जामिया आरिफिया सैयद सरावा इलाहाबाद उ.प. جامعہ عارفیہ سید سراواں الہ آباد اتر پردیش देश ही नहीं बल्कि दुनिया में चर्चित एक ऐसी शिक्षण संस्थान है जिसकी चर्चा देश में ही नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग कोनों में होती है. इस चर्चा के पीछे कई सारे कारण हैं. उन कारणों पर बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि आजादी से पहले के अहम शिक्षण संस्थानों में से एक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया आरिफिया सैयद सरावा इलाहाबाद उ.प. جامعہ عارفیہ سید سراواں الہ آباد اتر پردیش में कई सारी समानताएं हैं.
सबसे बड़ी समानता यह है कि जिस तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को बनाने में सर सय्यद की सिर्फ दौलत ही नहीं बल्कि उनकी कुर्बानियां और मेहनत के साथ उनका खून और पसीना भी शामिल था उसी तरह जामिया आरिफिया को बनाने में हुजूर दाइये इस्लाम शेख अबू सईद शाह एहसानुल्लाह मोहम्मदी सफ़वी की कुर्बानियां उनका अपना पैसा उनकी अपनी मेहनत उनका अपना खून और पसीना पूरी तरह इस में शामिल है.
यही वजह है कि सर सैयद के चमन से निकलने वाले छात्र हों या फिर जामिया आरिफिया से निकलने वाले स्टूडेंट दोनों में शिक्षा के साथ-साथ संस्कार आप को भरपूर नजर आयेगा. आज जब मैं यह लेख लिख रहा हूं तो मुमकिन है कि बहुत सारे लोगों को यह समानताएं समझ में ना आएं लेकिन मुझे यकीन ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आने वाले 20 25 सालों में हम और आप सब अल्लाह ने चाहा तो यह समानताएं अपनी खुली आंखों से देखेंगे, बल्कि जामिया आरिफिया उसमें मुमताज नजर आएगी.
दरअसल जामिया आरिफिया के संस्थापक शेख अबू सईद शाह एहसान उल्लाह मोहम्मदी सफ़वी का मिशन इस माने में कर के सर सैयद के मिशन से बड़ा है कि सर सैयद सिर्फ मुसलमानों को शिक्षित करना चाहते थे और उस वक्त के उलेमाओं पर आरोप है कि उन्होंने उनका मुखर विरोध किया था, लेकिन यह सर सैयद का खुलूस था कि उनके विरोधी अपने बच्चों को उनके चमन में भेजने के लिए आज मजबूर हैं और वह शौक से अपने नाम के आगे अलीग लिखते हैं.
लेकिन आज 21वीं सदी में जामिया आरिफिया सैयद सरावा के संस्थापक शेख अबू सईद शाह एहसानुल्लाह सफवी मोहम्मदी सिर्फ मुसलमानों को शिक्षा और उनके बच्चों को संस्कार देने के लिए प्रयासरत नहीं हैं, बल्कि वह मुसलमानों को दुई का भेद मिटाने का संदेश भी दे रहे हैं और उनका यह मानना है कि भारत राष्ट्र की प्रगति और कमज़ोरों का उत्थान तभी संभव है जब सूफी संतों के संदेश को लोगों तक पहुंचाया जाये और लोगों तक ख्वाजा अजमेरी या देहलवी के साथ साथ इकबाल के उस संदेश को पहुंचाया जाये कि भारत राष्ट्र कितना अज़ीम है :-
चिश्ती ने जिस ज़मीं पे पैग़ामे हक़ सुनाया,
नानक ने जिस चमन में वदहत का गीत गाया,
तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया,
जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
सारे जहाँ को जिसने इल्मो-हुनर दिया था,
यूनानियों को जिसने हैरान कर दिया था,
मिट्टी को जिसकी हक़ ने ज़र का असर दिया था
तुर्कों का जिसने दामन हीरों से भर दिया था,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
टूटे थे जो सितारे फ़ारस के आसमां से,
फिर ताब दे के जिसने चमकाए कहकशां से,
वदहत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकां से,
मीरे-अरब को आई ठण्डी हवा जहाँ से,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
बंदे कलीम जिसके, परबत जहाँ के सीना,
नूहे-नबी का ठहरा, आकर जहाँ सफ़ीना,
रिफअत है जिस ज़मीं को, बामे-फलक़ का ज़ीना,
जन्नत की ज़िन्दगी है, जिसकी फ़िज़ा में जीना,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
गौतम का जो वतन है, जापान का हरम है,
ईसा के आशिक़ों को मिस्ले-यरूशलम है,
मदफ़ून जिस ज़मीं में इस्लाम का हरम है,
हर फूल जिस चमन का, फिरदौस है, इरम है,
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है॥
जामिया आरिफिया सैयद सरावा से निकलने वाले बच्चे पूरे देश में जाकर लोगों के बीच प्यार और प्रेम और सद्भाव का जो संदेश दे रहे हैं, मुझे यक़ीन है कि अगले 10 15 साल के बाद ही लोग यह लिखने के लिए मजबूर होंगे कि "हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है - बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा". और जो लोग आज हुज़ूर के संदेश को नहीं समझ पा रहे हैं वह सिर्फ अफ़सोस करंगे काश पहले इस को समझ लिया होता ... खैर
हालांकि हुजूर दाइये इस्लाम शेख अबू सईद शाह एहसानुल्लाह सफवी मोहम्मदी के कामों पर कई बार सर सय्यद की तरह अलग-अलग अवसर पर मुसलमानों के अलग-अलग धड़ों की ओर से उंगली उठाई जाती रही है, क्योंकि जो लोग अपनी अलग-अलग दुकाने चलाना चाहते हैं और धर्म के नाम पर अपनी डफली अपना राग चाहते हैं, उन्हें अपनी दुकान बंद होती नजर आती है. इसके बावजूद जामिया के संस्थापक का दिल इतना बड़ा है कि उन्होंने कभी किसी के लिए अपशब्द तो दूर की बात गलत अल्फाज भी नहीं कहे और अपने बच्चों को चाहे वह अध्यापक हों या छात्र यही संदेश देते रहे कि सभी सेक्ट सभी धर्म और सभी धर्म गुरुओं का सम्मान अनिवार्य है और मुझे (लेखक) यक़ीन है कि आने वाले दिनों में तमाम विरोधी अपने बच्चों को जामिया में भेजने के लिए उसी तरह मजबूर होंगे, जिस तरह आज सर सय्यद के चमन में भेजने के लिए मजबूर हैं.
