नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB ने साल 2019 के जेल संबंधित आंकड़े जारी कर दिए हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े यह बताते हैं कि जेलों में बंद दलित मुस्लिम ट्राइबल और ओबीसी की क्या हालत है। इंडियन एक्सप्रेस ने एनसीआरबी के 2019 के आंकड़ों के अनुसार दावा किया है कि 2019 में 21.7 परसेंट दलित मुजरिम करार दिए गए जबकि अंडर ट्रायल (विचाराधीन) 21 परसेंट दलित आज भी अंडर ट्रायल है। इंडियन एक्सप्रेस ने 2011 के जनगणना के आधार पर दावा किया है कि इनकी आबादी 16 पॉइंट 6 परसेंट है।
रिपोर्ट के अनुसार ट्राईबल्स - आदिवासी समुदाय की हालत भी कुछ अलग नहीं है। अनुसूचित जनजाति में आने वाले कैदियों में 13 पॉइंट 6 परसेंट मुजरिम करार दिए गए जबकि 10 पॉइंट 5 परसेंट लोग अभी भी अंडर ट्रायल हैं, या जिनके मामले विचाराधीन हैं। जबकि इनकी आबादी 8 पॉइंट 6 परसेंट है।
बता दें कि 2015 में विवादास्पद रिपोर्ट के बाद एनसीआरबी ने जाति और धर्म का उल्लेख करना बंद कर दिया था। 2015 की एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया था कि देश में 55 प्रतिशत कैदी दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय से थे। जिसके बाद सरकार पर इन समुदायों के साथ भेदभाव का आरोप लगने लगा था।
रिपोर्ट के अनुसार 14 पॉइंट 2 फीसद आबादी वाले मुस्लिम 16 पॉइंट 6 फीसद मुजरिम करार दिए गए, जबकि 18 पॉइंट 7 फीसद अभी भी अंडर ट्रायल है।
इंडियन एक्सप्रेस में फॉर्मर चीफ ऑफ ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट NR वासन के हवाले से दावा किया है कि "सवाल अपराधिक न्याय प्रणाली पर खड़े होते हैं क्योंकि जो लोग अच्छे वकील हायर कर लेते हैं वह आसानी से बेल पा जाते हैं जबकि अपनी आर्थिक तंगी की वजह से गरीब आसानी से बेल नहीं पाते हैं।
इन आंकड़ों की अगर ओबीसी और दूसरे समुदाय से तुलना करें तो पहली नजर में ही हाशिए पर डाले गए समाज की स्थिति को समझा देते हैं। एनएसएसओ के 2006 में जारी आंकड़ों में ओबीसी और दूसरे समुदाय का दोषी और विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत लगभग क्रमशः 35 और 34 था। वहीं हिंदुओं और दूसरे धर्मों की उच्च जातियों में 13 प्रतिशत दोषी और 16 प्रतिशत अंडरट्रायल कैदी हैं। सामान्य वर्ग की आबादी देश की कुल जनसंख्या की 19.6 प्रतिशत है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 22015 के डाटा के अनुसार 2019 में अंडर ट्रायल मुस्लिमों की संख्या में कमी आई है। 2015 में 20 पॉइंट 9 फीसद मुस्लिम अंडर ट्रायल जेल में थे और 15 पॉइंट 8% मुजरिम क़रार दिए गए थे, जबकि 2019 में 18 पॉइंट 7 परसेंट अंडर ट्रायल है जबकि मुजरिमों की संख्या 16 पॉइंट 6 फीसद है, जबकि बीते 5 सालों में एससी/एसटी समुदाय की हालात में बहुत ज्यादा तब्दीली नहीं आई है। 21 परसेंट दलित मुजरिम क़रार दिए गये हैं और अंडर ट्रायल की संख्या 2015 के आंकड़ों से बिल्कुल अलग 2019 में नहीं है।
जबकि ट्राईबल 2015 में 13 पॉइंट 7 फीसद मुजरिम पाए गए थे जो 2019 में 13 पॉइंट 6 फीसद हो गया है, इसी तरह 12 पॉइंट 4 फीसद अंडर ट्रायल थे जो 2019 में जो घटकर 10 पॉइंट 5 फीसद पर आ गया है।
राज्य-वार, जेलों में दलित विचाराधीन क़ैदियों की अधिकतम संख्या उत्तर प्रदेश (17,995), उसके बाद बिहार (6,843) और पंजाब (6,831) थी। अधिकांश एसटी विचाराधीन मध्य प्रदेश (5,894) में थे, इसके बाद यूपी (3,954) और छत्तीसगढ़ (3,471) थे। अधिकतम मुस्लिम विचाराधीन यूपी (21,139) में थे, इसके बाद बिहार (4,758) और मध्य प्रदेश (2,947) थे।
सबसे ज्यादा दलित मुजरिम करार दिए गए जिनकी संख्या यूपी में (6,143) इसके बाद MP में (5,017) और पंजाब (2,786)। अधिकांश आदिवासी अपराधी मप्र (5,303), छत्तीसगढ़ (2,906) और झारखंड (1,985) में थे। 6,098 मुस्लिम UP में दोषी पाए गए, इसके बाद पश्चिम बंगाल (2,369) और महाराष्ट्र (2,114) थे।
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