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शोभा यात्राओं या धार्मिक जुलूसों में असले लहराने वालों पर कब कैसेगा क़ानून का शिकंजा?

भारतीय कानून के तहत बंदूकें प्रतिबंधित हैं. बंदूक रखने या ले जाने की अनुमति केवल जिलाधिकारी द्वारा जारी किए गए लाइसेंस के जरिए ही दी जा सकती है. दरअसल, शस्त्र अधिनियम (Arms Act) 9 इंच से अधिक लंबी तलवार और ब्लेड (जिनका इस्तेमाल रसोई में नहीं होता है) को रखने के लिए भी लाइसेंस की आवश्यकता होती है. बिना लाइसेंस के कोई भी हथियार रखने या ले जाने पर जेल और जुर्माने के रूप में सजा हो सकती है.

By: वतन समाचार डेस्क

शोभा यात्राओं या धार्मिक जुलूसों में असले लहराने वालों पर कब कैसेगा क़ानून का शिकंजा?

 

 

 

 

क्या कहता है आर्म्स एक्ट?

भारतीय कानून के तहत बंदूकें प्रतिबंधित हैं. बंदूक रखने या ले जाने की अनुमति केवल जिलाधिकारी द्वारा जारी किए गए लाइसेंस के जरिए ही दी जा सकती है. दरअसल, शस्त्र अधिनियम (Arms Act) 9 इंच से अधिक लंबी तलवार और ब्लेड (जिनका इस्तेमाल रसोई में नहीं होता है) को रखने के लिए भी लाइसेंस की आवश्यकता होती है. बिना लाइसेंस के कोई भी हथियार रखने या ले जाने पर जेल और जुर्माने के रूप में सजा हो सकती है.

 

 

 

आर्म्स एक्ट रूल्स 2016 के नियम 8 के तहत, आग्नेयास्त्रों या नुकीले किनारों वाली तलवारें और ब्लेड आदि जैसे अन्य हथियार का लाइसेंस रखने वाले व्यक्ति भी सार्वजनिक स्थानों पर उन हथियारों का प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं. ना ही उन्हें ऐसी जगह ले जा सकते हैं. आज तक के अनुसार इसी प्रकार शादी, सार्वजनिक सभा, मेले, बारात या किसी सार्वजनिक कार्यक्रम के अवसर समेत किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बन्दूक ले जाने और उसका प्रदर्शन करने पर रोक है.

 

 

जो व्यक्ति आग्नेयास्त्र या अन्य हथियार रखने या ले जाने के लिए लाइसेंस का आवेदन कर रहा है, उसे एक फॉर्म भरना होता है. जिसमें यह शर्त शामिल है कि लाइसेंस धारक "ऐसे किसी भी हथियार को किसी भी शैक्षणिक संस्थान के परिसर, धार्मिक जुलूस या अन्य सार्वजनिक स्थान, सभा में या किसी परिसर में भीतर नहीं ले जाएगा. खेल, सुरक्षा, प्रदर्शन के लिए हथियार या गोला-बारूद का अधिग्रहण, कब्जा और उसे ले जाने की शर्त भी शस्त्र लाइसेंस में जोड़ दी जाती है. उसी के अनुसार उसका इस्तेमाल होता है.

 

 

आग्नेयास्त्रों के लिए लाइसेंस की शर्त भी साफ तौर पर कहती है कि आग्नेयास्त्रों को किसी भी सार्वजनिक स्थान पर तब तक नहीं ले जाया जा सकता जब तक कि वे एक होल्स्टर/रक्सकैक में या पूरी तरह से ढके हुए ना हों. कानून के तहत किसी भी व्यक्ति पर बंदूक तानना भी प्रतिबंधित होता है, भले ही वह लोड न हो. इसी तरह, लाइसेंस हासिल करने की शर्त ये भी है कि तलवार या किसी भी प्रकार के तेज धार वाले हथियारों सहित किसी भी अन्य हथियार को साथ रखना, लाना ले जाना या उसकी ब्रांडिंग करना भी प्रतिबंधित है.

 

 

लाइसेंस की इन शर्तों का उल्लंघन करने पर आर्म्स एक्ट के नियम 32 के तहत धारक को दिया गया लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. इसके अलावा, लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन करने वाले या बिना लाइसेंस के हथियार रखने वालों पर अवैध रूप से हथियार रखने के लिए आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, जिसमें 1 से 3 साल की कैद हो सकती है.

 

 

अगर किसी भी व्यक्ति को वास्तव में आग्नेयास्त्र, हथियार या गोला-बारूद का उपयोग करते हुए पाया गया, जो कि वीडियो में देखा जा सकता है. तो उसे शस्त्र अधिनियम की धारा 27 के तहत सजा हो सकती है. जिसमें कम से कम 3 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष कारावास की सजा का प्रावधान है.

 

 

 

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 148 में घातक हथियारों का उपयोग करके दंगा करने के अपराध के लिए सजा का प्रावधान है, जिसमें अधिकतम 3 साल की कैद और आर्थिक जुर्माना हो सकता है.

 

 

ल्ली के पूर्व डीसीपी और वकील एलएन राव के अनुसार, अगर किसी जुलूस में हथियारों की ब्रांडिंग या हथियारों का उपयोग करने वाले व्यक्ति भी शामिल होते हैं, तो ऐसे में आईपीसी की धारा 188 के तहत लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा (Disobedience of order duly promulgated by public servant) के अपराधी माने जाएंगे.

