पी. चिदंबरम द्वारा उठाए गए महत्वपूर्ण सवालों के जवाब में पीएमओ द्वारा प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई है तथा कांग्रेस पार्टी द्वारा इसका संज्ञान लेते हुए तथ्यों पर आधारित वास्तविकता व सच्चाई देश के समक्ष रखने का निर्णय लिया है।
पीएमओ का बयान सच्चाई पर पर्दा डालने तथा देश को भटकाने का एक कुत्सित प्रयास है।
सबसे पहले, पीएमओ एवं सरकार को गलवान घाटी पर देश की संप्रभुता बारे सरकार की स्थिति को स्पष्ट करना होगा। क्या यह सही नहीं कि गलवान घाटी पर भारत का अभिन्न अधिकार है? मोदी सरकार आगे बढ़कर गलवान घाटी पर चीन द्वारा किए गए नाज़ायज़ दावे का दृढ़ता से खंडन क्यों नहीं कर रही? क्या चीनी सेना वहां मौजूद हैं, क्या उन्होंने भारतीय सीमा में घुसपैठ कर भारत की सरजमीं पर कब्जा किया है? साथ ही सरकार पांगोंग त्सो इलाके में चीनी घुसपैठ पर रहस्यमी चुप्पी लगाए क्यों बैठी है?
पीएमओ का बयान भारत-चीन के बीच एलएसी पर उत्पन्न गंभीर स्थिति का आंकलन करने में केंद्रीय सरकार की विफलता को प्रदर्शित करता है। सुरक्षा विशेषज्ञों, सेना के अनेकों रिटायर्ड जनरलों एवं सैटेलाईट पिक्चरों ने न केवल 15 जून, 2020 को हुई चीनी घुसपैठ, बल्कि लद्दाख के इलाके में भारतीय सरजमीं पर अनेकों घुसपैठों व चीनी अतिक्रमण की पुष्टि की है।
पीएमओ के बयान के चौथे पैरा में 15 जून की गलवान की घटना का हवाला देकर कहा गया है कि, ‘भारतीय सेना ने चीनियों के मनसूबों को पराजित किया। प्रधानमंत्री की यह टिप्पणी कि एलएसी के हमारी तरफ चीनी मौजूदगी नहीं है, इस संदर्भ में दी गई व हमारे सैनिकों की बहादुरी का नतीजा था।’’ साफ है कि इस बयान का संदर्भ केवल 15 जून को हुई चीनी घुसपैठ की घटना को लेकर है, जिसे हमारी सेना ने खदेड़ दिया।
लेकिन 5 मई से 15 जून, 2020 के बीच हुई घुसपैठ बारे केंद्र सरकार की क्या प्रतिक्रिया है? रक्षामंत्री ने साक्षात्कार में स्वीकार किया कि चीनी सैनिक ‘बड़ी संख्या में’ मौजूद हैं व खुद सेना प्रमुख ने ‘डिसइंगेज़मेंट’ यानि सैनिकों की वापसी बारे कहा था। सरकार ने बार बार ‘पहले की स्थिति बहाल’ किए जाने की मांग की। हम 7 जून, 2020 को विदेश मंत्रालय के बयान बारे देश का ध्यान आकर्षित करेंगे, जहां स्पष्ट तौर से कहा गया था कि दोनों ही देश ‘सीमा के इलाकों में स्थिति का हल निकालने’ और ‘शीघ्रता से समाधान’ निकालने पर सहमत हैं। यदि भारतीय भूभाग में चीन द्वारा कोई घुसपैठ नहीं की गई, तो फिर चीनी सैनिक ‘बड़ी संख्या में मौजूद कैसे थे’ तथा ‘पहले की स्थिति बहाल’ करने की मांग क्यों की गई या फिर ‘चीनी सेना के वापस लौटने’ या फिर ‘शीघ्र समाधान’ निकाले जाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
विदेश मंत्रालय ने 17 जून, 2020 को बयान देकर यह भी बताया कि 6 जून को ‘डिसइंगेज़मेंट’ और ‘डिएस्केलेशन’ पर एक समझौता हुआ है। 17 जून के बयान में यह भी कहा कि ‘चीनी सेना ने गलवान घाटी में एलएसी के पार भारतीय जमीन पर ढांचा खड़ा करने का प्रयास भी किया।’’ यदि चीनी सेना ने भारतीय सरजमीं घुसपैठ नहीं की, तो फिर विदेश मंत्रालय 17 जून, 2020 तक भी डिसइंगेज़मेंट और डि-एस्केलेशन की बात क्यों कर रहा था?
इन सभी तथ्यों से साफ है कि गलवान घाटी एवं पांगोंग त्सो के इलाके में चीनी सेना ने अनेक स्थानों पर घुसपैठ की, जिनके लिए ‘डिसइंगेज़मेंट’ और ‘डिएस्केलेशन’ या सेना के वापस लौटने तथा पूर्व जैसी यथास्थिति बनाने की आवश्यकता पड़ी। हमारी जानकारी के मुताबिक चीनी सेना द्वारा अब तक डिसइंगेज़मेंट की प्रक्रिया को पूरा नहीं किया गया है। अब पूरी गलवान घाटी पर चौंकानेवाले और झूठे तथा षडयंत्रकारी चीनी दावे के बाद मोदी सरकार की और अधिक जिम्मेदारी है कि वह भारत की भूभागीय अखंडता की रक्षा करे।
हम प्रधानमंत्री जी से आग्रह करते हैं कि वो अपने ‘राजधर्म’ का पालन करें तथा ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ व ‘भूभागीय अखंडता’ की सुरक्षा करने की कसौटी पर खरे उतरें। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है।
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