कृषि कानूनों की तरह मोदी सरकार मुस्लिम विरोधी कानून भी वापस ले, नहीं तो शुरू होगा आंदोलन
नई दिल्ली: आल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष एस. एम. आसिफ ने केंद्र सरकार से मांग की है कि जिस तरह सरकार ने सदाशयता का परिचय देते हुए एक साल के बाद विवादित कृषि क़ानून वापस लेने की घोषणा की है, उसी तरह देश के अल्पसंख्यक खास कर मुस्लिम तबके के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार को विवादस्पद सीएए और एनआरसी क़ानून भी वापस लेने की घोषणा करनी चाहिए। उन्होंने एक बयान में यह भी कहा कि अगर इस बाबत केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की मांग पर गंभीरता से विचार नहीं किया तो देश में एक बार फिर शाहीन बाग़ जैसे आन्दोलनों को खड़ा होने का मौका मिल जाएगा।
आसिफ ने यह भी कहा कि पिछली बार तो एक दिल्ली के शाहीन बाग़ में इस तरह का आन्दोलन सीएए और एनआरसी जैसे क़ानून के खिलाफ शुरू हुआ था, जिसे रोक पाने में सरकार को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा था। अगर सरकार ये क़ानून वापस नहीं लेती तो दिल्ली के साथ ही देश के अनेक राज्यों में एक साथ कई शाहीन बाग़ खड़े हो जायेंगे। अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष आसिफ ने इस बाबत अभी कुछ दिन पूर्व उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में दिए गए एम.आई.एम (ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद ए मुस्लिमीन) के राष्ट्रीय अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था, कि अगर केंद्र की सरकार अल्पसंख्यकों को परेशानी में डालने वाले ऐसे क़ानून बनायेगी तो देश में एक नहीं कई शाहीन बाग़ खड़े हो जायेंगे। इसी सन्दर्भ में आल इण्डिया माइनॉरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष ने केंद्र सारकार से विवादित एनआरसी और सीएए क़ानून भी वापस लेने की मांग की है, ताकि देश में अमन-चैन भी कायम रहे और अल्पसंख्यकों का सरकार पर भरोसा भी बना रहे।
आल इंडिया माइनॉरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष एस. एम. आसिफ का इस बाबत यह भी मानना है कि सीएए और एनआरसी क़ानून के खिलाफ शाहीन बाग़ में हुए धरने- प्रदर्शन का किसान आन्दोलन के साथ गहरा रिश्ता है। उनका इस बाबत यह भी कहना है कि शाहीन बाग़ के आन्दोलन से प्रेरित होकर ही कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन करने की प्रेरणा किसानों को मिली थी। यही बात अभी कुछ दिन पहले ही जमीयत उलेमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी कही थी। आल इण्डिया माइनॉरिटीज फ्रंट के अध्यक्ष आसिफ का कहना है कि जब सरकार किसान आन्दोलन से जुड़े विवादित क़ानून वापस ले सकती है तब उसे शाहीन बाग़ आन्दोलन से जुड़े कानूनों को वापस लेने में भी कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जब किसानों के सम्मान का ख्याल रखते हुए विवादित कृषि क़ानून वापस ले सकते हैं और ऐसा करके उन्होंने वास्तव में किसान हितों का संरक्षण ही किया है। उनसे अल्पसंख्यकों को भी ऐसे ही संरक्षण की उम्मीद है। उन्होंने यह भी कहा कि जब किसानों का आंदोलन शुरू हुआ तो सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई। सीएए-एनआरसी को लेकर मुस्लिम समाज और सरकार की कोई बातचीत नहीं हुई। मुस्लिम समाज न तो इस मामले पर सरकार के पास गया और न ही सरकार समाज के आंदोलनकारियों से आकर मिली। इन परिस्थितियों में सरकार को सीएए और एनआरसी से जुड़े क़ानून वापस ले लेने चाहिए।
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