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BIhar: नम आँखों से कुमार बोले पिछली बार बीजेपी को वोट दिया था इस बार वोट देने नहीं जाऊंगा

Two months ago he moved to Patna in search of work. “I hadn’t lifted even 10 kg in my life, and now I do this (construction work),” says Kumar, 29. In the last 19 days, he has had only two days of work, earning Rs 400 a day. He eats once a day at a temple and sleeps at the Patna Railway station. “In 2015, I voted for the BJP. This year, I will not go to vote at all.”

By: वतन समाचार डेस्क
फोटो इंडियन एक्सप्रेस से लिया गया है

 

Two months ago he moved to Patna in search of work. “I hadn’t lifted even 10 kg in my life, and now I do this (construction work),” says Kumar, 29. In the last 19 days, he has had only two days of work, earning Rs 400 a day. He eats once a day at a temple and sleeps at the Patna Railway station. “In 2015, I voted for the BJP. This year, I will not go to vote at all.”


सूरज अब आकाश में गुम होने वाला है और उम्मीदें दम तोड़ रही हैं. रोजाना सुबह 5:00 बजे हर रोज पटना के बोरिंग कैनाल रोड पर डेढ़ सौ (150) से ज्यादा दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी लोगों की तरफ नजरें उठाये देख रहे हैं कि कोई आए और उन्हें काम दे और वह चल करके अपना काम करें. ज्ञात रहे कि मंगलवार को सुबह 10:30 बजे तक क्षेत्र अभी भी पूरी तरह से पैक है सिर्फ अब तक 10 पुरुषों को ही काम मिला है, बाकी लोग जमीन पर ही ग्रुपों में खड़े बैठे अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं कि कोई आए और उनको काम दे. बीजेपी सरकार के जरिए की गई तालाबंदी के बाद इस तरह के दृश्य आम हो गए हैं.

श्रमिकों का कहना है कि यहां तक की उनके पास जो बचा था वह पूरी तरह खत्म हो गया है. जिस स बचत से अपना जीवन बसर करते थे. महामारी के बीच बिहार ऐसा पहला राज्य है जहां चुनाव होने जा रहे हैं. मजदूरों की दुर्दशा अत्यंत चिंताजनक है. उनमें से कई लोग राज्य को छोड़कर महानगरों को लौट आए हैं और यह एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा है. 
"कहा यह जा रहा है कि जिंदगी पटरी पर लौट रही है, लोग बगैर मास्क के सड़कों पर घूमते हुए नजर आ रहे हैं. बाजारे खुली है, लेकिन लोग यह पूछ रहे हैं नॉर्मल क्या होता है? यहां तो कोई काम ही नहीं है. हम में से अक्सर मजदूर या मिस्त्री रियल स्टेट के काम पर निर्भर थे. हर रोज 600 ₹700 कमा लेते थे, और आज स्थिति यह है कि हमें काम भी मिल जाए तो मजदूरी की कोई गारंटी नहीं है." चौक पर मौजूद एक मजदूर रोहन गुप्ता ने यह दर्द भरी दास्तां सुनाई. 

समूह ने इस बात का भी आरोप लगाया कि गवर्नमेंट स्कीम में काफी गड़बड़झाला है. काशीनाथ ने कहा मजदूरों की यह शुरू से समस्या रही है कि किसी के पास राशन कार्ड है तो कुछ लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है. कुछ लोग सरकारी रिलीफ का फायदा उठाते हैं और कुछ लोग सरकारी रिकॉर्ड में अपने नाम की स्पेलिंग गलत होने की वजह से लाभ से वंचित हो जाते हैं, क्योंकि हम तो ठहरे मजदूर.

अपने गांव में कुछ काम पाने वाले चौक पर रहने वाले कई अंतर राज्य प्रवासी मजदूरों जो Masaurhi, Lakhisarai और यहां तक की लगभग 100 किलोमीटर दूर दरभंगा से आए हैं, इलेक्शन का पारा चढ़ता जा रहा है. उनका कहना है कि उनमें से अक्सर लोगों ने 2015 में नीतीश कुमार को वोट किया था. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि नीतीश कुमार ही राज्य के लिए अब भी बेहतरीन ऑप्शन हैं. नीतीश ने काम तो किया है. शराबबंदी ले लो, इससे पहले हम शराब पर पैसा खर्च कर देते थे और सब शराब पर खर्च हो जाता था लेकिन अब वह पैसा हम अपने परिवार के लिए खर्च करते हैं". काशीनाथ ने यह बातें कहीं. 

लेकिन उनकी इन बातों का एक पुराने मजदूर ने काउंटर करते हुए कहा किसने कहा शराब बंदी है. अब तो शराब महंगी हो गई हैं. यहां के वर्कर भी इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं हो पा रहे हैं कि वोट करें या नहीं. काशीनाथ ने कहा कि अगर महीने में 5 दिन आपको काम मिलेगा और पटना में हमारे रूम का किराया 3000 है और अगर उसमें किचन है तो यह 4000 हो जाता है, हम में से कोई कैसे इस भार को उठा सकता है. 


इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 3 किलोमीटर दूर शिप्रा रेलवे ब्रिज (Sipara Railway Bridge) के नीचे एक अन्य स्थान जहां दैनिक यात्री काम खोजने के लिए इकट्ठे होते हैं, राहुल कुमार कहते हैं कि पहले उन्होंने मुंबई में एक निर्यात कपड़ा कंपनी में ₹20000 के मासिक वेतन पर काम किया. वह उन हजारों प्रवासी कामगारों में से एक हैं जो मार्च-अप्रैल में घर जहानाबाद चले थे और उन्हें आने में 13 दिन का समय लगा था. 

2 महीना पहले काम की तलाश में पटना चले गए, 29 साल के कुमार कहते हैं मैंने अपने जीवन में 10 किलो वजन भी नहीं उठाया था और अब मैं निर्माण कार्य करता हूं. पिछले 19 दिनों में उनको केवल 2 दिन काम मिले हैं और आमदनी कुल 400 रुपया की हुयी हैं. वह दिन में एक बार मंदिर में खाना खाते हैं और पटना रेलवे स्टेशन पर सोते हैं. 2015 में मैंने भाजपा को वोट दिया था. इस साल में वोट देने ही नहीं जाऊंगा. 

पिछले महीने महीनों के संघर्षों के बारे में बात करते हुए उनकी आंखें छलक उठीं. सरकार परिवार का मुखिया है. लोग घर की ओर चलते हुए मर गए, क्या कोई अपने ही परिवार को इस तरह से चोट पहुंचाता है. जीते जी मार ही दिया, कुमार (29) ने कहा.

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