पिछली बार आपसे बात करने के 106 दिन बाद एक बार फिर से आपके सामने आने की मुझे खुशी है। पिछली रात 8 बजे बाहर निकलकर आजाद हवा में सांस लेने के बाद मेरे मन में सबसे पहले विचार एवं प्रार्थना जम्मू-कश्मीर के 75 लाख लोगों के लिए थे, जिनसे 4 अगस्त, 2019 से उनकी आधारभूत स्वतंत्रताएं छीन ली गई। मैं विशेषरुप से उन राजनेताओं के लिए भी चिंतित हूँ, जिन्हें बिना किसी आरोप के हिरासत में रखा गया है। आजादी अविभाज्य है: यदि हम अपनी आजादी को बचाए रखना चाहते हैं, तो हमें उनकी आजादी के लिए लड़ना होगा।
उच्चतम न्यायालय के कल के स्पष्ट एवं विस्तृत आदेश के लिए मैं आभारी हूँ। इस आदेश से धूल की वो अनेक परतें साफ हो जाएंगी, जो दुर्भाग्य से फौजदारी कानून की हमारी समझ पर छा गई हैं तथा जिसके अनुसार हमारे न्यायालयों द्वारा फौजदारी कानून लागू किया जाता है।
मैंने न्यायिक प्रक्रिया के अधीन चल रहे मामलों के बारे में कभी कुछ टिप्पणी नहीं दी और मैं इस सिद्धांत का पालन करता रहूंगा। इस मामले में आपके अनेक प्रश्नों के उत्तर कल के उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए स्पष्ट आदेश में पाए जा सकते हैं।
पिछले 106 दिनों में, मैं अंदर से दृढ़ था तथा मैं निम्नलिखित कारणों से और ज्यादा मजबूत हुआ हूँ -
1. मंत्री के रूप में मेरा रिकॉर्ड एवं मेरा विवेक बिल्कुल साफ हैं। जिन अधिकारियों ने मेरे साथ काम किया, जिन व्यवसायियों का मुझसे संपर्क हुआ है और जिन पत्रकारों ने मेरा काम देखा है, वो इस बात को बहुत अच्छी तरह समझते हैं।
2. मेरे परिवार का ईश्वर में विश्वास है।
3. हमें पूरा विश्वास है कि न्यायालय से अंततः न्याय होगा।
चलिए हम इस विषय हो यहीं छोड़ते हैं और आज की सबसे गंभीर तथा विस्फोटक समस्या, यानि अर्थव्यवस्था की स्थिति पर आते हैं।
इसकी शुरुआत समस्या की पहचान से होनी चाहिए। यदि समस्या की पहचान गलत होगी, तो दवाई किसी काम की नहीं होगी और जानलेवा भी हो सकती है। वित्तवर्ष के 7 महीने बीत जाने के बाद भी भाजपा सरकार यही मान रही है कि अर्थव्यवस्था की समस्याएं चक्रीय हैं। सरकार गलत है। सरकार गलत इसलिए है क्योंकि वे बेखबर हैं। सरकार स्वभाविक सुरागों को देख नहीं पा रही क्योंकि यह अहंकार से ग्रसित है तथा नोटबंदी, त्रुटिपूर्ण जीएसटी, टैक्स आतंकवाद, अत्यधिक नियामकता, संरक्षणवाद तथा प्रधानमंत्री कार्यालय में निर्णयन के केन्द्रीकरण जैसी अपनी भयंकर गलतियों को मानने को तैयार नहीं है।
कृपया मैंने जो आरोप लगाए, उनमें से हरेक आरोप पर गौर करें। आने वाले दिनों में, मैं उनमें से प्रत्येक के बारे में खुलकर बात करूंगा, इंटरव्यू दूंगा और उन पर विस्तार से लिखूंगा।
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा अर्थव्यवस्था की स्थिति को बड़ी आसानी से समझा जा सकता हैः-
8, 7, 6.6, 5.8, 5 और 4.5
ये पिछली छः तिमाहियों में जीडीपी की त्रैमासिक वृद्धि के आंकड़े हैं। 2019-20 की तीसरी और चौथी तिमाही का हाल भी इनसे अच्छा नहीं होने वाला। अगर इस साल का अंत 5 प्रतिशत की वृद्धि के साथ कर पाए, तो वह बहुत सौभाग्य की बात होगी। आपको डॉ. अरविंद सुब्रमण्यम की चेतावनी याद करनी होगी, उन्होंने कहा था कि वर्तमान भाजपा सरकार में संदेहपूर्ण विधियों के चलते 5 प्रतिशत की वृद्धि असल में 5 प्रतिशत नहीं, बल्कि लगभग 1.5 प्रतिशत कम होगी।
