माननीय राज्यपाल महोदय केरल!
उसूलों की क़ुर्बानी ज़रूरी
आशा है कि आप पूरी तरह स्वस्थ होंगे और आप ईश्वर की कृपा से हमारी सरकार (मोदी 2।0) के जरिए दी गई सुविधाओं से पूरी तरह लाभान्वित हो रहे होंगे जो अस्थायी है। साथ ही आप अंबेडकर के संविधान को कुचलने और अपने हेड क्वार्टर पर 52 सालों तक तिरंगा ना फहराने और मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चलाने वालों की इस आशा और उम्मीद के साथ पूरी ताकत से समर्थन कर रहे होंगे क्योंकि केरला से अगर रायसिना हिल की पहाड़ियां बहुत करीब नहीं तो बहुत दूर भी नहीं है। इस दूरी को नजदीकी में बदलने के लिए जरूरी है कि उन लोगों को हिमायत दी जाए जिन को आजादी के नारों से नफरत है। यह नफरत सही भी है क्योंकि वह स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के मुखबिर थे। साथ ही यह भी जरूरी है कि उन जिन्ना प्रेमियों का साथ दिया जाए, जिन्होंने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चलाई और सत्ता का सुख भोगा। यह तभी मुमकिन है जब आप पूरी तरह अपने उन उसूलों को क़ुर्बान कर दें जो अब तक आपकी पहचान रहे हैं और जिन की वजह से आप अब तक दूसरों से अलग और मुमताज़ थे।
आप की संजीदगी पर सवाल खड़े हुए हैं
इस समय हमारे भारत के जो हालात हैं उस संदर्भ में आपके मत ने मुझे यह पत्र लिखने के लिए मजबूर किया। मुझे आप जैसे नेक शरीफ मेहमान नवाज़ से यही आशा है कि जब यह लेख आप तक पहुंचेगा तो आप जरूर इस पर अपनी आदत के अनुसार संजीदगी दिखाएंगे, क्योंकि आपकी पहचान एक लिखें पड़े व्यक्ति की है। इसलिए मैं अपना संवैधानिक कर्तव्य समझते हुए आपके समक्ष कुछ बातें रखने की जुर्रत कर रहा हूं, इस आशा के साथ कि मुझे बहर हाल आप जैसी संजीदा और बावक़ार शख्सियत से जवाब की पूरी उम्मीद है, हालांकि आप की संजीदगी पर संविधान पर हमला करने वालों की हिमायत के बाद सवाल उठे हैं और यह जरूरी भी है। आप इस बात से अच्छी तरह अवगत हैं कि मेरा किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है, जैसा कि आपके सामने यह चीज पहले से अस्पष्ट है और यह बात भी आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं अक्सर आपका प्रशंसक रहा हूं।
आप इंसानों की तश्बीह कुत्ते के बच्चे से देने वालों के साथ क्यों गए?
