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तबलीगी जमात के पक्ष में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच का फैसला जमीयत उलेमा-ए-हिंद के पक्ष का समर्थन। मौलाना अरशद मदनी

बॉम्बे हाई कोर्ट के औरंगाबाद की डिवीजन बेंच के तबलीगी जमात के बारे में दिए गए फैसले का जमीअत उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने स्वागत करते हुए उसे ऐतिहासिक करार दिया है। साथ ही मौलाना ने कहा है कि न्यायालय के इस फैसले ने उन लोगों के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है जो देश की शांति को भंग करने और देश में शत्रुता फैलाने के प्रयास में लगे थे। मौलाना मदनी ने कहा कि तबलीगी जमात को लेकर जिस तरह से मीडिया के एक धड़े ने देश के सामाजिक ताने-बाने और भाईचारे को नष्ट करने का प्रयास किया था यह फैसला उनके मुंह पर एक तमाचा है और आशा है कि वह अदालत के इस फैसले से सीख लेंगे और गांधी के देश में शत्रुता की जगह प्यार और मोहब्बत को बढ़ाने का प्रयास करेंगे।

By: Press Release
  • तबलीगी जमात के पक्ष में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच का फैसला जमीयत उलेमा-ए-हिंद की पक्ष का समर्थन। मौलाना अरशद मदनी

 

 

बॉम्बे हाई कोर्ट के औरंगाबाद की डिवीजन बेंच के तबलीगी जमात के बारे में दिए गए फैसले का जमीअत उलमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने स्वागत करते हुए उसे ऐतिहासिक करार दिया है। साथ ही मौलाना ने कहा है कि न्यायालय के इस फैसले ने उन लोगों के मुंह पर जोरदार तमाचा मारा है जो देश की शांति को भंग करने और देश में शत्रुता फैलाने के प्रयास में लगे थे। मौलाना मदनी ने कहा कि तबलीगी जमात को लेकर जिस तरह से मीडिया के एक धड़े ने देश के सामाजिक ताने-बाने और भाईचारे को नष्ट करने का प्रयास किया था यह फैसला उनके मुंह पर एक तमाचा है और आशा है कि वह अदालत के इस फैसले से सीख लेंगे और गांधी के देश में शत्रुता की जगह प्यार और मोहब्बत को बढ़ाने का प्रयास करेंगे।

 

 

मीडिया के नफरत फैलाने की कार्यशैली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुक़दमा लड़ रही जमीयत के अध्यक्ष मौलाना मदनी ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट के औरंगाबाद की डिवीजन बेंच के फैसले के बाद भी अगर मीडिया की विभाजन कारी नीतियों और भारत की एकता और सभ्यता को नष्ट करने के प्रयासों पर लगाम नहीं लगाया गया तो यह देश की एकता के लिए घातक होगा। मौलाना मदनी ने कहा कि मीडिया की विभाजन कारी नीतियों पर सरकार की खामोशी उसके समर्थन की पुष्टि कर रही है।

 

 

ज्ञात रहे कि जमीयत उलेमा ए हिन्द की तरफ से अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बीती सुनवाई को अदालत को बताया था कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन सिर्फ उन लोगों पर कार्रवाई कर सकती है जो उन के सदस्य हैं, लेकिन इस मामले में कई एक ऐसे संस्थान भी हैं जो इनके सदस्य नहीं हैं। इसलिए इन पर कार्यवाही कौन करेगा? सरकार इस मामले में उन न्यूज़ चैनल पर कार्रवाई करे। उन्होंने अदालत को बताया कि इस मामले में हुकूमत भी कुछ नहीं कर रही है। जिस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह हमारा तजुर्बा है कि जब तक हम हुकूमत को आदेश नहीं देते हुकूमत कुछ नहीं करती। चीफ जस्टिस ने यूनियन ऑफ इंडिया का पक्ष रख रहे तुषार मेहता से कहा कि वह उन पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं, बल्कि यह सच्चाई है।

 

इससे पहले की सुनवाई के अवसर पर एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अजाज़ मकबूल ने अदालत का ध्यान केंद्रित करते हुए उन डेढ़ सौ चैनलों और अखबारों की जानिब दिलाई थी जिसमें इंडिया टीवी ज़ी न्यूज़ न्यूज़ नेशन रिपब्लिक टीवी सुदर्शन न्यूज़ चैनल और कई ऐसे अन्य चैनल थे जिन्होंने पत्रकारिता के मापदंडों को तबाह करने और मुसलमानों के दिलों को चोट पहुंचाने में कोई कमी नहीं की थी।

 

 

ज्ञात रहे बॉम्बे हाई कोर्ट के औरंगाबाद की डिवीजन बेंच ने विदेशी तबलीगी जमात के मामले की सुनवाई करते हुए  एफआईआर रद्द करने का निर्देश दिया और कहा कि अतिथि देवो भाव की महान परंपरा पर काम करने के बजाए विदेशी मेहमानों पर जुल्म किया गया। अदालत ने कहा कि हमारी सभ्यता अतिथि देवो भाव की कहावत मशहूर है, जिसका अर्थ यह है कि हमारे मेहमान भगवान जैसे हैं। मगर मौजूदा परिस्थितियों ने इसे छिन्न-भिन्न कर दिया है। क्या हम सच में उस अजीम परंपरा और सभ्यता पर अमल कर रहे हैं? तबलीगी जमात के मीडिया ट्रायल पर अदालत ने मीडिया के कामकाज पर भी सवाल खड़ा किया। न्यायालय ने कहा कि तबलीगी जमात के लोगों को बलि का बकरा बनाया गया। 

 

अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा दिल्ली आने वाले विदेशियों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बहुत बड़ा प्रोपेगेंडा किया गया। एक ऐसा माहौल बनाने का प्रयास हुआ जिसमें इस बात को बताया गया कि यह विदेशी कोविड-19 इंफेक्शन के जिम्मेदार हैं। अदालत ने यह भी कहा कि भारत में इंफेक्शन से संबंधित हालिया आंकड़ों से ज्ञात होता है कि उनके खिलाफ ऐसी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए थी। विदेशियों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाही की भरपाई के लिए पॉजिटिव स्टेप उठाए जाने की जरूरत है। 58 पन्नों पर आधारित फैसले में जस्टिस टीवी नलवाडे और जस्टिस एमजी सेवलिकर की डिवीजन बेंच ने कहा ऐसा मालूम होता है कि राज्य सरकार ने सियासी मजबूरी के तहत काम किया और पुलिस ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं किया।

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