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देश में क़ानून का प्रभुत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों का स्थायित्व होः जमाअत इस्लामी हिन्द

नई दिल्ली: 13 अक्टूबर, जमाअत इस्लामी हिन्द की प्रतिनिधि सभा (मजलिस-ए-नुमाइंदगान) ने अपने पारित प्रस्ताव में सरकार और देशवासियों पर ज़ोर दिया है कि वे क़ानून के प्रभुत्व को विश्वसनीय बनाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करें।

By: Press Release
Let there be rule of law and stability of democratic values in the country: Jamaat Islami Hind

देश में क़ानून का प्रभुत्व और लोकतांत्रिक मूल्यों का स्थायित्व होः जमाअत इस्लामी हिन्द

 

नई दिल्ली: 13 अक्टूबर,  जमाअत इस्लामी हिन्द की प्रतिनिधि सभा (मजलिस-ए-नुमाइंदगान) ने अपने पारित प्रस्ताव में सरकार और देशवासियों पर ज़ोर दिया है कि वे क़ानून के प्रभुत्व को विश्वसनीय बनाने और लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करें। प्रतिनिधि सभा ने समाज में बढ़ती हुई नफ़रत और कुछ लोगों और समूहों की ओर से कमज़ोर वर्गों और मुसलमानों के खि़लाफ़ हो रहे सिलसिलेवार ज़ुल्मों और अत्याचार की घटनाओं पर अत्यंत चिंता प्रकट करते हुए कहा है कि ये हालात देश के लिए अत्यंत नुक़सानदायक हैं और पूरी दुनिया में देश की छवि के खराब होने का कारण बन रहे हैं। समाज में नफरत फैला कर कुछ राजनीतिक शक्तियां क्षणिक लाभ तो हासिल कर सकती हैं लेकिन इसके नकारात्मक प्रभाव देश व समाज पर पड़ेंगे। देशवासियों को इससे सावधान करने की ज़रूरत है।

 

 

जमाअत इस्लामी हिन्द की प्रतिनिधि सभा का मघ्यावधि सम्मेलन विगत 10 अक्टूबर को समाप्त हुआ। प्रतिनिधि सभा में 157 सदस्य हैं जिसमें 29 महिलाएं हैं। इस सम्मेलन ने देश की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सूरतहाल के अतिरिक्त देश के मुस्लिम समुदाय को चुनौतियों और महिलाओं की समस्याओं पर प्रस्ताव पारित किए।

 

 

किसानों की ओर से एक साल से जारी प्रदर्शन को लोकतांत्रिक और शान्तिपूर्ण क़रार देते हुए सम्मेलन ने मांग की है कि भारत सरकार किसानों के आंदोलन को बलपूर्वक कुचलने के बजाए उनकी मांगों के साथ गंभीर रवैया अपनाये।

 

 

महिलाओं से सम्बंधित प्रस्ताव में जमाअत ने महिलाओं और बालिकाओं पर हो रहे अत्याचारों का नोटिस लेते हुए कहा गया है कि देश में महिलाओं के साथ बलात्कार और अपमान की घटनाएं सामान्य होती जा रही हैं। अपराधी या तो क़ानून की गिरफ्त में नहीं आते या आते भी हैं तो उन्हें अतिशीघ्र यथोचित सज़ा नहीं मिलती। दूसरी ओर समाज में महिलाओं के अधिकारों से सम्बंधित संवेदनशीलता कमज़ोर पड़ती जा रही है। महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए समाज और सराकार दोनों को अपनी ज़िम्मेदारी अदा करनी चाहिए।

 

 

प्रतिनिधि सभा ने देश में बढ़ती बेरोज़गारी, गंभीर आर्थिक संकट, अनियंत्रित मूल्यवृद्धि पर चिंता व्यक्त की है और कुछ सरकारी संस्थाओं के निजीकरण पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि एअर इंडिया और रेलवे जैसे देश की बड़ी संस्थानों को निजी कम्पनियों के हवाले करने जैसे प्रयास से इस विचार को बल मिलता है कि मौजूदा सरकार आर्थिक नीतियों में राज कल्याणकारी कामों के बजाए पूंजीवादी शोषक रुझाानों को अपना रही है जो देश के लिए किसी तरह बेहतर नहीं है। निजीकरण के इन फैसलों से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि सरकार ऐसी बड़ी संस्थानों को चलाने की योग्यता नहीं रखती है।

 

 

विगत दिनों पारित किए गए कुछ अधिनियमों के सिलसिले में प्रतिनिधि सभा का एहसास है कि इन क़ानूनों की आड़ मे सरकार के राजनीतिक विरोधियों, अल्पसंख्यकों और खासतौर पर मुसलमानों को निशाना बनाना और संविधान में दी गयी उनकी आज़ादियों पर पाबंदी लगाना मक़सद है, सम्मेलन इस पर चिंता व्यक्त करती है।

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