जामिया आरिफिया सैयद सरावा एक ऐसी संस्था है जिस के हर ज़िम्मेदार में Sincerity इस तरह मौजूद है कि कम से कम मैं यह कह सकता हूं कि हम ने पीरो पैगम्बरों के बारे में ऐसा पढ़ा ज़रूर था लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में कभी ऐसा देखा नहीं था. यहां आने के बाद देखने का अनुभव भी हुआ. हुजूर (जामिया के संस्थापक) के लायक पुत्र और शाही प्रोडक्ट के CEO श्री हुसैन सईद ने एक अवसर पर फ़रमाया कि सख्त गर्मी के दिनों में ठंडा पानी पीने के लिए जामिया के अलग-अलग जगहों पर जब तक ठंडे पानी की मशीन नहीं लग गई उस वक्त तक हुजूर ने अपने घर में फ्रिज आने की अनुमति नहीं दी.
इसी तरह जब तक जामिया के अलग-अलग मेहमान खानों और अन्य स्थानों पर AC का इंतजाम नहीं हो गया तब तक हुजूर ने अपने घर में AC लगाने की अनुमति नहीं दी. हद तो यह है कि अगर हुजूर जामिया के किचन से मदरसे में बनने वाली नान रोटी मंगवाते हैं तो अपने घर से पहले उतनी रोटियां मदरसे के किचन में भेज देते हैं. जो इंसान अपने ही द्वारा अपने पैसों और मेहनत से बनाए गए शिक्षण संस्थान के साथ पारदर्शिता का यह मामला रखे तो उसे आज के वक्त का सबसे बड़ा निसंदेह "वली" कहा जाएगा और इसमें किसी को कोई संकोच नहीं होना चाहिए.
हुजूर दाइये इस्लाम अपने छात्रों और अध्यापकों से कितना प्यार करते हैं उसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वह एक नहीं अनेकों बार अपने घर से उनके लिए खाने पीने कि चीज़ें और अन्य उपहार अपनी जेब से भेजते हैं...
मदरसे के दिनों को अगर हम याद करें तो हुजूर के चमन से सीख लेने वाले छात्रों और हम में इतना अंतर था कि जिस दिन खाना खिलाने की हमारी बारी होती थी उस रोज़ सबसे पहले हम बारी करने वाले 10 12 लोग खाना निकाल कर अलग कर लेते थे फिर बारी करते और लोगों को खाना खिलाते. बड़ी बात यह है कि दाल हो या सब्जी या फिर गोश्त हम अपनी पसंद से निकालते और उसको अलग से सहेज कर के रख देते थे. जबकि जामिया आरिफिया के छात्रों को मैंने अनेकों बार अलग-अलग अवसरों पर देखा कि यहां ऐसा कोई सिस्टम नहीं है.
यह छात्र सबसे पहले छात्रों के साथ साथ आने वाले मेहमानों को पूरी ईमानदारी के साथ लंगर खिलाते हैं, बारी वालों का खाना अलग रखना तो दूर की बात. कई बार ऐसा होता है कि खाना कम भी पड़ जाता है लेकिन खाना घटने की सूचना वह अपने अलावा किसी और को नहीं देते हैं. सब्र के साथ खामोशी से दस्तरखान पर जो रोटी के बचे हुए टुकड़े होते हैं, उन्हीं पर निर्भर होते हैं. इनको जो संस्कार हुजूर ने दिया है वह संस्कार इतना अजीम और उन्नति वाला है कि यह बच्चे अपनी मर्ज़ी और ख्वाहिश को दूसरे के लिए खत्म कर देते हैं और दूसरों की ख़ुशी को अपनी ख़ुशी समझते हैं.