महोदय! जिस वक्त पूर्व यशस्वी प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने हिंदुओं के लिए WE और मुसलमानों के लिए THEY का नारा दिया था, उस वक्त आपने उसका नोटिस लिया और आपने उनको एक खुला पत्र लिखा जो बाद में बहुत से अखबारों की जीनत बना, जिस पर आप के अनुसार अटल जी ने आप की प्रशंसा की और कहा कि आरिफ मेरे साथ आ जाओ मैं वही करना चाहता हूं जो तुम सोचते हो, लेकिन अटल जी जैसे दिग्गज यशस्वी नेता के नेतृत्व में आप जैसे पढ़े-लिखे संजीदा व्यक्ति ने काम करना क्यों नहीं मुनासिब समझा मुझे नहीं मालूम, लेकिन आप उन लोगों के साथ क्यों चले गए जिन्होंने इंसानों की तश्बीह कुत्ते के बच्चे से दी इस के जवाब का भी महोदय हम मुन्तज़िर हैं।
राजीव सरकार में आप ने ज़मीर की आवाज़ सुनी
महोदय जब मुल्लाइयत के मकड़जाल में पूरी तरह से घिर चुकी राजीव गांधी सरकार ने कुरान शरीफ और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत पार्लियामेंट में बिल पास किया उस वक्त आपने जमीर की आवाज पर राजीव गांधी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और आप ही के अनुसार अपने नरसिम्हा राव समेत कई मंत्रियों की लाख कोशिशों के बावजूद अपने फैसले पर पुनर्विचार करना इसलिए मुनासिब नहीं समझा क्योंकि इस बिल के खिलाफ आपने पार्लियामेंट का एक लंबा समय बोलने के लिए ले लिया था, लेकिन यहां भी आपने जमीर की आवाज सुनी और बिल के हक में वोट किया क्योंकि आप पार्टी व्हिप से बंधे थे।
हिंदुत्व के जरिए 1923 में ही टू नेशन थ्योरी की बुनियाद डाली गई
महोदय जिस इंसान का रिकॉर्ड इतना शानदार हो और जिसने जमीर की आवाज पर सत्ता को ठोकर मार कर या कहते हुए खुद को सत्ता से अलग कर लिया हो कि वह अब पढ़ने लिखने और रिसर्च में वक्त लगाना चाहता है, अगर वह उन लोगों के साथ खड़ा हो जो हिटलर को अपना आइडियल समझते हैं, तिरंगे को अशुभ मानते हैं साथ ही युसूफ मेहर अली के ज़रिये अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा देने के बाद भी अंग्रेजों के साथ खड़े रहे (कुर्बान जाइए गांधीजी की हस्ती पर जिन्हों ने अंग्रेजों के वफादारों को भी देश देशद्रोही नहीं कहा) अगर वह उन लोगों के साथ खड़ा हो जिन्होंने अपने लेख हिंदुत्व के जरिए 1923 में ही टू नेशन थ्योरी की बुनियाद डाली थी तो इस पर तकलीफ भी होगा और अफसोस भी, कि आपने कैसे इनके समक्ष घुटने टेक दिए।
चोटी वाले को चुनना क्या गुनाह था?
महोदय यह तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब आप यह कहते हैं कि मौलाना आजाद ने विभाजन के संगीन नतीजों से आगाह किया था लेकिन यह नहीं बताते कि जिन्ना ने भी 1945 में कहा था कि जो मुसलमान भारत में रह जाएंगे उनको हमेशा अपने भारतीय होने का सबूत देना पड़ेगा। महोदय हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि पिक्चर के दोनों एंगेल गलत साबित हों, लेकिन दुख है कि आप दोनों को सच साबित करने पर आमादा है। हम फख्र से कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने एक टोपी वाले को छोड़कर एक चोटी वाले को चुना था, लेकिन तुम भी तो बताओ कि क्या हमारा चोटी वाले को चुनना गुनाह था? कि हमसे आज हमारी नागरिकता और देशभक्ति का प्रमाण मांगा जा रहा है। क्या वीर अब्दुल हमीद की कुर्बानी खान अब्दुल गफ्फार खान के कारनामे और जनरल शाहनवाज से लेकर मौलाना आजाद और डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसे अनगिनत लाल व गौहर हमारी देशभक्ति का प्रमाण नहीं है।
