जंतर मंतर पर सत्याग्रह की इजाज़त पर सुप्रीम कोर्ट का किसानों के प्रति सख्त रुख, कहा- पहले हाईवे जाम किए, अब शहर के भीतर हंगामा करना चाहते हो
नई दिल्ली: किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए जंतर-मंतर पर 200 किसानों के अनिश्चितकाल के लिए सत्याग्रह की इजाज़त मांगी थी, लेकिन इस याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के प्रति सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि "आपको विरोध करने की का अधिकार है, लेकिन आप दूसरों की संपत्ति को नष्ट नहीं कर सकते। एक तरफ तो अपने पूरे शहर का गला घोट दिया और अब अदालत से शहर के भीतर धरने की इजाज़त मांग कर यहां भी हंगामा करना चाहते हो। लोगों के भी अधिकार हैं।"
अदालत ने यह भी कहा कि "आप हाईवे जाम करते हैं और फिर कहते हैं कि धरना शांतिपूर्ण है। क्या आप न्याय व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं? क्या शहर के लोग अपना कारोबार बंद कर दें?
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने प्रदर्शनकारी किसानों को लेकर कहा "किसान यातायात, ट्रेनों और राष्ट्रीय राजमार्गों को अवरुद्ध कर रहे हैं। एक तरफ सुरक्षा कर्मियों को परेशान किया जा रहा है और दूसरी तरफ प्रदर्शन करने की मांग के लिए याचिका दायर की गई है। इसको देखते हुए प्रदर्शन करने की परमिशन कैसे दी जा सकती है।"
इस पर किसानों के वकील अजय चौधरी ने अदालत से कहा कि "बैरिकेड लगाकर सड़कों को पुलिस ने जाम किया है, किसानों ने नहीं। किसानों ने यातायात की जगह छोड़कर ही धरना स्थल बनाया था लेकिन सारी सड़कें पुलिस ने बंद की हैं।
दरअसल किसान आंदोलन को 1 साल पूरा होने वाला है। कई महीनों से किसान कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। कई बार विरोध में भारत बंद का भी आह्वान कर चुके। सरकार के साथ कई बैठकें भी हुई हैं। लेकिन समाधान नहीं निकल रहा। अब देश के अन्नदाता सुप्रीम कोर्ट से अपने 200 साथियों के लिए अनिश्चितकालीन सत्याग्रह की अनुमति चाहते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाज़त देने से साफ इनकार कर दिया।
ध्यान रहे कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से सम्बंधित तीन विधेयक– (किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य विधेयक, 2020, किसान मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020) पिछले साल सितम्बर 2020 में पास किये गए थे। जिसके विरोध में तक़रीबन एक साल से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के ज़रिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा।
दूसरी ओर केंद्र सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है। उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं।
अब तक किसान यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन गतिरोध जारी है, क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं। 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रेक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है।
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