भारत में बच्चों के मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता: मर्कज़ी तालीमी बोर्ड, जमाअत इस्लामी हिन्द
नई दिल्ली, 14 नवंबर: एक राष्ट्र के रूप में, हम बाल दिवस 14 नवंबर, 1948 से मना रहे हैं। मर्कज़ी तालीमी बोर्ड, जमाअत इस्लामी हिन्द इस अवसर पर अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता है। तालीमी बोर्ड के चेयरमैन शेख मुज्तबा फ़ारूक़ ने मीडिया को जारी एक बयान में कहा कि ऐसे समय में जब भारत स्वतंत्रता के 75 वर्ष से मना रहा है, हमें एक शुभचिंतक नागरिकों के रूप में बच्चों की वर्तमान स्थितियों पर विचार करने की आवश्यकता है जो देश के सबसे कीमती भविष्य हैं। ये बच्चे देश की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा हैं। हमारा मानना और इस बात की आवश्यकता है कि इस दिवस को सही मायने में सार्थक बनाने के लिए राज्य और गैर-राज्य निर्वाहक इन समूहों पर तत्काल ध्यान दें।
शेख मुज्तबा फ़ारूक़ ने कहा कि सभी हितधारकों को बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर काम करने की जरूरत है। कुपोषण, वृद्धिदोष, शिशु मृत्यु दर की चिंताओं को दूर किया जाना चाहिए। यद्यपि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 ने प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (ECCE) को 2030 तक सार्वभौमिक बनाने की आवश्यकता पर बार-बार जोर दिया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि बच्चों के एक बड़े प्रतिशत की पहुँच आंगनवाड़ी सेवाओं के साथ-साथ निजी और सार्वजनिक प्री-स्कूलों तक नहीं है।
उनहोंने कहा कि बच्चे देश के भविष्य के निर्माता हैं। इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों को बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण बजट आवंटित करने की आवश्यकता है। मर्कज़ी तालीमी बोर्ड का मानना है कि कुल केंद्रीय बजट के 2.35% का वर्तमान बजट (वित्त वर्ष 2022-23) हमारे देश के बच्चों की समग्र कल्याण जैसे - पोषण, स्वास्थ्य और शैक्षिक लक्ष्यों को को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। साथ ही, संघ और राज्य के बजट को ईसीसीई पर स्कैंडिनेवियाई देशों के बजट के मानकों के अनुरूप होने का प्रयास करना चाहिए। तालीमी बोर्ड भारत में चाइल्डकेअर संस्थानों की स्थिति, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों, सरकारी स्कूलों और प्री-मैट्रिक छात्रावासों के बच्चों की सुरक्षा और आदि के बारे में भी गंभीर चिंता व्यक्त करता है।
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