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सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर, शिफ़ा-उर-रहमान और शरजील इमाम का Amnesty International समेत दुनिया भर के कई संगठनों ने उठाया मामला

हमारा मानना है कि उनकी हिरासत निराधार है और इसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों की रक्षा करने और पक्षपाती कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण रूप से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दंडित करना है

By: वतन समाचार डेस्क
  • सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर, शिफ़ा-उर-रहमान और शरजील इमाम का Amnesty International समेत दुनिया भर के कई संगठनों ने उठाया मामला
  • हमारा मानना है कि उनकी हिरासत निराधार है और इसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों की रक्षा करने और पक्षपाती कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण रूप से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दंडित करना है
  • भारत सरकार को संयुक्त खुले पत्र में कई संगीन आरोप, खतरे का सामना कर रहे मानवाधिकार रक्षकों की रिहाई होनी चाहिये
  • भारत पर मानव अधिकार के हनन का संगीन आरोप, Amnesty International समेत दुनिया भर के कई संगठनों ने गृह मंत्री अमित शाह को खुला पत्र लिखा 

 



श्री अमित शाह

केंद्रीय गृह मंत्री

गृह मंत्रालय

भारत सरकार

 

विषय: कोविड-19 के खतरे का सामना कर रहे मानवाधिकार रक्षकों को रिहा करें

 

माननीय गृह मंत्री जी,

 

हम, अधोहस्ताक्षरी संस्थाएं, छात्र कार्यकर्ताओं सफूरा ज़र्गर, जो चार महीने गर्भवती हैं, मीरान हैदर, शिफ़ा-उर-रहमान और शरजील इमाम, जो कि सभी गैर -कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत हिरासत में हैं, आपको यह पत्र उनकी स्थिति के बारे में गंभीर चिंता के साथ लिख रहे हैं। हमारा मानना है कि उनकी हिरासत निराधार है और इसका उद्देश्य उन्हें मानवाधिकारों की रक्षा करने और पक्षपाती कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण रूप से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दंडित करना है। साथ ही साथ, कोविड-19 महामारी के दौरान उन्हें जेल में रखा जाने से, उनके जीवन और स्वास्थ्य के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है। हम आपसे, इन सभी चार कार्यकर्ताओं के साथ साथ उन सभी व्यक्तियों को तत्काल और बिना शर्त के रिहा करने का आग्रह करते हैं, जिन्हें केवल मानवाधिकारों की रक्षा करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण रूप से सम्मिलित होने के अपने अधिकार का उपयोग करने के लिए हिरासत में रखा गया है, या आरोपी बनाया गया है या अभिशंसित किया गया है।

 

सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर और शिफ़ा-उर-रहमान छात्र कार्यकर्ता हैं जो नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल थे और अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किए गए थे। सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर और शिफ़ा-उर-रहमान को दिल्ली पुलिस ने क्रमश 10 अप्रैल, 1 अप्रैल और 24 अप्रैल को, खबरों के अनुसार, प्रदर्शनों में उनकी कथित भूमिका के संबंध में, दंगा करने और गैर-कानूनी रूप से सम्मिलित होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए) धर्म के आधार पर भेदभाव को वैधता प्रदान करता है और भारत के संविधान और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन करता है। छात्र कार्यकर्ता शरजील इमाम को जनवरी 2020 में सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान उनके भाषण के लिए देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यूएपीए के तहत अतिरिक्त आरोप अप्रैल 2020 में लाए गए थे। इन सभी को फिलहाल मुकदमा शुरू होने के पहली की (पूर्व परीक्षण) हिरासत में रखा गया है।

 

इनके अलावा अन्य लोग भी इसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, 14 अप्रैल 2020 को, अधिकारियों ने यूएपीए के तहत मानवाधिकार कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे और गौतम नवलखा को भी, महाराष्ट्र राज्य के भीमा कोरेगांव में 2018 के प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से जाति-आधारित हिंसा भड़काने के आरोप में 

हिरासत में लिया। इसी मामले के संबंध में 2018 के बाद से नौ अन्य कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया है। उन्हें आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए जाना जाता है और उन सभी को तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।

 

हम गंभीर रूप से चिंतित हैं कि भारतीय प्रशासन ने मानवाधिकारों को कमजोर करने, विरोध और प्रेस स्वतंत्रता को दबाने के लिए यूएपीए जैसे कठोर आतंकवाद-विरोधी क़ानूनों का नियमित रूप से दुरुपयोग किया है। कोविड-19 महामारी के दौरान यह और भी अधिक चिंताजनक है। इन क़ानूनों के तहत धीमी जाँच प्रक्रियाओं और बेहद कड़े जमानत-संबंधी प्रावधानों के कारण, मानवाधिकार रक्षक और आवाज़ उठाने वाले अन्य लोगों को अन्यायपूर्ण रूप से सलाख़ों के पीछे कई साल बिताने पड़ सकते हैं। 6 मई 2020 को भारत सरकार के साथ पत्राचार में, संयुक्त राष्ट्र के आठ विशेष प्रतिवेदकों (रैपोरर्ट्स) और वर्किंग ग्रुप ऑन आरबिटरेरी डिटेंशन (मनमानी हिरासत संबंधी कार्य समूह) ने ‘धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार रक्षकों और राजनीतिक विरोधियों, जिनके खिलाफ यूएपीए क़ानून का इस्तेमाल किया गया है, उनके साथ हो रहे भेदभाव के संदर्भ में, व्यक्तियों को “आतंकवादी” घोषित करने के लिए’, यूएपीए क़ानून में 2019 में किये गए संशोधन पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने यह भी कहा कि कानून के शासन द्वारा संचालित और मानवाधिकारों के सिद्धांतों और दायित्वों का पालन करने वाले समाज में, राज्य की नीतियों या संस्थानों की अहिंसक तरीकों से आलोचना को आतंकवाद-विरोधी कदमों के तहत दंडनीय अपराध नहीं बनाया जाना चाहिए। शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी, अंतरराष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि (ICCPR) के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन है, जिसमें, संधि के अनुच्छेद 9, 19 और 21 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सम्मेलन के अधिकारों का सम्मान और संरक्षण शामिल है।