प्रधानमंत्री असामान्य रुप से अर्थव्यवस्था के मामले में मौन रहे हैं। उन्होंने अपने मंत्रियों पर बाजीगरी करने और झांसा देने का काम छोड़ दिया है। परिणाम यह है कि, ‘दा इकॉनोमिस्ट’ के अनुसार, सरकार अर्थव्यवस्था की ‘अयोग्य प्रबंधक’ बन गई है।
दुनिया भर के निवेशक, एवं बैंकर्स, रेटिंग एजेंसियां और कंपनियों के निदेशक मंडलों के सदस्य ‘द इकॉनॉमिस्ट’, ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ एवं ‘टाईम’ पढ़ते हैं। वो आंकड़ों को बहुत ध्यान से देखते हैं। हर आंकड़ा- जी हां, मैं फिर कहूंगा, हर आंकड़ा - चरमराती अर्थव्यवस्था की ओर इशारा कर रहा है।
एनएसएसओ के अनुसार गांवों में उपभोग गिर रहा है। ग्रामीण वेतन कम हो गए। खास रुप से किसानों के लिए, उत्पाद के मूल्य गिर गए। दैनिक मजदूरी करने वालों को माह में 15 दिन से ज्यादा काम नहीं मिल पा रहा। मनरेगा की मांग बढ़ गई है। एफएमसीजी – (Fast-Moving Consumer Goods) स्थाई और अस्थाई, दोनों की बिक्री कम हो रही है। थोक मूल्य बढ़ रहे हैं। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स बढ़ रहा है। प्याज 100 रु. किलो बिक रहे हैं। इन सबका क्या मतलब है? लोगों के बीच मांग कम है क्योंकि उनके पास कम पैसे हैं और अनिश्चितता एवं डर की वजह से उपभोग करने की इच्छा भी कम है।
जब तक मांग नहीं बढ़ेगी, तब तक उत्पादन/ आउटपुट और निवेश नहीं बढ़ेगा। सभी थर्मल प्लांट्स का प्लांट लोड फैक्टर 48 प्रतिशत है। यदि बिजली की इंस्टॉल्ड क्षमता का आधा शटडाउन है, तो इससे बड़ी आपदा और मुसीबत कोई नहीं हो सकती।
आज, पहली बार भारतीय रिजर्व बैंक ने केवल 7 महीने के अंतराल में फरवरी 2019 माह के अपने पूर्वानुमान को 7.4 से घटाकर 5 किया है। फरवरी में 7.4 से इसे अप्रेल में 7.2 किया, एक महीने पहले इसे 6.1 किया, और अब 5 कर दिया है। मुझे ऐसा कोई प्रकरण या घटना याद नहीं आती जब भारतीय रिजर्व बैंक ने फरवरी 2019 से दिसम्बर 2019 के बीच अपने पूर्वानुमान को 7.4 से घटाकर 5 किया हो, यह अभूतपूर्व है। या तो भारतीय रिजर्ब बैंक ने अपनी फरवरी के पूर्वानुमान को बिल्कुल अक्षम तरीके से किया था, या सरकार ने पिछले 8 माह में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन अक्षम ढंग से किया है।
वर्तमान मंदी को केंद्र सरकार ‘चक्रीय’ बता रही है। भगवान का शुक्र है, कि उन्होंने इसे मौसमी नहीं कहा। यह ‘स्ट्रक्चरल’ है और सरकार के पास कोई समाधान या सुधार नहीं है, जिससे यह स्ट्रक्चरल समस्या ठीक हो सके।
यूपीए ने 2004 से 2014 के बीच 14 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला था। 2016 में नोटबंदी लागू करने के बाद से एनडीए सरकार ने लाखों लोगों को गरीबी के दलदल में धकेल दिया है।
अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकाला जा सकता है, लेकिन यह सरकार ऐसा करने में असमर्थ है। मेरा मानना है कि अर्थव्यवस्था को मंदी से बाहर निकालने और आर्थिक वृद्धि को पटरी पर वापस लाने की क्षमता कांग्रेस पार्टी एवं कुछ अन्य पार्टियों में है, लेकिन उसके लिए हमें अच्छे समय का इंतजार करना होगा।
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