राष्ट्रवाद और अखंड भारत जैसे जुमलों पर बल देने वाली केंद्रीय सरकार के लिए नागालैंड से अच्छी खबर नहीं आ रही है। एक तरफ सरकार भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने का दावा कर रही है तो दूसरी तरफ नागालैंड के सबसे सशस्त्र विद्रोही समूह नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल आफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। उन्होंने अलग ध्वज और संविधान की मांग की है। जिसके चलते शांति वार्ता में एक बार फिर अड़चनें आती दिखाई दे रही हैं।
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार "एनएससीएन-आईएम का कहना है कि बिना अलग झंडे और संविधान के भारत की केंद्र सरकार के साथ शांति समझौते का सम्मानजनक समाधान नहीं निकलेगा। ", "नागालैंड का सबसे सशस्त्र विद्रोही समूह एनएससीएन-आईएम (नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड- इसाक-मुइवा) ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एनएससीएन-आईएम ने अलग ध्वज और संविधान की मांग की है। जिसके चलते नागा शांति वार्ता में एक बार फिर अड़चनें आती दिखाई दे रही हैं।
एनएससीएन-आईएम का कहना है कि बिना अलग झंडे और संविधान के भारत की केंद्र सरकार के साथ शांति समझौते का सम्मानजनक समाधान नहीं निकलेगा। एनएससीएन-आईएम की एक संयुक्त परिषद की बैठक शुक्रवार को हुई, जिसमें नागा लोगों के ऐतिहासिक और राजनीतिक अधिकारों और भारत-नागा राजनीतिक वार्ता कैसे मुकाम पर पहुंचे, इस पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक नागालैंड में दीमापुर के पास हेब्रोन में केंद्रीय मुख्यालय में आयोजित की गई थी।
एनएससीएन-आईएम का ये कठोर रुख ऐसे समय में आया है जब नागालैंड के राज्यपाल और वार्ताकार आरएन रवि के बीच मतभेदों के कारण शांति वार्ता गतिरोध का सामना कर रही है। एनएससीएन-आईएम ने एक प्रेस रिलीज भी जारी की है। संगठन ने अपने बयान में कहा कि सभा ने सर्वसम्मित से इस प्रस्ताव को पारित किया है, जो एनएससीएन-आईएम के कथन को दोहराता है। रिलीज में यह भी कहा गया है कि केंद्र और एनएससीएन-आईएम को 3 अगस्त, 2015 को हस्ताक्षरित ऐतिहासिक फ्रेमवर्क समझौते के आधार पर ही अंतिम समझौते की तलाश करनी चाहिए।
विद्रोह समूह चाहता है कि नागा राष्ट्रीय झंडा और संविधान, भारत-नागा राजनैतिक समाधानों का हिस्सा जरूर बनें और सौदे को सम्मानजनक और स्वीकार्य के रूप में योग्य बनाएं। पिछले महीने एनएससीएन-आईएम ने दावा किया था कि केंद्र ने नागा लोगों की संप्रभुता को मान्यता दी थी। साल 2015 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें इस बात पर सहमति जताई गई थी कि नागा लोग सह-अस्तित्व में रहेंगे लेकिन भारत में विलय नहीं करेंगे।",
अब देखना यह होगा कि मोदी सरकार इस समस्या को कैसे हल करती है। क्योंकि यह समस्या अपने आप में बहुत बड़ी समस्या है। एक तरफ जहां राष्ट्रवाद और अखंड भारत जैसे जुमलों पर केंद्र सरकार बल दे रही है वहीं दूसरी तरफ जिस तरह से नागालैंड के लिए अलग ध्वज और अलग संविधान की बात चल रही है उस से बहर हाल समस्या का उत्पन्न होना प्रथम दृष्टया में सामने आ रहा है। ऐसे में केंद्र सरकार को इन मुद्दों को सावधानी के साथ और संयम बरतते हुए हल करने की जरूरत है। लेकिन देखना यह है कि केंद्र सरकार इस दिशा में क्या कदम उठाती है?
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