जय श्री राम कह कर हे राम कहने वाले को मारने वालों के बार में भी तो बोलिये
महोदय हम तो कहते हैं कि हिंदू और मुसलमान दो अलग मजहब पर अमल करते हुए भी "लकुम दीनकुम वालियादीन" के अनुसार एक देश में रह सकते हैं, लेकिन तुम भी तो बताओ कि हिंदू और मुसलमान दोनों को दो अलग क़ौम बताने और अलग अलग रहने का प्रवचन 1923 में देने वालों के बारे में आपकी क्या राय है? हम तो कहते हैं कि जिन्ना भारत का दुश्मन था, लेकिन तुम भी तो बताओ कि गोडसे को देशभक्त कैसे कहा जाये? हम तो कहते हैं 1947 में भारत का सीना चीरने वाले टुकड़े-टुकड़े गैंग के सदस्य थे लेकिन तुम भी तो बताओ कि 1923 में हिंदुत्व के जरिए टू नेशन थ्योरी की बुनियाद रखने वालों को टुकड़े-टुकड़े गैंग का अगुआ क्यों ना कहा जाए? हम तो कहते हैं कि अल्लाह हू अकबर का नारा देकर इंसानों की जान लेने वाले आतंकवादी हैं, लेकिन तुम भी तो बताओ कि जय श्री राम कहकर हे राम कहने वाले को गोलियों से भून देने वाले देशभक्त कैसे? हम तो कहते हैं कि इस्लाम के नाम पर दाइश बनाकर इंसानों की जान लेने वाले आतंकवादी हैं, लेकिन तुम भी तो बताओ भगवान राम के नाम पर अखलाक से लेकर जुनैद और तबरेज का कत्ल करने वाले राम भक्त कैसे? हम तो कहते हैं कि हमारे धर्म को अलकायदा जैसे उन तमाम संगठनों ने हाईजेक कर रखा है जो इस्लाम के नाम पर इंसानों के खून से होली खेलते हैं, लेकिन तुम भी तो बताओ राम भक्ति का चोला ओढ़कर जय श्री राम का नारा देकर धार्मिक उन्माद फैलाने वाले कौन लोग हैं जिन्होंने सनातन धर्म को हाईजेक कर रखा है, क्योंकि हिंदू तो कोई धर्म ही नहीं है फिर हिंदुत्व वे ऑफ कल्चर कैसे? हम तो कहते हैं कि मलाला पर हमला करने वाले आतंकवादी थे, लेकिन तुम भी तो बताओ कि Aishe घोष पर हमला करने वाले देशभक्त कैसे? हम तो कहते हैं कि अफगानिस्तान में गौतम बोध की प्रतिमा पर हमला करने वाले आतंकवादी थे, लेकिन तुम भी तो बताओ कि सुप्रीम कोर्ट से लेकर NIC और पार्लियामेंट की यक़ीन दहानियों के बाद भी बाबरी मस्जिद शहीद करने वालों को किस श्रेणी में रखा जाए?
हम तो कहते हैं कि आर्मी स्कूल पर हमला करने वाले आतंकवादी थे, लेकिन तुम भी तो बताओ कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया और जवाहरलाल नेहरू university पर हमला करने वाले देशभक्त कैसे? हम तो यह भी कहते हैं कि आरिफ मोहम्मद खान पर जामिया नगर में लाइट काटकर मुशीरुल हक के जनाज़े के दौरान रॉड से हमला करने वाले आतंकवादी थे, लेकिन तुम भी तो बताओ कि दिन के उजाले में अहसान जाफरी को जिंदा जला देने वाले आतंकवादी क्यों नहीं? और अगर शाहीन बाग़ में बैठे लोगों का कनेक्शन पाकिस्तान से है तो फिर रामलीला मैदान में बैठे लोगों का कनेक्शन किस देश से था इस पर खामोशी क्यों?
महोदय हम तो कहते हैं कि पाकिस्तान का बन्ना भी गलत और बनाने वाले भी गलत, लेकिन तुम भी तो बताओ कि भारत को दूसरा पकिस्तान बनाने वाले देशभक्त कैसे? हम तो कहते हैं कि अंग्रेजो के खिलाफ जिहाद का फतवा देने वाले सच्चे देशभक्त थे, लेकिन तुम भी तो बताओ कि अंग्रेजों से माफी मांगने वाले देशभक्त कैसे? उनके बारे में तुम्हारी क्या राय है जो शहीद भगत सिंह के केस में भगत सिंह के वकील के तौर पर पेश हुए?
