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नयी शिक्षा नीति पर पहली बार आया किसी मुस्लिम संगठन का बयान

जमाअत इस्लामी हिन्द के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड ने नई शिक्षा नीति पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया है। मीडिया को जारी विज्ञप्ति में बोर्ड के चेयरमैन नुसरत अली ने इसकी कुछ नीतियों की सराहना की है और कुछ पहलुओं की आलोचना। उन्होंने कहा किः नई शिक्षा नीति को संसद में चर्चा के लिए पेश किए बिना लागू किया गया है। इससे पहले सरकारों द्वारा पारित तमाम शिक्षा नीतियों पर संसद में विस्तृत चर्चा की गयी थी। इससे पता चलता है कि सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अपनाना नहीं चाहती। जमाअत इस्लामी हिन्द चाहती है कि इस पर संसद में चर्चा हो। उन्होंने कहा कि इसका स्वरूप अस्पष्ट है।

By: Press Release
फाइल फोटो
  • नई शिक्षा नीति सामाजिक असमानता को बढ़ाएगीः जमाअत इस्लामी हिन्द

नई दिल्ली। जमाअत इस्लामी हिन्द के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड ने नई शिक्षा नीति पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया है। मीडिया को जारी विज्ञप्ति में बोर्ड के चेयरमैन नुसरत अली ने इसकी कुछ नीतियों की सराहना की है और कुछ पहलुओं की आलोचना। उन्होंने कहा किः नई शिक्षा नीति को संसद में चर्चा के लिए पेश किए बिना लागू किया गया है। इससे पहले सरकारों द्वारा पारित तमाम शिक्षा नीतियों पर संसद में विस्तृत चर्चा की गयी थी। इससे पता चलता है कि सरकार लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को अपनाना नहीं चाहती। जमाअत इस्लामी हिन्द चाहती है कि इस पर संसद में चर्चा हो। उन्होंने कहा कि इसका स्वरूप अस्पष्ट है।

 

यह सामाजिक परिवर्तन पर केंद्रित होने के बजाए अधिक भौतिकवादी दिखाई देता  है। जमाअत इस्लामी हिन्द का मानना है कि हमारे देश को एक ऐसी शिक्षा नीति की आवश्यकता है जो समाजिक न्याय, लोकतांत्रिक मूल्यों, समानता और विश्वासों की बेहतर समझ को बढ़ावा देकर सामाजिक परिवर्तन को लक्षित करती हो। नुसरत अली ने सवाल किया कि इस शिक्षा नीति में समग्र और एकिकृत दृष्किोण शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर सका कि भारतीय संदर्भ में समग्र दुष्टिकोण की परिभाषा किया होनी चाहिए। जमाअत इस्लामी हिन्द दृढ़ता से इस बात को महसूस करती है कि शिक्षा में समग्र दृष्टिकोण अपनाकर समाज में प्रगति, सुख और शांति प्राप्त की जा सकती है। इसे प्राथमिक विद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रमों को गुणों और मूल्यों के पर आधार तैयार करके प्राप्त किया जा सकता है।

 

इन मूल्यों को सभी धर्मों में पाये जाने वाले सार्वभौमिक मूल्यों से हासिल किया जा सकता है तथा यह हमारे संविधान में भी मौजूद है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा के वर्गीकृत संस्थानों की प्रणाली, उच्च रेटेड विश्वविद्यालयों और निजी विश्वविद्यालयों की अनुमति हमारी शिक्षा प्रणाली को वस्तु मात्र बना देगा और केवल अमीर छात्र ही इसके लाभर्थी होंगे। यह समाजिक विषमताओं को जन्म देगा और समाजिक न्याय जो हमारे संविधान की आत्मा है, उसको नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि अपनी मातृभाषा में प्रथमिक शिक्षा एक अच्छी नीति है, परन्तु इसका  कार्यान्वयन कठिन है।

 

प्रारंभिक शिक्षा के लिए अभिाभावकों और माताओं को भी प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है, अन्यथा यह मध्यमवर्ग के लिए कल्पना बन कर रह जाएगा एवं उनके शोषण के लिए बड़ा बाज़ार उपलब्ध कराएगा और शैक्षिक संसथानों का व्यवसायीकरण होगा। कौशल विकास कार्यक्रम एक बहुप्रतिक्षित आइडिया है, लेकिन निजी संस्थानों को दिए जाने पर इसे खराब तरीके से लागू किया जाएगा। नई निती में सामान्य नामांकन का प्रतिशत 26 से बढ़ा कर 50 तक की वृद्धि की परिकल्पना की गयी है। यह महत्वाकांक्षी उद्देश्य है। इसे प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की जानी चाहिए। सरकार को अपने सकल घरेलू उत्पाद का  8 फीसद शिक्षा के लिए खर्च करने की योजना बनाना चाहिए। नई शिक्षा निती में आठ भाषओं में ‘‘ई-कन्टेंट’’ विकसिक करने की बात कही गयी है, लेकिन उर्दू को शामिल नहीं किया गया है। अगर नई शिक्षा निती का उद्देश्य वंचित समुदायों की समग्र स्थिति में सुधार करना है तो उसे उर्दू में भी ‘‘ई-कन्टेंट’’ विकसित करना चाहिए। नुसरत अली ने कहा कि प्री-प्राइमरी से 18 तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा को शामिल करना एक स्वागत योग्य क़दम है। शिक्षा  संबंधित राज्य का विषय है, इस नाते विभिन्न शिक्षा निकायों के एक केद्रीय निकाय में विलय होने से यह अत्यधिक केंद्रीकृत हो जाएगा जो हमारे संघीय प्रणाली पर प्रहार है।

जमाअत इस्लामी हिन्द मांग करती है कि सरकार को चाहिए कि वह विशेषज्ञों द्वारा बनायी गयी नई शिक्षा निती पर आलोचनात्मक विचार रखते हुए एन ई पी - 2020  की कमिओं और अवगुणों को दूर करे और संसद से मंज़ूर कराए ।

 

 

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