मुसलमानों ने रसूले-अकरम (सल्ल०) को सिर्फ़ एक वाइज़ की हैसियत से देखा, एक माहिर सियासी की हैसियत से नहीं
कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली
मक्का में काबा की तामीर के वक़्त हजरे-असवद (एक ख़ास काले पत्थर) को दीवार में लगाना एक ख़ूनी घटना बनने जा रही थी मगर नबी करीम (सल्ल०) की सियासी निगाह ने उसे शान्तिपूर्ण तरीक़े से हल कर दिया। नुबूवत के ऐलान से पहले हिलफ़ुल-फ़ुज़ूल नाम का समझौता एक सूझबूझवाला इन्सान ही कर सकता है, जिसके नतीजे में मक्का में फ़ौरी तौर पर अमन क़ायम हो गया। ईमानवालों पर आज़माइशों के दौर में हब्शा की तरफ़ हिजरत का हुक्म सियासी दूरन्देशी का ही नतीजा था, जिसने ईमानवालों को एक आसरा भी दिया और अज़ीम इन्सानी सरमाए की हिफ़ाज़त भी की। अगर हब्शा की हिजरत न होती तो कमज़ोरों पर ज़ुल्म के नतीजे में ईमानवाले बड़ी आज़माइश में पड़ सकते थे।
एक तरफ़ आपका दिल अपने जांनिसारों पर ज़ुल्म देख कर तकलीफ़ महसूस करता और दूसरी तरफ़ पाक रूहें किसी मुनासिब माहौल का इन्तिज़ार करतीं। हज़रत उमर (रज़ि०) के लिये इस्लाम क़बूल करने की दुआ से ये बात साफ़ हो जाती है कि समाज के टैलेंट पर आपकी कितनी गहरी नज़र थी, मदीना की हिजरत के लिये सफ़र के साथी और रास्ते का चुनना सिर्फ़ एक मोजज़ा और चमत्कार ही नहीं, सियासी समझ भी थी। हिजरत की रात अपने बिस्तर पर हज़रत अली (रज़ि०) को आराम करने का हुक्म सिर्फ़ अमानतों की वापसी तक महदूद नहीं थी, बल्कि दुश्मनों को इस शुब्हे में मशग़ूल रखना था कि बिस्तर पर मुहम्मद (सल्ल०) मौजूद हैं।
मक्का में क़ियाम के दौरान उकाज़ के मेलों में जाकर क़बीलों से मुलाक़ातें, ताइफ़ का ग़ैर-मामूली सफ़र बैअते-उक़बा के मरहलों को सियासत के सफ़हों में ही जगह मिलनी चाहिये। मदीना पहुँच कर वहाँ के ग़ैर-मुस्लिमों से मीसाक़े मदीना (मदीना सन्धि) हिन्दुस्तान जैसी बहु-संस्कृतिक समाज (Multi-cultural society) में आज के सियासी लीडर्स के लिये एक बहुत क़ीमती नमूना है। मदीना में पहुँचकर 'मुवाख़ात' (भाईचारे) का निज़ाम इन्सानी तारीख़ का अनमोल चैप्टर है जिसने चुटकियों में कई मसले हल कर दिये।
मदीने में अपनी क़ियामगाह का इन्तिख़ाब ऊँटनी पर छोड़ देना महज़ कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं था बल्कि अपनी ग़ैर-जानिबदारी का ऐलान था। आप किसी का नाम लेकर दूसरे साथियों का दिल नहीं तोड़ सकते थे। बद्र की जंग से लेकर फ़तह मक्का तक तमाम जंगी स्कीमें आपकी बेहतरीन सियासी निगाह का मुँह बोलता सुबूत हैं। सुलह-हुदैबिया (हुदैबिया की सन्धि) आप (सल्ल०) का एक ऐसा सियासी क़दम है जिसने फ़तह-मक्का का रास्ता आसान कर दिया। बद्र के क़ैदियों को आज़ाद करने से दुश्मनों में भी आपकी अख़लाक़ी साख क़ायम हुई।
बादशाहों को ख़त आपने एक मुस्लेह या समाज-सुधारक और वाइज़ या प्रीचर की हैसियत से नहीं बल्कि एक नबी और स्टेट के सरबराह की हैसियत से लिखे थे। एक प्रीचर को किसी से जंग करने की नौबत नहीं आती। जंग केवल उसी सूरत में पेश आती है जब आप किसी के इक़्तिदार को चैलेंज करते हैं और हुकूमत के निज़ाम को बदलने का टारगेट आपकी नज़रों के सामने रहता है, हुकूमत के सिस्टम को बदल डालने का टारगेट, मईशत व मुआशरत के टॉपिक्स (Economical & Social issues) नहीं हैं, बल्कि सियासत के टॉपिक्स (Political Issues) हैं।
रबीउल-अव्वल के इस महीने में मुक़र्रिरों और मस्जिदों के इमाम हज़रात से मेरी गुज़ारिश है कि वो ख़ास तौर पर आप (सल्ल०) की इस हैसियत को उजागर करें, ताकि भारत के मुसलमान ये अच्छी तरह समझ लें कि सियासत और सत्ता हासिल करने के लिये की जानेवाली जिद्दोजुहद न केवल भारत में उनके रौशन मुस्तक़बिल की ज़मानत है बल्कि ये रसूलुल्लाह (सल्ल०) की सुन्नत है और जब ये सुन्नत है तो इबादत भी है। अलबत्ता आप (सल्ल०) ने सियासत के भी कुछ उसूल और आदाब बताए हैं। आप (सल्ल०) ने लीडर को क़ौम का सेवक बताकर उसे ये पैग़ाम दिया है कि उसे ये पद इन्सानों की भलाई के लिये दिया गया है उनपर रौब जमाने के लिये नहीं।
आप (सल्ल०) ने हर तरह की अस्बियत और पक्षपात को अलग रखकर तमाम इन्सानों की कामयाबी का विज़न पेश किया और ये तालीम दी कि एक रहनुमा और लीडर को हर तरह के पक्षपात से पाक होना चाहिये। कथनी और करनी में बराबरी का नमूना पेश करके आप (सल्ल०) ने सियासत को तक़द्दुस और पाकीज़गी अता की। भारत के मुसलमानों के पिछड़ेपन की असल वजह यही है कि इन्होंने रसूले-अकरम (सल्ल०) को सिर्फ़ एक वाइज़ या प्रीचर की हैसियत से देखा, एक माहिर सियासी, एक माहिर प्रशासक, रूलर की हैसियत से नहीं देखा। हालाँकि ज़बान से दावा यही किया कि आप (सल्ल०) की सीरत और इस्लाम की तालीमात ज़िन्दगी के तमाम शोबों के लिये हैं।
व्याख्या: यह लेखक के निजी विचार हैं। लेख प्रकाशित हो चुकी है। कोई बदलाव नहीं किया गया है। वतन समाचार का इससे कोई लेना-देना नहीं है। वतन समाचार इसकी सच्चाई या किसी भी प्रकार की जानकारी के लिए जिम्मेदार नहीं है और न ही वतन समाचार किसी भी तरह से इसकी पुष्टि करता है।
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