महोदय बात निकली है तो बहुत दूर तलक जाएगी! मुसलमानों का यही कुसूर है ना कि उन्होंने गांधीजी पटेल पंडित नेहरू आज़ाद और अंबेडकर के वादों और आश्वासन पर विश्वास किया था और अगर ऐसा करना पाप है और था तो यह पाप हम एक बार नहीं बल्कि 1000 बार करेंगे क्योंकि हमने पटेल पर विश्वास करके आरक्षण छोड़ा था और गांधी पर विश्वास करके भारत को चुना था और अंबेडकर के संविधान में आस्था प्रकट की थी।
अंबेडकर उन लोगों को सख्त नापसंद हैं जो राजनितिक हथियार के रूप में बलात्कार को...
महोदय इस वक्त सच में देश को पाकिस्तान बनाने की साजिश हो रही है और मुझे ऐसा लग रहा है कि आप जानकर इसमें मदद कर रहे हैं, क्योंकि ना समझी कि आपसे आशा ही नहीं की जा सकती है। नागरिकता संशोधन अधिनियम पर आपका मत संविधान पर तमाचा है और उन लोगों (हुसैन शहीद सहरवर्दी तत्कालीन प्रधानमंत्री बंगाल 1946) की रूह को बेचैन करने की कोशिश है जिन्होंने डॉक्टर अंबेडकर को राज्यसभा भेजा था, वरना तो आप जानते ही हैं कि यह कह दिया गया था कि अंबेडकर के लिए पार्लियामेंट के दरवाजे ही नहीं खिड़कियां और रोशनदान भी बंद कर दिए गए हैं और अगर यह गलत है तो फिर अंबेडकर पहली बार 1952 में लोकसभा का चुनाव हारे और दूसरे नंबर पर गए और दूसरी बार 1954 में लोकसभा का बाई इलेक्शन लाडे और तीसरे नंबर पर गए और 1957 का जनरल इलेक्शन आता इससे पहले वह इस दुनिया को छोड़ कर चले गए, शायद इसीलिए अंबेडकर के संविधान को कुचलकर अंबेडकर वादियों को अछूत बनाने की फिर से कोशिश करने वालों के आप मददगार बन रहे हैं, क्योंकि अंबेडकर उन लोगों को सख्त नापसंद हैं जो राजनितिक हथियार के रूप में बलात्कार को इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं अफ़सोस आप उनके साथ खड़े हैं।
महोदय मुसलमानों ने साइमन कमीशन में अंबेडकर का साथ दिया था, वरना तो लखनऊ से लेकर लाहौर तक साइमन गो बैक का नारा लग रहा था और यह नारा लगाने वाले कौन थे आप अच्छी तरह जानते हैं, इनका मकसद स्पष्ट था कि दलितों को शूद्र बने रहने दिया जाए, सावित्री बाई फूले को मुसलमानों ने गले लगाया, बाबा साहब को इफ्तार के लिए आमंत्रित किया और अंबेडकर भक्तों से कितने परेशान थे महोदय आप तो जानते हैं कि वह यह कहने के लिए मजबूर हो गए कि हिंदू धर्म में मेरा पैदा होना मजबूरी थी लेकिन हिंदू धर्म में ना मरना यह मेरे अख्तियार में है और उन्होंने हिंदुत्व को अभिशाप तक कह डाला।
महोदय आप कहते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम संविधान पर हमला नहीं मज़लूमों के आंसू पोछने की कोशिश है, इसके किस क्लाज़ प्रताड़ित शब्द का प्रयोग हुआ है कुछ बताने की कृपा करेंगे, मुझे तो दुख भी होता है और अफ़सोस भी कि आप इतने शिक्षित होने के बावजूद इसे समझना इसलिए नहीं चाहते क्योंकि रायसेन हिल की वादियों में आप महवे खाब हैं और ईश्वर की कृपा रहे कि यह ख़ाहिश और खाब भी शर्मिंदा ये ताबीर हो जाए, लेकिन जरा यह तो बताए कि आखिर नागरिकता संशोधन अधिनियम लाने की जरूरत क्या थी? क्या इससे पहले नागरिकता देने का सरकार के पास अधिकार नहीं था और अगर नहीं तो फिर 1965 की जंग में भारत के एक लड़ाकू जहाज 15 टैंकों और 12 गाड़ियों को तबाह करने वाले लेफ्टिनेंट कर्नल अरशद सामी के बेटे अदनान सामी को नागरिकता कैसे दी गई? अब तो पद्मश्री पाने के लिए भी पहले पाकिस्तानी नागरिक होना जरूरी है। इटली से लेकर पूरी दुनिया में बसने वाले हर धर्म के लोगों को भारत ने किस अधिनियम के तहत नागरिकता दी? मतलब साफ है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 पर्दे के पीछे कोई साजिश है!
