26 जनवरी के दिन लाल किले पर जो कुछ हुआ उसके बाद आरोप और प्रत्यारोप के बीच पुलिस ने टिकरी बॉर्डर पर बड़ी-बड़ी कीलें ठोक दी हैं, ताकि किसान अपने ट्रैक्टर को लेकर 26 जनवरी की तरह दिल्ली में ना घुसा आएं. एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार सौरभ शुक्ला ने ट्वीट करते हुए लिखा है कि टिकरी बॉर्डर पर पुलिस ने 26 जनवरी की घटना के बाद मोटे मोटे बड़े बड़े कील ठोक दिए हैं, ताकि किसान दिल्ली में 26 जनवरी की तरह अपने ट्रैक्टर लेकर के न घुस आए.
हालांकि इस बात पर अभी तक दिल्ली पुलिस या यूपी पुलिस की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है, लेकिन किसान पहले दिन से ही दिल्ली आने की मांग कर रहे हैं. इस बीच सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि किसान नेता प्राइवेट इंक्वायरी कमीशन या एसीस "माफी मांगो मुआवज़ा दो कमीशन" को गठित करके सरकार पर दबाव बना सकते हैं.
सूत्रों की मानें तो किसान नेताओं में इस बात को लेकर के गहन चर्चा हो रही है कि एसीसी या प्राइवेट इंक्वायरी कमीशन गठित किया जाए. ज्ञात रहे कि पहले दिन से ही किसान संगठनों की ओर से यह बात कही जा रही है कि लाल किले में जो कुछ हुआ है उस पर उन्हें विश्वास नहीं है, और सरकारी इंक्वायरी पर उन्हें विश्वास नहीं है. जिसके बाद बीते दिनों एक यूट्यूब चैनल पर एक डिबेट के दौरान कारपोरेट जगत से जुड़े किसान नेता डॉक्टर MJ खान ने कहा था कि अगर किसान नेताओं को विश्वास सरकारी इंक्वायरी पर नहीं है तो वह अपनी इंक्वायरी गठित क्यों नहीं कर लेते?
जिसके बाद अब इस बात की संभावना बढ़ गई है कि किसान नेता प्राइवेट इंक्वायरी कमीशन गठित करके सरकार पर दबाव बना सकते हैं. सूत्रों की मानें तो इसी सिलसिले में किसान नेताओं की सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के पूर्व जजों समेत कई नौकरशाहों और किसान नेताओं से बातचीत भी हो रही है. अब देखना यह है कि इस पूरे मामले में आगे क्या कुछ होता है?
इधर खबर यह भी आ रही है कि कुछ किसान नेता सरकार के साथ संपर्क में भी हैं और सरकार और किसान नेताओं के बीच बीच का रास्ता निकालने का प्रयास हो रहा है. ज्ञात रहे कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि उनके और किसानों के बीच एक कॉल की दूरी है, लेकिन अब देखना यह है कि यह सब कुछ कैसे हल होता है? क्योंकि किसान पहले दिन से इस बात पर अडिग हैं कि तीनों कानून की वापसी से कुछ कम मंजूर नहीं है.
अब ऐसे में क्या सरकार तीनों काले कानून को पूरी तरह से वापस लेती है किसान नेताओं के अनुसार या फिर कोई बीच का रास्ता निकलता है. यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा और अगर बीच का रास्ता निकलता है तो जो लोग रास्ता सरकार के साथ निकालते हैं क्या किसान नेता या किसान संगठन उनका साथ देंगे यह भी एक सवाल बना हुआ है.
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