अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ओल्ड बॉयज एसोसिएशन लखनऊ चैप्टर के अध्यक्ष मोहम्मद तारिक सिद्दीकी ने कहा कि जो क़ौम कांसा लेकर मांगती है वह कभी नेतृत्व नहीं कर सकती है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों के नेतृत्व को 4 खानों में बांटना होगा १-पॉलिटिकल, २-इकोनोमिकल, ३-सोशल और ४-नॉलेज:- उन्होंने कहा कि इन चार क्षेत्रों में जब हम गौर करते हैं तो हमें मालूम होता है कि मस्जिद-ए-नबवी में मश्वरे हुए, पार्लिमेंट चली और ऐसा हुआ तो हम दो तिहाई दुनिया के मालिक बन बैठे. उन्होंने कहा कि 15-20 साल अगर खुलफाये राशिदीन यानी अबू बकर सिद्दीक उमर फारूक हजरत अली और उस्मान गनी के पीरियड को देखें तो उसमें हमें पूरा पोस्टल सिस्टम शहरों के बसाने का फार्मूले, मिलिट्री सिस्टम, स्कूल सिस्टम मिल जाता है. उन्होंने कहा कि उनके पास एसेट नहीं था, लेकिन वह जनता के सुख दुख में शामिल हुए, अपने अंदर नेता होने का भ्रम नहीं पाला.
जहां तक सोशल लीडरशिप की बात है तो सूद को हराम कर के महिलाओं और कमजोर लोगों को सम्मान देकर समाज में एक नया समीकरण बनाने की कोशिश की गई. आर्थिक मंच पर जकात और फितरा के निजाम को कायम कर के अमीर और गरीब के बीच की दूरी को पाटा गया. जहां तक नॉलेज की बात है तो "इक़रा" यानी पढ़ने को जब तक समझा गया तो अलजेब्रा से लेकर दुनिया के जो मौजूदा उलूम "एजुकेशन" हैं उनको मुसलमानों ने दिया नवी सेंचुरी में पूरे उलूम को अरबी में ट्रांसलेट करने में जो खर्च आया वह आज के यूरोपियन या पश्चिमी देशों के शिक्षा के बजट से कहीं ज्यादा था. उन्होंने कहा कि दुनिया में डिग्री देने की पहली यूनिवर्सिटी मुसलमानों ने मोरक्को के अंदर बनाई जो आज भी मौजूद है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के चैन के सिस्टम को मदरसों की शक्ल में इस्लाम ने दिया, इससे पहले ऐसा कोई सिस्टम नजर नहीं आता. उन्होंने कहा कि आज मुसलमान दुनिया में एक "पेचीदा" यानी उलझे हुए सवाल की तरह हैं.
मुसलमानों के मस्सों का हाल 1400 साल पहले ही नजर आता है. उन्होंने कहा कि 1450 में जब प्रेस को 240 साल तक हराम किया गया और 240 साल बाद वह जायज कैसे हो गई. इसका मतलब यह है कि उस वक्त के लोग इस्लाम के सिस्टम को समझने में सफल नहीं रहे और उस नेतृत्व से जो गलती हुई थी वह खामियाजा आज हम भुगत रहे हैं. जब इस्लाम कयामत तक के लिए एक फलसफ-ए- हयात है तो वह जदीद भी होगा मॉडर्न भी होगा साइंटिफिक भी होगा उसमें सारी चीजें होंगी. इसलिए हमें आपसी झगड़ों को छोड़कर सहमति उस बात पर बनानी है जो हमारे और आपके अंदर कामन है.
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