क्या भारत में 2019 से पहले धर्म के आधार पर कोई कानून था और अगर धर्म की बुनियाद पर आरक्षण नहीं तो फिर नागरिकता कैसे? आप ही बताएं नागरिकता संशोधन अधिनियम में धर्म का तड़का लगाने की जरूरत क्या थी? हम डंके की चोट पर यह कहते हैं कि कश्मीर हमारा मामला है तो फिर पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान को हम अपने खिलाफ बोलने का मौक़ा क्यों दे रहे हैं? क्या यह कोरा झूठ नहीं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी घटी है? क्योंकि इंडिया टुडे से लेकर BBC की रिपोर्ट और जनगणना के आंकड़े कुछ और ही दर्शाते हैं और वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी बढ़ी है और आप तो जानते हैं यह तब है जब एक बड़ी तादाद हिंदुओं की भारत पहले ही आ चुकी है।
जब हम बांग्लादेश पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों से हमदर्दी की बात करते हैं तो इसका मतलब साफ है कि हम उस औरंगजेब के अखंड भारत की बात कर रहे हैं जिसे हमारे भारत में विलेन बनाकर हिंदुओं के कातिल के तौर पर पेश किया गया है। मुझे लगता है कि हमें डॉक्टर बी एन पांडे और राम पुनियानी जी के औरंगजेब के बारे में ख्यालात को पढ़ना चाहिए और उस पुस्तक को भी पढ़ना चाहिए जिसका शीर्षक है "हिंदू मंदिर और औरंगजेब के फ़रामीन"। तारिख के उन पन्नों को भी दुनिया को बताना चाहिए जिसमें लिखा है कि औरंगजेब ने चीन के साथ जंग करके कैलाश मानसरोवर की यात्रा हिंदू भाइयों के लिए शुरू कराई थी। मैं बिल्कुल नहीं कहता की वह फरिश्ता थे, लेकिन महोदय ऐसा नहीं है कि:
तुम्हें ले दे के सारी दास्ताँ में बस याद है इतना कि
औरंगज़ेब हिन्दू कुश था जालिम था सितमगर था
जब बात बंगलादेशी घुसपैठिया की होती है तो उन पर भी होनी चाहिए जिन्होंने उसे बनवाया और जिन्होंने बनवाने वालों को मां दुर्गा का अवतार बताया और अगर हम सीना ठोक कर यह कहते हैं कि पाकिस्तान के टुकड़े हम ने किए तो उन लोगों की इज्जत की हिफाज़त करना हमारी ज़िम्मेदारी हैं जिन की खातिर हमने पाकिस्तान को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया। अगर सच में हमें बांग्लादेशी घुसपैठिए से परेशानी थी और है तो फिर क्यों नहीं डॉ अब्दुल जलील फरीदी के फार्मूले पर अमल करते हुए बांग्लादेश को भारत के साथ मिला लिया गया?