एक बार की घटना है कि एक अवसर पर हुजूर के घर से मिठाई आई और एक डब्बे में मिठाई कई तरह की थी जबकि दूसरे डब्बे में सिर्फ लड्डू था. क़ारी श्री दिलशाद जो जामिया में बच्चों को कुरान की शिक्षा देते हैं उन्होंने विभिन्न वैराइटीज वाले मिठाई के डब्बे को पहले खोलकर दस्तरखान पर बच्चों और मेहमानों को बांट दिया. अंत में मिठाई का वह डब्बा बचा जिस में सिर्फ लड्डू था जिस पर एक अध्यापक ने कहा कि अगर मिलाकर बांटते तो आप लोगों को भी कलाकंद व अन्य चीजें मिल सकती थीं, उस पर क्या प्यारा जवाब क़ारी श्री दिलशाद ने दिया जिसका मैं खुद साक्षी बना "जो किस्मत में था पीर की दुआओं के सदके अल्लाह ने खिलाया. यह क्या कम सम्मान की बात है कि मिठाई का डब्बा पीर के दर से मिला है.
एक और घटना है, सर्दी के दिन थे, जामिया के प्रधानाचार्य प्रिंसिपल अल्लामा इमरान को नहाना (ग़ुस्ल) फरमाना था. लाइट न होने के कारण पानी गर्म करने के लिए गैस की ज़रुरत थी. उन्होंने एक छात्र जावेद को मेरे पास भेजा, क्योंकि जिस कमरे में मैं उन दिनों रहता था उसमें गैस का बंदोबस्त था. "पत्रकार साहब से पूछो अगर वह अनुमति दें तो आप (छात्र) पानी गर्म कर लाओ, ताकि मैं नहा लूं." अल्लामा ने जावेद से कहा. छात्र जावेद ने आकर सारी बातें मुझ से बताईं तो मैं काफी शर्मिंदा हुआ.
मैंने कहा कि क्या अल्लामा को अनुमति लेने की जरूरत है. उस पर छात्र का जवाब था सर यहां इसी का संस्कार दिया जाता है. आप सोचिए कि जिस जामिया का प्रधानाचार्य इतना अज़ीम और महान हो कि वह बगैर अनुमति के अपने ही जामिया के गैस को इस्तेमाल ना करें उसे आप क्या कहेंगे! इस जैसी अनेकों घटनाएं हैं...
एक और घटना का उल्लेख करना ज़रूरी है. हुजूर के छोटे बेटे श्री अली सईद सफ़वी क़व्वालों के साथ कव्वाली के प्रोग्राम की रिकॉर्डिंग करवा थे. इसी बीच ईशा (08:30 PM) की अजान हो गई. अज़ान के बाद कमरे में हुजूर दाखिल हुए तो देखा की रिकॉर्डिंग चल रही है और उधर ईशा की जमाअत (नमाज़ होने जा रही है) खड़ी होने वाली है. जिस पर हुजूर ने सभी लोगों के साथ-साथ अपने बेटे को सब से ज़्यादा डांट लगाई और फ़रमाया कव्वाली फर्ज नहीं है नमाज फर्ज है. फ़र्ज़ छोड़ कर यहां बैठे हो... नमाज़ के बाद सब लोग मिलो.
नमाज पढ़ने के बाद अपने पुत्र और तमाम लोगों को एक लाइन में खड़ा कर दिया और सबसे ज्यादा अपने पुत्र को डांट लगाई, बोले भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए. जिससे यह समझा जा सकता है यहां पुत्र प्रेम भी नहीं है.
यही वजह है कि इस जामिया का कोई कितना ही बड़ा विरोधी क्यों ना हो जो एक बार यहां आता है यहां का होकर रह जाता है. आप किसी भी धर्म ज़ात और समुदाय के हों यहां का लंगर सबके लिए आम होता है. सबको प्यार और प्रेम के एक सूत्र में बंधने का पैगाम दिया जाता है. अगर आपको मौका मिले तो आप जरूर यहां आयें और यहां पीरों के दर से फैज़ (दुआ) हासिल करें.
दरअसल सूफिया के बारे में जो मनगढ़ंत चीजें फैलाई गई हैं और जिस तरह से मुसलमानों के एक धड़े के द्वारा उनको बदनाम किया गया है यह दर कम से कम उन तमाम बुराइयों से पाक है. एकेश्वरवाद (तौहीद) के विरुद्ध यहाँ कुछ नहीं होता है.
हां!!! पैगंबर मोहम्मद साहब PBUH के जरिए बताये गए शांति प्यार प्रेम एकता के उस मार्ग पर चलने की आपसे अपेक्षा ज़रूर की जाती है और आपको वह पैगाम दिया जाता है जिस से नफरत खत्म हो और प्यार और प्रेम की गंगा बहे.
जारी...
मोहम्मद अहमद _लेखक वतन समाचार के प्रधान संपादक हैं_ सम्पर्क सूत्र "mdahmad009@gmail.com"
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