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वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 10, मगफूर अहमद ऐजाज़ी

मगफूर अहमद ऐजाज़ी का जन्म 3 मार्च सन् 1900, को बिहार, मुज़फ्फरपुर के एक गांव दिहुली में हुआ था। मगफूर अहमद एक स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने भारत की जंगे आज़ादी में सम्मुखता से अपनी भूमिका निभाई है। ऐजाज़ी उर्दू के मशहूर शायर और लेखक भी थे, बिहार में उन्हें बाब ए उर्दू की संज्ञा से जाना जाता है।

By: वतन समाचार डेस्क
The freedom fighters who were forgotten - 10, Magfoor Ahmed Aijazi

वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 10, मगफूर अहमद ऐजाज़ी

 

स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में दसवां नाम मगफूर अहमद ऐजाज़ी का है-

 

मगफूर अहमद ऐजाज़ी - 10

मगफूर अहमद ऐजाज़ी का जन्म 3 मार्च सन् 1900, को बिहार, मुज़फ्फरपुर के एक गांव दिहुली में हुआ था। मगफूर अहमद एक स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने भारत की जंगे आज़ादी में सम्मुखता से अपनी भूमिका निभाई है। ऐजाज़ी उर्दू के मशहूर शायर और लेखक भी थे, बिहार में उन्हें बाब ए उर्दू की संज्ञा से जाना जाता है।

 

गांधी जी के नक्श ए कदम पे चलते हुए वर्ष 1921, में उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए स्कूल छोड़ दिया था। उसके बाद उन्होंने स्वदेशी आंदोलन, नमक सत्याग्रह, साइमन कमीशन का विरोध अदि जैसे सभी स्वतंत्रता आंदोलनों में भाग लिया। ऐजाज़ी 'मुठिया' अभियान के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के लिए स्वयंसेवकों को संगठित करके और धन इकट्ठा करके अंग्रेजों के खिलाफ जनता को लामबंद करते थे। 'मुठिया' का अर्थ होता था खाना बनाने से पहले एक मुट्ठी अनाज स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन के रूप में प्रदान करना। ऐजाज़ खिलाफत आंदोलन में भी शामिल हुए और उन्होंने नेहरू रिपोर्ट पर सभी पार्टियों के सम्मेलन और सभी मुस्लिम पार्टियों के सम्मेलनों में केंद्रीय खिलाफत समिति का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद मौलाना मोहम्मद अली जोहर के निर्देश पर उन्होंने कलकत्ता खिलाफत कमेटी का कार्यभार ग्रहण किया। वहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा आयोजित एक विरोध प्रदर्शन में शामिल होने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कलकत्ता से बहुत दूर जाकर छोड़ा गया।

 

ऐजाज़ी दो राष्ट्र के सिद्धांत के कड़े विरोधी थे. 1940 में ऐजाज़ी ने ऑल इंडिया जमहूर मुस्लिम लीग की स्थापना की और उनके पहले महासचिव के रूप में कार्य किया, ऐजाज़ी को दो राष्ट्र सिद्धांत का विरोध करने पर अपनी ही पार्टी के वर्करों के क्रोध को झेलना पड़ा और उनपर एंटी मुस्लिम का टैग लगा दिया गया था। 26 सितंबर 1966, को यह निस्वार्थ राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी इस दुनिया को अलविदा कह गया।

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