जब हम अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय की बात करते हैं तो इसका मतलब साफ है कि पाकिस्तान में शियों अहमदियों काद्यानियों और बलूचियों पर जुल्म के जो क़िस्से अब तक हम दुनिया को सुनाया करते थे वह कोरे झूठ थे और खुदा का शुक्र है कि हमने वह सरजमीन तो देखी ही नहीं, लेकिन अटल जी की उस सरजमीन के बारे में प्रतिक्रिया सुनते चलिए। उन्हों ने अपने लाहौर दौरे के दौरान 11 वीं सदी के मशहूर शायर मसूद बिन साद बिन सलमान को याद करते हुए कहा था:
लाहौर की हसरत में मेरी आत्मा उमड़ी पड़ती है
ओ खुदा मुझे इस की कितनी हसरत है
महोदय हालांकि मुझे इसकी कोई हसरत नहीं।
महोदय आप कहते हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम गांधी जी और पंडित नेहरू के खाबों की तकमील हैं तो नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 से पहले जिन लोगों को नागरिकता दी गई क्या वह अंग्रेजों से माफी मांगने वालों के खाबों की तकमील थी? क्यों जान बूझ कर स्वामी विवेकानंद जी के सोच पर हमला किया गया?
गांधी जी ने तो यहां तक कहा था कि देश का विभाजन मेरी लाश पर होगा तो क्यों न आज ही पाकिस्तान पर हमला करके उस को भारत के साथ मिला लिया जाए। अगर सच में मज़लूमों से हमदर्दी है तो फिर स्वामी विवेकानंद जी की सोच पर हमला क्यों जिन्होंने शिकागो कॉन्फ्रेंस में स्पष्ट शब्दों में कहा था कि मैं ऐसे देश से आया हूं जिस ने सभी धर्मों के प्रताड़ित लोगों को शरण दिया है। इससे साफ है कि दाल में कुछ काला नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है।
आखिर बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ही अल्पसंख्यकों से हमदर्दी क्यों
महोदय आखिर बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ही अल्पसंख्यकों से हमदर्दी क्यों? श्रीलंका भूटान नेपाल चीन तिब्बत और म्यानमार में बसने वाली अल्पसंख्यकों से हमदर्दी क्यों नहीं? महोदय प्रताड़ना के लिए 2014 ही की डेडलाइन क्यों? जिन पर 2014 के बाद जुल्म होगा क्या उनको राम भरोसे छोड़ दिया जाएगा? आप तो माशा अल्लाह लॉ के स्टूडेंट हैं। क्या यह कानून अपने आप में विरोधाभासी नहीं है, इसलिए मेरी आपसे विनती है कि आप खुले मन से विचार फरमाएं। मुझे यह बताएं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम से अगर किसी भी देश भक्त के साथ अन्याय हुआ तो क्या आप भी उस की आह का शिकार नहीं होंगे, जिस दिन ईश्वर अपनी कोर्ट में लोगों से सवाल करेगा आज किसकी बादशाहत हैं? तो सच में लोगों का जवाब होगा एक अल्लाह की जो क़ह्हार है। सोचिये अगर किसी व्यक्ति की आह के शिकार पर क़ह्हार का कहर हुआ तो उसका क्या हाल होगा? जुल्म जुल्म है और यह सिर्फ अन्धकार की ओर ले जाता हैं।
आप तो नेक इंसान हैं, शरीफ भी हैं, मेहमान नवाज भी हैं। आप हसब और नसब वाले हैं "लकुम दीनकुम वलियादीन" के फलसफे को आप समझते भी हैं। क्या हमारे गृह मंत्री ने नहीं कहा कि पहले कैब आएगा फिर एनआरसी आएगा घुसपैठियों (मुसलमानों) को चुन चुन कर निकाला जाएगा। आप ही बताएं कितने लोगों के पास अपने माता पिता का जन्म प्रमाण पत्र होगा? यहां तो लोगों के पास अपना ही जन्म प्रमाण पत्र नहीं है। हमारे देश में विभिन्न क्षेत्र ऐसे हैं जहां सैलाब आता है। लोगों का खुद को बचाना मुश्किल होता है लोग खुद को नहीं बचा पाते तो कागज़ कैसे बचाएंगे? अब तो पोहा खाने वाले भी बांग्लादेशी बता दिए गए हैं।
