शिक्षा सिस्टम से संबंधित हों

 

 जमात-ए-इस्लामी की ओर मीडिया को जारी एक बयान में जमाअत के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने कहा कि हम उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात एवं अन्य राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा श्रम क़ानून को कमज़ोर करने के मनमाने योजना का विरोध करते हैं। श्रम क़ानून में यह बदलाव काम के घंटों, विवादों के निपटारे, सुरक्षा, स्वास्थ्य, श्रमिकों की कार्य-स्थिति के साथ व्यापार संघों, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मज़दूरों से सम्बंधित मामलों में किया गया है। इसके अतिरिक्त यह पेयजल, प्राथमिक चिकित्स, सुरक्षात्मक उपकरण जैसी बुनियादी मानवीय सुविधाओं को नकारतमक रूप से प्रभावित करेगा और मज़दूरों के बच्चों के लिए स्वच्छता, वेंटीलेशन, प्रकाश व्यवस्था, कैटिन, टॉयलेट और डे-केयर सुविधा जैसी आवश्यकताओं में बेपरवाही बरते जाने की संभावना है। जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों को बेसहारा छोड़ दिया गया, सरकार का उनके प्रति संवेदनहीनता को दर्शाता है। जबकि यही मज़दूर दरहक़ीक़त हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। निवेश के उद्देश्य से श्रमिक क़ानून को निरस्त करना वास्तव में श्रमिक बल का सोशन करना, बेरोज़गारी, कार्यस्थल पर उत्पीड़न और सामाजिक अराजकता को कारण बन सकता है। यकीनन इस समय देश को कोरोना के बाद की स्थिति के कारण निवेश और पैदावार में इज़ाफे की आवश्यकता है मगर यह मानवाधिकारों और आर्थिक नाइंसाफी की कीमत पर नहीं। अपना देष चीन की तरह नहीं है और न ही मज़दूरों से सम्बंधित नीति बनाने में चीन का अनुकरण किया जा सकता है। हम कोई भी नीति बनाते समय मानवता को त्याग नहीं सकते। हमें हर स्थिति में अपने श्रमिक वर्गों के कल्याण को केंद्र में रखना होगा। हम केंद्रीय सरकार से मांग करते हैं कि इस विषय पर हस्तक्षेप कर के मज़दूरों के अधिकारों को यकीनी बनाये और इस तरह से उनके अधिकारों को नहीं छीना जाए।

 

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