नयी दिल्ली: दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन डॉक्टर जफर उल इस्लाम खान ने वतन समाचार को दिए गए अपने साक्षात्कार में भारत और तालेबान بھارت اور طالبان के रिश्तो को लेकर के भारत सरकार को कई सुझाव दिए हैं. डॉक्टर खान ने कहा है कि अब हमें तालिबान की जगह तालिबान हुकूमत कहना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें गैर जरूरी तौर से मौजूदा तालेबान जो अब तालिबान हुकूमत बन चुके हैं उनको अपना दुश्मन नहीं बनाना चाहिए.
उन्होंने भारत सरकार के खामोश रहने की प्रशंसा करते हुए कहा है कि भारत सरकार का खामोश रवैया बहुत अच्छा है. उन्होंने कहा कि अपेक्षा करते हैं कि सरकार सही समय पर उचित फैसला लेगी. उन्होंने कहा कि बीते कुछ दिनों में जिस तरह से सरकार की ओर से बयानात तालेबान को लेकर के दिए गए हैं वह ठीक नहीं हैं. उन्होंने कहा कि हमें इस स्थिति पर गंभीर पूर्वक निगाह रखनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी एंबेसी سفارتخانہ वहां पर बंद नहीं करना चाहिए. उन्होंने कहा कि वहां नीचे के कर्मचारियों का होना अत्यंत जरूरी है ताकि अगर किसी तरह के कागजात का कोई आदान-प्रदान हो तो उसके लिए दरवाजे खुले रहें. उन्होंने कहा कि तालिबान ने हुकूमत करके कई सारे सबक सीखे हैं. डॉक्टर खान ने कहा कि तालिबान का 10 साल का हुकूमत और 20 साल का यह संघर्ष, हमे इस बात की अपेक्षा करते हैं कि अब वहां जनता की हुकूमत कायम हुई है, जिस तरह हम भारत पर किसी के कब्जे को बर्दाश्त नहीं कर सकते उसी तरह वहां की जनता ने भी पपेट हुकूमत को निकाल बाहर फेंका है और तालिबान के नेतृत्व में एक नई हुकूमत बानी है.
डॉक्टर खान ने कहा कि 2 साल पहले ही क़तर में तालिबान का सिफरातखाना खोला जा चुका है, जो इस बात का प्रमाण है कि तालिबान हुकूमत दो साल पहले ही कायम हो चुकी थी और अमेरिका ने भी उसे स्वीकार लिया था. उन्होंने कहा कि तालिबान आने वाले दिनों में हम इस बात के अपेक्षा करते हैं कि वह उदार रवैया अपनाएंगे.
महिलाओं को इस्लामिक दृष्टिकोण से काम करने की पूरी आजादी होगी, हम इस बात की अपेक्षा करते हैं," डॉ खान ने कहा. उन्होंने कहा कि हमें इस बात की भी पूरी अपेक्षा है कि तालिबान ने जिस तरह अपना उदार रूप दिखाया है वह उस पर पूरी ईमानदारी के साथ कायम रहेंगे. उन्होंने कहा कि कश्मीर को लेकर के भी हमें बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में जिन लोगों ने कश्मीर में हालात खराब किए थे वह तालिबानी नहीं थे या तो पाकिस्तानी थे या अरब थे, जिनको अमेरिका ने अफगानिस्तान में रखा था. उन्होंने कहा कि हमें तालिबान की मौजूदा हुकूमत को कुछ मौका देना चाहिए, उसके बाद आगे का फैसला लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि तालिबान ने इस बात को स्वीकारा है कि भारत ने संसद से लेकर दुसरे कामों में जो योगदान दिया है उसके लिए उन्होंने भारत की प्रशंसा की है और हमें इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए.
उन्होंने कहा कि हमें किसी से भी अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि तालिबान पाकिस्तान के दुश्मन हैं, क्योंकि उनका एक पुराना जमीनी विवाद पाकिस्तान के साथ चल रहा है. दुश्मनी किसी से नहीं होनी चाहिए लेकिन यह ऐतिहासिक सच है, इसलिए हमारी हुकूमत को बहुत ज्यादा चिंतित होने के बजाय हालात पर नजर रखनी चाहिए.
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