महोदय अगर एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई तो फिर राष्ट्रपति के अभिभाषण में क्या पाकिस्तानी कैबिनेट
प्रधानमंत्री कहते हैं एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई। राष्ट्रपति के अभिभाषण में एनआरसी का उल्लेख होता है। गृहमंत्री NRC पर हाथ थपथपाते हुए नजर आते हैं। महोदय अगर एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई तो फिर राष्ट्रपति के अभिभाषण में क्या पाकिस्तानी कैबिनेट की मंजूरी से एनआरसी को शामिल किया गया था? महोदय मुझे नहीं मालूम आप समझना नहीं चाहते या रायसेना हिल के सफर के लिए अनजान बने रहना चाहते हैं, लेकिन अगर आप उन लोगों के साथ रहना चाहते हैं जिन्होंने अंबेडकर को माथेफेरो (कट्टर) और बौद्धों को राष्ट्र द्रोही कहा तो यह आपका फैसला है, लेकिन हम उनके साथ खड़े हैं जिन्होंने भारत को सेक्युलर संविधान दिया।
हम स्वामी विवेकानंद को मानने वाले लोग हैं जिन्होंने एकता में अनेकता का फलसफा दिया। हम अटल जी की उस सोच से पूरी तरह सहमत हैं कि अगर भारत सेक्युलर नहीं है तो फिर भारत बिल्कुल भारत नहीं है और हम आनंद रामायण की उस कथा पर पूरी तरह विश्वास करने वाले लोग हैं जिसमें कुत्ते ने लंका फतेह होने, राम राज्य की स्थापना होने और राम जी के अयोध्या लौटने के बाद उन से शिकायत की थी कि मुझे एक पुजारी ने बिना किसी वजह के मारा है और जब राम जी ने इंक्वायरी में कुत्ते को निर्दोष पाया और कुत्ते ने पुजारी के लिए सजा के तौर पर पुजारी को महंत का पद देने की बात कही तो राम जी के आसपास लोगों ने कुत्ते से पूछा कि भाई तुम सजा दिलाने आए हो या प्रमोशन कराने? कुत्ते ने जवाब दिया कि आप को यह पदोन्नति लग सकता है लेकिन यह सज़ा है।
पिछले जन्म में मैं भी इनलाइटेन सोल था लेकिन जब आदमी शाह बनता है तो बेलगाम हो जाता है मैं भी शाह था तो मुझ से ऐसी गलती हुयी कि यह जन्म मेरा कुत्तों वाला हुआ है। तो मैं चाहता हूं कि अगले जन्म में इनका (महंत/शाह) का भी हाल कुत्तों वाला हो। हालांकि हम बरज़ख़ और आख़िरत पर विश्वास करने वाले लोग हैं।
महोदय भारत को दूसरा पाकिस्तान होने से बचाइए आप कहते हैं कि यह सब शाहबानो के एक्शन के बाद का रिएक्शन है तो आप ही बताइए बाबरी मस्जिद की शहादत उस के बाद के फसादात फिर 1993 2002 के गुजरात दंगे, मुजफ्फरनगर 2012 के दंगे, सुबोध सिंह की हत्तिया रोहित वेमुला की खुदकुशी कितने एक्शन और रिएक्शन?
महोदय गांधी जी का क़त्ल किस एक्शन का रिएक्शन था? उस वक्त कौन सा शाहबानो हुआ और उस से पहले मेरठ मलियाना हाशिमपुरा और ना जाने कितने एक्शन और रीएक्शन? कुछ तो बोलिए आप जमीर की आवाज पर बोलते हैं। ताकि भविष्य का इतिहासकार आरिफ मोहम्मद खान के साथ इंसाफ कर सके और वह यह ना लिखे कि आखिरी वक़्त में उन्होंने उन लोगों का दामन थाम लिया था जो माफी मांग कर भी वीर बन गए थे।
जय हिंद।।।
लेखक वतन समाचार के Founding Editor हैं
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