 

 

राव बताते हैं कि कोई भी जुलूस या रैली केवल पुलिस और स्थानीय अधिकारियों की अनुमति और शर्तों के बाद ही निकाले जा सकते हैं. ये जुलूस शांतिपूर्ण होने चाहिए और उनमें भड़काऊ या असामंजस्य पैदा करने का काम नहीं होना चाहिए. ऐसे में हथियारों का प्रदर्शन और सार्वजनिक शांति व्यवस्था का उल्लंघन अनुमति आदेशों का उल्लंघन होगा और ऐसे मामले में धारा 188 आईपीसी के तहत कार्रवाई हो सकती है.

 

 

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के मुताबिक हथियारों या उनके इस्तेमाल से लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है. कानून में बिना लाइसेंस के हथियारों को जब्त करने और शर्तों के उल्लंघन के मामले में बिना वारंट कार्रवाई करने की अनुमति देता है.

 

 

आर्म्स एक्ट यानी शस्त्र अधिनियम सार्वजनिक स्थान पर हथियारों के प्रदर्शन या उपयोग आदि पर सख्ती से रोक लगाता है. लेकिन कुछ समुदायों को कुछ शर्तों के साथ इस नियम से छूट दी गई है. ऐसे समुदायों को केंद्र सरकार ने अधिसूचित करती है. इसी तरह से निशानेबाजी से जुड़े वो खिलाड़ी जो निशानेबाजी निकायों के प्रमाणित सदस्य हैं या खेल मंत्रालय द्वारा प्रमाणित हैं, उन्हें प्रतिस्पर्धा जैसे आयोजनों या प्रशिक्षण के लिए यात्रा करते समय अपनी बंदूकें या अन्य खेल से जुड़े हथियार ले जाने की अनुमति है

 

 

बहुत सीमित है धार्मिक या सामुदायिक छूट

 

आर्म्स एक्ट में तलवार और अन्य हथियारों पर प्रतिबंध है. लेकिन सिखों को अपने धर्मानुसार, 9 इंच से कम ब्लेड के साथ कृपाण रखने की अनुमति है. इसके अलावा, निहंग सिखों को शस्त्र अधिनियम की धारा 4 के तहत लाइसेंस हासिल करने के बाद भाले और बरछा रखने की इजाजत दी जाती है. इसी तरह से गोरखा समुदाय को 'कुखरी' यानी छोटा चाकू (जो 9 इंच के आकार से अधिन ना हो) रखने की भी अनुमति है.

 

 

 

कोडावास या कर्नाटक के कूर्ग रेस और जुम्मा कार्यकाल धारकों के जातीय समुदाय को भी तलवार, खंजर रखने और बंदूकों का उपयोग करने के लिए विशेष छूट दी गई है, लेकिन यह छूट केवल कोडागु जिले के भीतर ही लागू होती है. लेकिन ये सभी हथियार पंजीकृत होना ज़रूरी हैं. कोडागु जिले के बाहर हथियार ले जाने पर भी प्रतिबंध है. यह छूट भारत सरकार द्वारा शुरू में 1963 में दी गई थी, जिसे समय-समय पर समीक्षा के बाद 10 साल के लिए बढ़ा दिया जाता है. कूर्ग और जुम्मा के कार्यकाल धारकों को वर्तमान छूट अधिसूचना के तहत 2029 तक हथियार रखने की अनुमति है.

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में और फिर 2004 में आनंद मार्गियों को एक अलग संप्रदाय के रूप में मान्यता दी थी. उन्हें अपने धार्मिक जुलूस के दौरान 'तांडव नृत्य' करने की अनुमति मिली, जो विशिष्ट पूजा के दिनों में सार्वजनिक रूप से आयोजित किया जाता है. आनंद मार्गियों को जुलूस और तांडव नृत्य के लिए त्रिशूल और चाकू रखने की अनुमति दी गई है. हालांकि, शीर्ष अदालत के 2004 के फैसले में कहा गया है कि आनंद मार्गी जुलूस में कोई छड़, लकड़ी की छड़ या अन्य हथियार नहीं होंगे. आनंद मार्गियों के अन्य संप्रदायों या धर्मों की भावनाओं को प्रभावित करने वाले नारे लगाने पर भी रोक लगा दी गई है.

 

 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

 

 

एडवोकेट महमूद प्राचा कहते हैं “मुहर्रम के जुलूस के दौरान शिया समुदाय के लोग तलवारें, चाकू और चाबुक चलाते हैं, लेकिन यह धार्मिक अनुष्ठान के तौर पर जुलूस निकालने के लिए स्थानीय पुलिस से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही होता है. अन्यथा किसी को जुलूस में हथियार ले जाने की इजाजत नहीं है.”

 

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा कहते हैं "फैक्ट यह है कि कुछ समुदायों को हथियार प्रदर्शित करने के लिए लाइसेंस दिया गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि हर कोई इसे करने का हकदार है. आप इस पर धार्मिक अधिकार के मामले के रूप में दावा नहीं कर सकते. जब पुलिस जुलूस की अनुमति देती है, तो एक शर्त यह है कि जुलूस या सभा शांतिपूर्ण होनी चाहिए और हिंसा को भड़काना नहीं चाहिए. यह पुलिस को सुनिश्चित करना है कि हथियारों की अनुमति नहीं दी जा सकती है. कोई भी हथियार जिसे खुले तौर पर ले जाया जा रहा है या प्रदर्शित किया जा रहा है, उसे बिना वारंट के जब्त किया जा सकता है. पहला सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या जुलूस के हिस्से के रूप में किसी को हथियार प्रदर्शित करने या ले जाने की अनुमति थी.

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