नयी दिल्ली: आज के समय में जब कि पत्रकारिता अपने सब से खराब दौर से गुजर रही है, उस समय में भी कुछ ऐसे पत्रकार हैं जो पत्रकारिता की लाज को बचाए हुए हैं. उन पत्रकारों में से एक सौरभ शुक्ला भी हैं. पाठकों को अच्छी तरह यह बात समझ में आ रही होगी कि किस तरह से आज रोगी मीडिया के कुछ चैनल स्टूडियो में कुछ ऐसे मेहमानों को बुलाकर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की समस्याओं पर बात करते हैं जिन्होंने ना गांव देखा ना गांव की गलियां और जो कभी दिल्ली से बाहर नहीं गए और वह स्टूडियो में बैठकर पूरे देश और दुनिया के हालात पर चर्चा करते हैं, और हर मामले में हिन्दू मुस्लिम ढूंढते हैं.
एक समय था जब पत्रकार ग्राउंड जीरो से लोगों को सच्चाई अवगत कराते थे, लेकिन आज पत्रकारिता के गिरावट के इस समय में ग्राउंड जीरो की रिपोर्टिंग मेन-स्ट्रीम मीडिया में पूरी तरह से खत्म हो गई है, या खत्म की ओर है, जिस की जगह अब सोशल मीडिया ने ले ली है.
यही वजह है कि देश की एक बड़ी आबादी अब उन टीवी चैनलों से घिन करने लगी है जो स्टूडियो में बैठकर के हिंदू मुस्लिम के नाम पर एक दूसरे को लड़ाने का प्रयास करते हैं. जो ना स्वास्थ्य के मुद्दों पर बात करते हैं ना रोजगार के मुद्दों पर, जो ना किसानों के मुद्दे पर बात करते हैं ना गरीबों मजदूरों के मुद्दे पर. जो ना शिक्षा के मुद्दे पर बात करते हैं ना उन लोगों की समस्याओं पर बात करते हैं जो शिक्षा हासिल करने के बाद भी खाली बैठे हुए हैं. ना GDP पर बात कर रहे हैं ना अर्थव्यवस्था पर.
सिर्फ हिंदू मुस्लिम हिंदू मुस्लिम. समुदायों को बांटो की पॉलिसी पर कार्यरत हैं. इस नाजुक समय में सौरभ शुक्ला जैसे कुछ पत्रकार जो पत्रकारिता की लाज रख कर ग्राउंड जीरो पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं.
पाठकों को याद होगा कि बीते दिनों जब राहुल गांधी ने सुखदेव सिंह नामी एक किसान की फोटो पोस्ट की जिसे एक सीआरपीएफ का जवान उनके ऊपर लाठी उठाए हुए था. पीटीआई के फोटोग्राफर के जरिए ली गई यह तस्वीर किसान आंदोलन का चेहरा बन चुकी है. राहुल गांधी की तरफ से यह ट्वीट आने के बाद बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने इसको टैग करते हुए इसका मजाक उड़ाया और कहा कि जवान ने किसान की पिटाई नहीं की है, लेकिन सौरभ शुक्ला ने ग्राउंड ज़ीरो पर जाकर के बीजेपी आईटी सेल की पोल खोली.
उन्होंने सुखदेव सिंह नामी किसान से बात की, जिसने अपनी चोट के निशान भी दिखाए और बताया कि किस तरह से उनको हाथ से लेकर कमर तक 7-8 लाठियां मारी गयीं और दो-तीन सीआरपीएफ के जवानों ने मिलकर के मारी.
जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि आपको क्या अब इसके बावजूद डर नहीं लगता है उस पर बुज़ुर्ग किसान ने कहा कि जब तक कानून वापस नहीं होगा तब तक हमारा संघर्ष जारी रहेगा. हम अपने बच्चों के भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं. आज जरूरत है देश को ऐसे पत्रकारों की जो ग्राउंड जीरो पर जाकर के पत्रकारिता की लाज रखें और देश को उस सच्चाई से अवगत कराएं जो गरीबों मजदूरों दलितों आदिवासियों पीड़ितों शोषित वंचितों की समस्याएं हैं. जिससे देश का आम आदमी जूझ रहा है.
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