वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 19, अब्दुल मजीद ख्वाजा
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 19वां नाम अब्दुल मजीद ख्वाजा का है-
अब्दुल मजीद ख्वाजा -19
अब्दुल मजीद ख्वाजा का जन्म 1885 को अलीगढ़ में हुआ था। वह एक वकील, शिक्षक, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। साथ ही वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सह संस्थापक भी थे। 1916 में उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी ''the early life of the first student of the M.A.O college'', जिसे इलाहाबाद लॉ जर्नल प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था।
मजीद की प्रारंभिक शिक्षा उनके घर पर सम्मानित प्राइवेट शिक्षकों द्वारा हुई, जिन्होंने मजीद को कुरआन, अरबी, उर्दू, फ़ारसी, सामाजिक शिष्टाचार अदि सहित कई अन्य विषय पढ़ाये। अपनी उच्च शिक्षा उन्होंने लाहौर के एक सरकरी महाविद्यालय से प्राप्त की। उनके पिता ख्वाजा मोहम्मद युसूफ चाहते थे कि उनका बेटा सर्वश्रेष्ठ समकालीन पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करे, जिसके लिए उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए सन् 1906 में इंग्लैंड की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भेजा गया। 1910 में वहां से वापस लौटने के बाद उन्होंने अलीगढ़ में अपना कानूनी अभ्यास शुरू किया। लेकिन 1919 में गांधी जी के कहने पर अपना पेशा त्याग कर वह सविनय अवज्ञा आंदोलन और खिलाफत आंदोलन से जुड़ गए, जिसके चलते उन्हें 6 महीने जेल की सजा काटनी पड़ी।
वह महात्मा गांधी के अहिंसक दृष्टिकोण के काफी बड़े अनुयायी थे। उन्होंने विभाजन का पुरज़ोर विरोध किया, और अपना पूरा जीवन हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द कायम रखने के निश्चित कर दिया था। अब्दुल मजीद के लिए सबसे कठिन समय वह था जब दो राष्ट्र की मांग उठने लगी थी, इसी समय उन्हें उन्हें दिल का दौरा भी पड़ा। लेकिन 1942 में वह वापस राजनीती में लोटे और अपनी ज़िन्दगी को भारतीय एकता के लिए निश्चित कर दिया। दो राष्ट्र थ्योरी के विरोध में बनाये गए संगठन 'ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस' जिसके वह सह संस्थापक भी थे, इस संगठन का मजीद को अध्यक्ष भी नियुक्त किया गया था, उन्होंने भारतीय मुसलमानों को भारतीय एकता के लिए अधिक प्रोत्साहित किया।
अब्दुल मजीद ने भारतीय मुस्लिमों को शिक्षित करने में भी अपना अहम योगदान दिया, ज़ाकिर हुसैन की सिफारिश पर 1936 में उन्हें जामिया मिल्लिया का चांसलर भी नियुक्त किया गया था, वह इस पद पर 2 दिसंबर 1962 तक अपनी मृत्यु तक नियुक्त रहे।
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