 

25 मार्च 2020 को, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त ने कोविड-19 महामारी के चलते, सभी राज्यों से "राजनैतिक बंधकों और अपने आलोचनात्मक, असहमतिपूर्ण विचारों के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्तियों सहित, पर्याप्त कानूनी आधार के बिना हिरासत में लिए गए सभी लोगों को” रिहा करने का आग्रह किया। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और कर्नाटक सहित, पूरे भारत में कम से कम 200 जेल कैदियों और जेल कर्मचारियों को कोविड-19 संक्रमण होने की पुष्टि होने के बावजूद, शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों सहित, कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार रक्षकों को हिरासत में रखने के लिए कठोर क़ानूनों के दुरुपयोग के ज़रिये, प्रशासन उन्हें सिर्फ प्रताड़ित ही नहीं कर रहा है, बल्कि अनावश्यक रूप से उनके जीवन को गंभीर जोखिम में भी डाल रहा हैं।

 

इसके अलावा, सफूरा ज़र्गर की गर्भावस्था, खासकर कोविड-19 महामारी के बीच, उनकी रिहाई को और भी जरूरी बना देती है। महिला कैदियों के साथ व्यवहार और महिला अपराधियों के प्रति गैर-हिरासती कदमों के लिए संयुक्त राष्ट्र के नियम, जिन्हें बैंकॉक नियम भी कहा जाता है, उनके तहत मुकदमे के पहले (पूर्व-परीक्षण) के कदमों के बारे में निर्णय लेते समय, जहाँ संभव और उपयुक्त हो, गर्भवती महिलाओं के लिए गैर-हिरासती विकल्पों को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गयी है।

 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कोविड-19 फ़ैलने से रोकने के लिए जेलों में भीड़ को कम करने के आदेशों का पालन करते समय, भारतीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्र कार्यकर्ता सफूरा ज़र्गर, मीरान हैदर, शिफ़ा-उर-रहमान और शरजील इमाम को तुरंत और बिना किसी शर्तों के रिहा कर दिया जाए, जिन्हें केवल एक भेदभाव-पूर्ण कानून का विरोध करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का शांतिपूर्ण इस्तेमाल करने के लिए जेल में रखा जा रहा है। भीमा कोरेगांव मामले में जेल भेजे गए 11 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को भी तुरंत रिहा कर दिया जाना चाहिए।

 

महामारी के खिलाफ लड़ाई में सभी को साथ लेकर चलना चाहिए और इसका इस्तेमाल चुनिंदा मानवाधिकार रक्षकों को अपने मानवाधिकारों के इस्तेमाल से रोकना के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

 

सादर,

 

निम्नलिखित 25 प्रमुख राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक समाज संगठनों ने इस खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।

 

  1. African Center for Democracy and Human Rights Studies
  2. Amnesty International
  3. ARTICLE 19 - Bangladesh and South Asia 
  4. Asian Forum for Human Rights and Development (FORUM-ASIA) 
  5. Association for Human Rights in Ethiopia (AHRE), Ethiopia
  6. Center for Civil Liberties, Ukraine
  7. Centre d'études et d'initiatives de solidarité internationale (CEDETIM), France
  8. Citizens for Justice and Peace (cjp.org.in), Mumbai, India
  9. CIVICUS

10.  Front Line Defenders

11.  Groupe d’Action pour le Progrès et la Paix (G.A.P.P.-Afrique)

12.  Human Rights Watch

13.  Human Rights Concern (HRCE), Eritrea

14.  International Commission of Jurists

15.  International Federation for Human Rights (FIDH), in the framework of the Observatory for the Protection of Human Rights Defenders

16.  MARUAH, Singapore

17.  Muslim Womens Forum, India

18.  National Campaign for Diversity and Harmony (NCDH), India

19.  Odhikar, Bangladesh

20.  Reporters Without Borders (RSF)

21.  Réseau syndical international de solidarité et de luttes (International Labour Network of Solidarity and Struggles), France

22.  Rutgers International

23.  Union syndicale Solidaires, France

24.  WHRD-MENA Coalition

25.  World Organisation Against Torture (OMCT), in the framework of the Observatory for the Protection of Human Rights Defenders

 

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